नई दिल्ली: राजस्थान स्थित एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ, कंज्यूमर यूनिटी एंड ट्रस्ट सोसाइटी (सीयूटीएस- कट्स), द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार तमिलनाडु के थूथुकुडी में मई 2018 में स्टरलाइट कॉपर प्लांट को बंद किये जाने से भारतीय अर्थव्यवस्था को 14,000 करोड़ रुपये से अधिक की चपत लगने की संभावना है.
कथित रूप से पर्यावरण सम्बन्धी मानकों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए 100 दिनों तक चलने वाला विरोध प्रदर्शन बाद में हिंसक हो गया था और 22 मई 2018 को पुलिस की गोलीबारी में 13 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक घायल हो गए. इसके बाद इस संयंत्र को बंद कर दिया गया.
जून महीने में सार्वजनिक रूप से जारी किये गए इस इस अध्ययन में कहा गया है, ‘इस रिपोर्ट के उद्देश्य के लिए एकत्र और विश्लेषित किए गए आंकड़ों के माध्यम से पता चलता है कि मई 2018 में सभी हितधारकों द्वारा इस तांबे के संयंत्र (कॉपर प्लांट) के बंद किये जाने के बाद से अर्थव्यवस्था को हुआ समेकित नुकसान (कंसोलिडेटेड लॉस) लगभग 14,749 करोड़ रुपये होने का अनुमान है. इस संयंत्र के बंद रहने की पूरी अवधि के दौरान हुआ संचयी नुकसान (क्युमुलेटिव लॉस) तमिलनाडु के राज्य सकल घरेलू उत्पाद (एसजीडीपी) का लगभग 0.72 प्रतिशत है.’
केंद्र सरकार के थिंक-टैंक नीति आयोग द्वारा वित्तपोषित, यह अध्ययन सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के चुनिंदा न्यायिक फैसलों के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष आर्थिक प्रभाव का आकलन करता है. इस अध्ययन के उद्देश्य से कट्स – सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता का अनुसरण करने वाले एक गैर सरकारी संगठन – ने पांच ऐसे मामलों का चयन किया है जहां सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के फैसलों ने अर्थव्यवस्था पर भारी असर डाला है.
अध्ययन के अनुसार, इस संयंत्र के बंद होने का एक प्रमुख दुष्प्रभाव स्थानीय आबादी के रोजगार पर पड़ा है. इस रिपोर्ट में विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के हवाले से लगभग 30,000 नौकरियों (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों) के शुद्ध नुकसान पर प्रकाश डाला गया था. अध्ययन में कहा गया है कि इसके अलावा, इस संयंत्र के बंद होने से उन लोगों की मासिक आय में कम से कम पचास फीसदी की कमी आने की उम्मीद है, जिन्होंने अपनी नौकरियां खो दी हैं, जबकि कई तो पूरी तरह से बेरोजगार हो गए हैं.
साल 1994 में स्थापित इस प्लांट को वेदांता लिमिटेड की एक इकाई, स्टरलाइट इंडस्ट्रीज, द्वारा चलाया जाता था. 2018 में प्रदर्शनकारी चाहते थे कि इस कॉपर स्मेल्टिंग यूनिट (तांबे को गलाने वाली इकाई) को बंद कर दिया जाए क्योंकि उन्होंने स्टरलाइट पर पर्यावरणीय नियमों के पालन में ढिलाई बरतने, स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर असर डालने और थूथुकुडी के बंदरगाह वाले शहर को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया था.
यहां हुई हिंसा के बाद, तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (टीएनपीसीबी) और राज्य सरकार ने तत्काल प्रभाव से इस संयंत्र को स्थायी रूप से बंद करने का आदेश दिया था.
टीएनपीसीबी द्वारा इस प्लांट को बंद करने के लिए दिए गए आदेश को स्टरलाइट ने नवंबर 2018 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में चुनौती दी थी, जिसके बाद ट्रिब्यूनल ने इस प्लांट को फिर से खोलने का आदेश दिया था. हालांकि, इस आदेश को 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर खारिज कर दिया था कि एनजीटी के पास राज्य सरकार के आदेशों के खिलाफ की गई अपील पर विचार करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है.
फिर अगस्त 2020 में, मद्रास उच्च न्यायालय ने टीएनपीसीबी और तमिलनाडु सरकार के आदेशों को बरकरार रखा. उस साल दिसंबर में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी स्टरलाइट को किसी भी तरह की अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था.
मई 2021 में कोविड महामारी की दूसरी लहर के चरम के दौरान तमिलनाडु सरकार ने मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन करने के लिए इस संयंत्र को चार महीने तक संचालित करने की अनुमति दी थी.
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निचली कड़ी के व्यवसायों और पूंजीगत व्यय पर प्रभाव
अपने अध्ययन के माध्यम से, कट्स ने उस अप्रत्यक्ष प्रभाव को भी स्थापित करने प्रयास किया है जो भारतीय अर्थव्यवस्था को इस संयंत्र के बंद होने के बाद से नौकरियों के नुकसान और संयंत्र से जुड़े हितधारकों को हुए नुकसान के रूप में झेलना पड़ा.
अध्ययन में पाया गया है कि इस तांबे के संयंत्र से लगभग 400 डाउनस्ट्रीम (निचली कड़ी के) व्यवसाय जुड़े थे, जिसमें लगभग 1,00,000 लोग कार्यरत थे और ये भी संयंत्र के ठप पड़ने से प्रभावित हुए थे. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सभी डाउनस्ट्रीम व्यवसायों को इस संयंत्र के बंद होने के बाद से उनकी खरीद की लागत के संदर्भ में हुआ शुद्ध अनुमानित नुकसान लगभग 491 करोड़ रुपये है.’
इस रिपोर्ट का एक अन्य उद्देश्य संयंत्र के बंद होने से हुई राजस्व हानि की मात्रा और सरकार के पूंजीगत व्यय पर इसके प्रभाव का आकलन करना था. रिपोर्ट में ऊपर उल्लिखित स्टरलाइट संयंत्र के बंद होने सहित पांच मामलों के अनुमानित आर्थिक प्रभाव् (इनडुस्ड इकनोमिक इम्पैक्ट) का अनुमान लगाने के लिए पूंजीगत व्यय गुणक (कैपिटल एक्सपेंडिचर मल्टीप्लायर) का उपयोग किया गया है. यह पूंजीगत व्यय गुणक को 2.45 मानता है, जिसका अर्थ है कि सार्वजनिक सुविधाओं के लिए भारत सरकार द्वारा किए गए प्रत्येक 1 रुपये के खर्च से अर्थव्यवस्था को 2.45 रुपये का लाभ होता है.
कट्स इंटरनेशनल के निदेशक (शोध( अमोल कुलकर्णी ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस रिपोर्ट के मूल में न्यायिक निर्णयों के लिए एक अधिक जानकारी-युक्त और साक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण तैयार करना था.’
संयंत्र के खरीदारों की तलाश कर रहा है वेदांता
तांबे के इस संयंत्र के बंद होने के परिणामस्वरूप हुए नुकसान के कारण वेदांता अब इसे बेचने की प्रक्रिया में है. ग्रुप के चेयरमैन अनिल अग्रवाल के मुताबिक, कंपनी को सात दावेदारों की तरफ से बोलियां प्राप्त हुई हैं.
‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ पत्रिका को दिए गए एक साक्षात्कार में, अग्रवाल ने कहा कि कथित पर्यावरणीय क्षति के लिए संयंत्र के खिलाफ किया गया विरोध प्रदर्शन ‘राजनीतिक दलों या एनजीओ द्वारा संचालित’ था, और शायद इस ‘चीनी’ पक्ष द्वारा पैसे भी दिए गए थें
अग्रवाल ने ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ को बताया, ‘हमारे लिए, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें मंजूरी मिल जाए ताकि कंपनी फिर से शुरू हो सके. हम संभावित खरीदारों से बात कर रहे हैं और हमें सात दावेदारों – अंतरराष्ट्रीय और घरेलू दोनों – से बोलियां प्राप्त हुई हैं. उन्होंने पाया है कि जमीनी स्तर पर चीजें अब ज्यादा सकारात्मक हो गई हैं.’
अग्रवाल ने कहा, ‘मैं केवल इतना जानता हूं कि भारत इस संयंत्र को बंद करने का जोखिम नहीं उठा सकता. वे और नियमन लगा सकते हैं. यह पूरे देश का नुकसान है, नौकरियों का नुकसान है और राजस्व का नुकसान तो है ही. हमारे पास सेसा गोवा का मामला है, जहां सरकार को लगभग 30 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है. इसमें से अधिकांश एनजीओ की वजह से हुआ है.’
खनन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय तांबा उद्योग का आकार (प्रति वर्ष परिष्कृत तांबे की खपत के आधार पर) लगभग 6.6 लाख टन है, जो विश्व के सम्पूर्ण तांबा बाजार के प्रतिशत के रूप में केवल 3 प्रतिशत है. भारत के तांबा अयस्क भंडार में सबसे बड़ी हिस्सेदारी मध्य प्रदेश की है, इसके बाद कर्नाटक, राजस्थान और झारखंड का स्थान है.
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