गुवाहाटी, 29 सितंबर (भाषा)असम में प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के तीन दफ्तरों को सील कर दिया गया है और उसके सदस्यों पर कड़ी नजर रखी जा रही है। पुलिस के एक अधिकारी ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (विशेष शाखा) हीरेन नाथ ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि यहां हाती गांव में संगठन के असम मुख्यालय के अलावा करीमगंज और बक्सा में भी उसके दफ्तरों को केंद्र द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद सील किया गया है।
उन्होंने कहा, “हम स्थिति पर करीबी नजर रख रहे हैं। 27 सितंबर को प्रदेश के आठ जिलों से पीएफआई के 25 कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के बाद से इस सिलसिले में और कोई गिरफ्तारी नहीं की गई है। पुलिस द्वारा दर्ज मामलों में वांछित सभी लोगों को हम गिरफ्तार करेंगे।”
उन्होंने कहा कि 25 कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है और संबंधित जिलों की पुलिस उनकी जांच कर रही है। पुलिस मुख्यालय द्वारा जांच की निगरानी की जा रही है।
नाथ ने कहा कि असम पुलिस की विशेष अभियान इकाई (एसओयू) ने 22-23 सितंबर को पीएफआई की गतिविधियों से जुड़ाव के लिये 11 लोगों को गिरफ्तार किया था और राज्य पुलिस मुख्यालय इन मामलों की निगरानी कर रहा है।
नाथ एसओयू के प्रमुख भी हैं।
इस बीच, पीएफआई के एक गिरफ्तार कार्यकर्ता फरहाद अली जो एआईयूडीएफ बारपेटा जिले का महासचिव भी है को प्रतिबंध की घोषणा के तत्काल बाद पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया गया है।
विपक्षी दल एआईयूडीएफ के महासचिव (संगठन) अमीनुल इस्लाम ने कहा कि अली को निलंबित कर दिया गया है और उनसे सभी जिम्मेदारियां वापस ले ली गई हैं।
कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य अब्दुल खालेक ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि केंद्र को लोगों को प्रतिबंध की वास्तविक वजह बतानी चाहिए और यह भी बताना चाहिए कि कौन सी राष्ट्रविरोधी गतिविधियां थी जिनके आधार पर असम में यह कदम उठाया गया।
खालेक ने कहा, “लोगों को यह जानने का हक है कि वह कौन सी राष्ट्रविरोधी गतिविधि थी जिसके लिए पीएफआई को प्रतिबंधित किया गया। जहां तक हम जानते हैं कि असम में किसी कार्यकर्ता के यहां से कोई हथियार या गोला-बारूद नहीं मिला है…अगर यह नफरती बयानबाजी या मिथ्या प्रचार के लिये किया गया है तो पहले तीन बार प्रतिबंधित हो चुका राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ भी वही करता है।”
मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने कहा कि राज्य सरकार ने कई मौकों पर केंद्र को पत्र लिखकर पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए कहा कि वह आतंकवादी गतिविधियों का एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए जिम्मेदार है जो लोगों को भारतीय उपमहाद्वीप में आईएसआईएस और अल कायदा द्वारा प्रायोजित कट्टरपंथी मॉड्यूल में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करता है।
सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पीएफआई की गतिविधियां असम के अल्पसंख्यक बहुल जिलों में 2014 से प्रभावी रूप से सामने आईं हैं जब इसने समुदाय के लोगों को राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) में उनके नाम शामिल करने के लिए दस्तावेज दाखिल करने में मदद करना शुरू किया।
उन्होंने कहा कि इससे पहले पीएफआई के कार्यकर्ता मुख्य रूप से बंगाली भाषी मुसलमानों के वर्चस्व वाले ‘चार’ इलाकों में शैक्षिक गतिविधियों में शामिल थे।
उन्होंने कहा, “हमें ‘चार’ क्षेत्रों से नियमित जानकारी मिलती थी कि ज्यादातर हिंदी भाषी लोग राज्य के बाहर से आते हैं और निजी मदरसों के मैदान में बैठक करते हैं। हमने कुछ बैठकें भी रोक दी थीं क्योंकि वे निषेधाज्ञा का उल्लंघन कर की जा रही थीं।”
संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ 2019 में प्रदर्शन के दौरान पीएफआई मुख्य रूप से चर्चा में आया और इसके कुछ कार्यकर्ताओं को विवादास्पद कानून के खिलाफ हिंसक आंदोलन के दौरान पथराव के लिए गिरफ्तार किया गया। अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि तब से संगठन पूरे राज्य में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा था।
भाषा प्रशांत नरेश
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