नई दिल्ली: भारतीय स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने स्वीकार किया है कि विज्ञान ने कोविड-19 महामारी को लेकर अब तक कुछ सवालों के जवाब तो पता लगा लिए हैं पर वायरस के बारे में ‘ज्ञात’ जानकारी से ज्यादा ‘अज्ञात’ है.
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के पीर रिव्यू मेडिकल जर्नल इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईजेएमआर) में प्रकाशित एक संपादकीय में शीर्ष स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. प्रिया अब्राहम और डॉ. राजेश भाटिया ने लिखा कि ‘टीके के प्रभावी होने’ पर भी अनिश्चितता बनी हुई है.
अब्राहम आईसीएमआर के तहत आने वाले पुणे स्थित संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) में निदेशक हैं, जबकि भाटिया संचारी रोग मामलों में विश्व स्वास्थ्य संगठन, दक्षिण पूर्व एशिया के पूर्व निदेशक हैं.
‘रहस्यमय कोविड-19 महामारी’ शीर्षक से 5 सितंबर को प्रकाशित संपादकीय में कहा गया है, ‘महामारी का मुकाबला करने के लिए वायरस, इसके रोगाणुओं, महामारी फैलाने की क्षमता और नैदानिक आयामों को अच्छे से समझना होगा. साथ ही विशेष रूप से खतरे और उच्च जोखिम वाली आबादी के लिए सुरक्षित और प्रभावी थेरेपिटिक और प्रोफिलेटिक उपायों की उपलब्धता भी जाननी होगी.’
इसमें कहा गया है, ‘शोध संबंधी इन सवालों के जवाब हमें विश्वसनीय और सस्ते फार्मास्युटिकल और नॉन-फॉर्मास्युटिकल उपायों के करीब ले जा सकते हैं.’
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कोविड-19 वैक्सीन का इम्यून रिस्पांस अनिश्चित
लेखकों के अनुसार, ‘कोविड-19 की सुरक्षात्मक प्रतिरोधी क्षमता बनी रहने की अवधि को लेकर अब भी भ्रांतियां कायम हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘इम्युन रिस्पांस लंबे समय तक कारगर होने को लेकर कुछ स्पष्ट न होने से इसका भी संदेह बना हुआ है कि क्या टीका प्रभावकारी साबित होगा.’
अभी तक, महामारी को रोकने के लिए टीके को ही आखिरी प्रभावकारी उपाय माना जा रहा है.
हालांकि, संपादकीय में इस पर जोर दिया गया कि ‘महामारी पर टीकों का वास्तविक असर केवल तभी पता लग पाएगा जब इसे अलग-अलग आबादी पर कुछ महीनों तक व्यापक रूप से उपयोग किया गया हो.’
संपादकीय में टीके खोजने के लिए दुनियाभर में लगी ‘होड़’ के बारे में बताते हुए रूस की प्रस्तावित कोविड-19 वैक्सीन स्पूतनिक वी का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें शुरुआती परीक्षणों में ही बिना किसी गंभीर प्रतिकूल प्रभाव के सभी प्रतिभागियों में एक एंटीबॉडी रिस्पांस नजर आया.
लेखकों ने कहा, ‘मौजूदा समय में दुनिया भर में कोविड-19 के लिए लगभग 165 विभिन्न टीके विकसित करने के प्रयास जारी हैं और इनमें से कई क्लीनिकल ट्रायल के चरणों में भी पहुंच गए हैं.
सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों में प्रगति को झटका
अब्राहम और भाटिया के अनुसार, महामारी ने सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों (एमडीजी) को हासिल करने में हुई प्रगति से पीछे धकेल दिया है और महत्वाकांक्षी संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों को पाने में बाधा खड़ी कर दी है.
एमडीजी संयुक्त राष्ट्र की तरफ से निर्धारित आठ अंतरराष्ट्रीय विकास लक्ष्य थे, जिसमें 2015 के लक्ष्य वर्ष तक अत्यधिक गरीबी की दर घटाने के अलावा एचआईवी/एड्स का प्रसार पर काबू पाने और सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा आदि शामिल थे.
संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक गरीबी मिटाने, पृथ्वी के संरक्षण और सभी लोगों के लिए शांति और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए 2015 में 17 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को भी अपनाया था.
संपादकीय में आगे कहा गया, ‘यह अभी स्पष्ट नहीं है कि विश्व समुदाय महामारी के कारण लगे झटकों के बीच टीबी आदि अन्य प्रमुख बीमारियों के उन्मूलन कार्यक्रमों को चलाने की दिशा में कैसे आगे बढ़ेगा.
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