नई दिल्ली: वोटर आईकार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने की अनिवार्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश विक्रमजीत सेन ने चुनाव आयोग (ईसी) को बताया है कि इससे ‘असामाजिक तत्वों’ द्वारा चुनावी प्रक्रिया में बाधा डालने पर रोक लगेगी.
चुनाव आयोग इस 12 अंकों के बायोमेट्रिक नंबर को वोटर आईडी से जोड़ने के पक्ष में है, इस मुद्दे पर सेन की राय मांगी गई थी.
सेन ने दिप्रिंट से बातचीत में बताया, ‘यूनिक वोटर आईडी होने से आधार कार्ड यह सुनिश्चित करा सकता है कि डबल वोटिंग न हो. दोनों को लिंक करने से अवैध वोटों पर रोक लगने की संभावना बढ़ जाएगी.’
उन्होंने कहा, ‘अगले चुनाव में आधार को मतदाता पहचान पत्र के साथ जोड़ना अनिवार्य होना चाहिए. चुनावी प्रक्रिया कुशल, पारदर्शी और मजबूत सुनिश्चित करना हमारी पहली प्राथमिकता है.’
अवैध मतदान को रोकने के लिए मचे घमासान के बीच चुनाव आयोग ने दोनों आईडी कार्ड जोड़ने के मामले में सेन से टिप्पणी मांगी थी.
यह भी पढ़ें: नई मोदी सरकार में पांच रिटायर्ड नौकरशाह शामिल
पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि आधार केवल पैन कार्ड, आयकर रिटर्न दाखिल करने और कल्याणकारी योजनाओं के लिए अनिवार्य किया जा सकता है जबकि चुनाव आयोग ने 12-अंकों के बायोमेट्रिक नंबर के साथ मतदाता पहचान पत्र को अनिवार्य रूप से जोड़ने के लिए जोर देना शुरू किया.
2015 में, चुनाव आयोग ने नेशनल इलेक्टोरल रोल प्यूरिफिकेशन एंड अथेंटिकेशन प्रोग्राम (एनईआरपीएपी) लॉन्च किया, जो ‘गलतियों से मुक्त और प्रामाणिक मतदाता रोल’ तैयार करने के लिए आधार को वोटर आईडी से लिंक करने की प्रक्रिया शुरू की थी.
हालांकि, आधार इसके तुरंत बाद गोपनीयता से संबंधित सवालों को लेकर कानूनी मुसीबत में पड़ गया, और मामला सर्वोच्च न्यायलय में पहुंच गया, जिससे इस कार्यक्रम को रोक दिया गया. उस समय, इसने लगभग 380 मिलियन मतदाताओं को कवर किया था.
‘यह आपको चुनना है: गोपनीयता या वोट’
यह पूछे जाने पर कि क्या अनिवार्य लिंकिंग उन लोगों को मतदान के अधिकार से वंचित कर सकती है, जिनके पास आधार कार्ड नहीं हो सकता है, सेन ने कहा, ‘अगर किसी के लगता है कि आधार होने से उसकी निजता सुरक्षित नहीं है और इस कारण उन्होंने आधार कार्ड नहीं बनवाया है, तब भी उन्हें वोट देने का अधिकार मिलना चाहिए.’
सेन ने कहा, ‘यह आपके ऊपर है कि आपके लिए कौन सा अधिकार अधिक महत्वपूर्ण है, और आपको बैलेंस बनाना है कि ‘निजता का अधिकार या मतदान का अधिकार.’
यह भी पढ़ें: जम्मू कश्मीर में परिसीमन बदलने के क्या है मायने, और क्यों हो रहा है इसका विरोध
हालांकि, सेन ने इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की कि आधार ने किसी व्यक्ति की निजता का उल्लंघन किया है या नहीं, उन्होंने कहा, ‘तर्कों के आधार पर, भले ही यह किसी की गोपनीयता का उल्लंघन करता हो लेकिन अगर यह असामाजिक तत्वों को मतदान करने से रोकने के लिए होता है, तो लोगों को इसे एक विकल्प के तौर पर देखना चाहिए.’
हालांकि, उन्होंने कहा कि अगर किसी के पास आधार नहीं है क्योंकि वे इसे प्राप्त करने में असमर्थ थे, तो यह उन्हें वोट देने के उनके अधिकार को अस्वीकार करने का आधार नहीं होना चाहिए.
सेन ने कहा कि दोनों आईडी को जोड़ने के लिए भारत में चुनावों की देखरेख करने वाले जनप्रतिनिधित्व कानून, 1952 में संशोधन की आवश्यकता होगी, लेकिन उन्होंने संशोधन और उससे जुड़े मामलों पर और कुछ बोलने से मना कर दिया.
यह पूछे जाने पर कि जब चुनाव आयोग ने अपनी राय मांगी थी, सेन ने जवाब देने से इनकार कर, इसे ‘गोपनीय जानकारी’ बताया.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)