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मंगलवार, 13 मई, 2025
होमदेशशीर्ष अदालत ने पति के रिश्तेदारों के खिलाफ दहेज, क्रूरता के प्रावधानों के दुरुपयोग पर निराशा जताई

शीर्ष अदालत ने पति के रिश्तेदारों के खिलाफ दहेज, क्रूरता के प्रावधानों के दुरुपयोग पर निराशा जताई

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नयी दिल्ली, 13 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने वैवाहिक मामलों में पत्नी द्वारा पति के बुजुर्ग माता-पिता सहित अन्य परिजनों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और क्रूरता के प्रावधानों के दुरुपयोग पर मंगलवार को निराशा व्यक्त की।

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा, ‘‘क्रूरता शब्द का पक्षकारों द्वारा क्रूरतापूर्वक दुरुपयोग किया जाता है, और इसे विशिष्ट उदाहरणों के बिना सरलता से स्थापित नहीं किया जा सकता है। किसी खास तिथि, समय या घटना का उल्लेख किए बिना इन धाराओं को जोड़ने की प्रवृत्ति अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर करती है और शिकायतकर्ता के पक्ष की व्यवहार्यता पर गंभीर संदेह पैदा करती है।’’

न्यायमूर्ति शर्मा द्वारा लिखित यह फैसला इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ अपील पर आया, जिसमें एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया था।

शीर्ष अदालत ने उसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए (क्रूरता) और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा चार के तहत अपराधों से बरी कर दिया।

पीठ ने कहा, ‘‘मामले का गुण-दोष चाहे जो भी हो, हम इस बात से व्यथित हैं कि किस तरह से धारा 498ए तथा दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा तीन और चार के तहत अपराधों को शिकायतकर्ता पत्नियों द्वारा दुर्भावनापूर्ण तरीके से दुरुपयोग किया जा रहा है, जहां पति के वृद्ध माता-पिता, दूरदराज के रिश्तेदार, अलग रहने वाली विवाहित बहनों को भी वैवाहिक मामलों में आरोपी बनाया जाता है।’’

फैसले में पति के प्रत्येक रिश्तेदार को इसमें शामिल करने की ‘‘बढ़ती प्रवृत्ति’’ को रेखांकित करते हुए कहा गया कि इससे पत्नी या उसके परिवार के सदस्यों के दावों पर ‘‘गंभीर संदेह’’ उत्पन्न होता है और सुरक्षात्मक कानून का उद्देश्य नष्ट हो जाता है।

पीठ ने कहा कि पत्नी द्वारा लगाए गए क्रूरता और दहेज उत्पीड़न के आरोप अस्पष्ट थे, उनमें विशिष्ट विवरण का अभाव था। पीठ ने कहा कि आपराधिक दोषसिद्धि व्यापक या सामान्यीकृत दावों पर आधारित नहीं हो सकती।

अदालत ने कहा, ‘‘हम आपराधिक शिकायत में छूटी हुई बारीकियों को नजरअंदाज नहीं कर सकते। हमें सूचित किया गया है कि अपीलकर्ता का विवाह पहले ही समाप्त हो चुका है और तलाक का आदेश अंतिम रूप ले चुका है, इसलिए अपीलकर्ता के खिलाफ आगे कोई भी मुकदमा चलाना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के समान होगा।’’

फैसले में कहा गया कि आरोप अस्पष्ट या हवा में नहीं लगाए जाने चाहिए तथा उल्लेख किया कि मौजूदा शिकायत में तारीख, समय तथा उत्पीड़न या क्रूरता की ठोस घटनाओं जैसी खास जानकारी का अभाव है।

अदालत ने कहा कि इसके अलावा, कथित शारीरिक हमले के कारण गर्भपात के दावे के समर्थन में चिकित्सा रिकॉर्ड भी प्रस्तुत नहीं किया गया।

अलग रह रहे पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ मानसिक और शारीरिक शोषण, दहेज की मांग और क्रूरता के आरोप में मूल शिकायत दिसंबर 1999 में दर्ज की गई थी। दोनों की शादी मुश्किल से एक साल तक टिक पाई थी।

महिला ने नौकरी से इस्तीफा देने के लिए दबाव डालने, नशीला पेय पदार्थ देने के अलावा शारीरिक उत्पीड़न का भी आरोप लगाया।

फैसले में कहा गया कि मामले में प्राथमिकी पति द्वारा तलाक की याचिका दायर करने के लगभग एक साल बाद दर्ज कराई गई, जिससे आपराधिक मामले के समय और मंशा पर सवाल उठते हैं।

पीठ ने अपील स्वीकार कर ली और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2018 के आदेश को रद्द करते हुए पति को सभी आरोपों से बरी कर दिया।

भाषा आशीष दिलीप

दिलीप

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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