नई दिल्ली: गुजरात हाई कोर्ट ने फैसला दिया है कि किसी दिव्यांग व्यक्ति की पेंशन पर टैक्स नहीं लगाया जा सकता, भले ही उसने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली हो. कोर्ट ने करीब 40 साल पहले एक ऑपरेशन के दौरान रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट झेल चुके एक रिटायर्ड सेना अधिकारी को राहत दी है.
कोर्ट ने आयकर के प्रधान आयुक्त को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता लेफ्टिनेंट कर्नल निखिल सुभाष गुज्जर (रिटायर्ड) द्वारा चुकाया गया आयकर 9 प्रतिशत सालाना ब्याज के साथ वापस किया जाए.
जस्टिस भार्गव डी. कारिया और जस्टिस प्रणव त्रिवेदी की पीठ ने यह आदेश देते हुए मार्च 2024 में आयकर प्रधान आयुक्त द्वारा आयकर अधिनियम 1961 की धारा 119(2)(b) के तहत पारित आदेश को रद्द कर दिया. यह धारा केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड को यह अधिकार देती है कि वह टैक्स अधिकारियों को रिफंड और कटौती जैसे कर लाभों के लिए देरी से किए गए दावों को स्वीकार करने की अनुमति दे सके.
उदाहरण के तौर पर, जो करदाता अनिवार्य परिस्थितियों या वास्तविक कठिनाई के कारण तय समय पर आयकर रिटर्न दाखिल नहीं कर पाए, वे इस प्रावधान के तहत लाभ का दावा कर सकते हैं.
आमतौर पर, जब कोई सेवारत सेना अधिकारी ड्यूटी के दौरान घायल होकर दिव्यांग हो जाता है, तो वह दिव्यांग पेंशन का हकदार होता है. इस पेंशन के लिए कम से कम 20 प्रतिशत दिव्यांगता होना जरूरी है.
इस मामले में, शुरुआत में अधिकारी को 20 प्रतिशत दिव्यांगता की श्रेणी में रखा गया था. बाद में, 2018 में अहमदाबाद स्थित सेना के मेडिकल विशेषज्ञों के बोर्ड ने उनकी दिव्यांगता को बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दिया.
मार्च 2024 के आदेश में आयकर प्रधान आयुक्त ने सीबीडीटी द्वारा जारी एक सर्कुलर का हवाला दिया था. इसमें कहा गया था कि केवल वही सशस्त्र बल कर्मी टैक्स छूट के पात्र होंगे जिनकी दिव्यांगता सेवा से जुड़ी हो, न कि वे जिन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली हो. हालांकि, पूर्व सेना अधिकारी ने तर्क दिया कि यह सर्कुलर, जो 2019 में जारी हुआ था, सुप्रीम कोर्ट में एक अन्य मामले में चुनौती के तहत है.
हाई कोर्ट की पीठ ने 13 नवंबर को दिए अपने फैसले में गुजरात हाई कोर्ट के 2019 के एक समान फैसले कर्नल मदन गोपाल सिंह नेगी बनाम सीआईटी पर भरोसा किया. उस फैसले में कहा गया था कि दिव्यांग सेना अधिकारी को मांगी गई राशि वापस करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
कोर्ट ने 2019 के उस फैसले में कहा था कि हमारे सेना के जवान, नौसेना अधिकारी और वायुसेना के योद्धा दिन-रात देश की सीमाओं को दुश्मन की घुसपैठ और हमलों से बचाते हैं और अपनी जान को सबसे बड़े खतरे में डालते हैं.
उस मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि जब कोई सार्थक उद्देश्य हासिल नहीं होना हो, तब सेना अधिकारियों को पुराने और तकनीकी प्रशासनिक प्रक्रियाओं के नाम पर अनावश्यक रूप से परेशान नहीं किया जाना चाहिए और उनके वैध अधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए.
यात्रा
लेफ्टिनेंट कर्नल गुज्जर (रिटायर) को 1985 में जम्मू कश्मीर के उरी में तैनाती के दौरान दुश्मन के खिलाफ चलाए जा रहे एक ऑपरेशन में गंभीर रीढ़ की चोट आई थी. वह 15 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित मल्लंगम दर्रे से गिर गए थे.
मई 2000 में, 22 साल से अधिक सेवा देने के बाद उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली. उनकी चोटों के कारण उन्हें ए3 मेडिकल श्रेणी में रखा गया था, जिसमें हाथ या पैर की चोट जैसी समस्याएं शामिल होती हैं. उनकी मेडिकल स्थिति के कारण उन्हें भविष्य के सभी प्रोफेशनल कोर्स और चयन ग्रेड प्रमोशन से वंचित कर दिया गया था.
मार्च 2019 में अधिकारी ने आकलन वर्ष 2006-2007 से 2018-2019 के बीच अपनी दिव्यांग पेंशन पर चुकाए गए टैक्स की वापसी के लिए आयकर प्रधान आयुक्त से अनुरोध किया था.
उनके वकील ने दलील दी कि आयकर अधिनियम की धारा 237 के तहत, अगर किसी व्यक्ति ने देय टैक्स से ज्यादा टैक्स चुका दिया है, तो वह रिफंड का हकदार होता है. उन्होंने यह भी कहा कि अधिनियम की धारा 297(2) के तहत दिव्यांग पेंशन को कर मुक्त आय माना गया है, यानी इस पर टैक्स नहीं लगता.
कोर्ट ने क्या कहा
कोर्ट ने सन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज मामले में 2024 के दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले का हवाला दिया. इसमें कहा गया था कि आयकर अधिनियम 1961 से धारा 239(2) हटा दी गई है, जो रिफंड के दावे के लिए समय सीमा तय करती थी. कोर्ट ने यह भी नोट किया कि सीबीडीटी ने अपने कई सर्कुलर में माना है कि कुछ मामलों में टैक्स गलती से काट लिया जाता है.
इसी तरह, कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के 2020 के फैसले कर्नल अश्विनी कुमार राम सिंह बनाम आयकर प्रधान आयुक्त पर भरोसा किया. इसमें कहा गया था कि समय सीमा खत्म होने के बाद भी अगर कुछ शर्तें पूरी हों, तो देर से किए गए रिफंड दावे पर विचार किया जा सकता है.
इस मामले में कोर्ट ने कहा कि चूंकि सेना अधिकारी से जरूरत से ज्यादा टैक्स वसूला गया था, इसलिए वह इस श्रेणी में आते हैं.
इसके बाद कोर्ट ने टैक्स विभाग को निर्देश दिया कि वह अधिकारी के दावे को प्रोसेस करे और 60 दिनों के भीतर उन्हें कानून के अनुसार रिफंड दे.
कोर्ट ने कहा, “प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाता है कि वे संबंधित आकलन वर्षों के लिए याचिकाकर्ता द्वारा चुकाए गए आयकर की राशि 9 प्रतिशत सालाना ब्याज के साथ, इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से तीन महीने के भीतर वापस करें.” कोर्ट ने यह भी कहा कि सीबीडीटी का सर्कुलर उनके रास्ते में बाधा नहीं बनेगा.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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