उज्जैन/इंदौर/मंदसौर: दिसंबर के आख़िरी सप्ताह में मध्यप्रदेश के तीन इलाक़ों में व्यापक हिंसा देखी गई- उज्जैन का बेगम बाग़, इंदौर का चंदन खेड़ी गांव, और मंदसौर का दोराना गांव.
ये तीनों इलाक़े आपस में मिले हुए नहीं हैं, हालांकि ये सभी मालवा क्षेत्र में पड़ते हैं-उज्जैन और इंदौर में क़रीब 60 किलोमीटर की दूरी है, जबकि मंदसौर इनसे 200 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में है.
लेकिन हिंसा की तीनों घटनाओं के बीच जो समानता थी, वो थी ‘जागरूकता रैलियां’ जो विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे हिंदू संगठनों की ओर से आयोजित की गईं थीं, और जिनका मक़सद अयोध्या में होने वाले राम मंदिर निर्माण के लिए, शुरू होने वाले धन उगाही अभियान को बढ़ावा देना था. ये निर्माण 15 जनवरी से शुरू होना निर्धारित है. और तीनों ही मामलों में स्थानीय निवासियों ने, प्रशासन की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं.
घटनाक्रम की जांच के लिए, दिप्रिंट ने 6 से 9 जनवरी के बीच मध्यप्रदेश का दौरा किया, और उसे इन तीनों घटनाओं में एक समानता नज़र आई- मुस्लिम निवासियों का आरोप है कि दक्षिणपंथी समूहों ने, ‘आपत्तिजनक नारेबाज़ी’ से उन्हें निशाना बनाया, और ये भी कहा कि वो लोग हथियारों से लैस होकर आए थे, जिनमें तलवारें भी शामिल थीं. इस बीच, रैलियों में शामिल लोगों का दावा है, कि मुसलमान निवासियों ने उनपर पत्थरों से हमला किया.
दोनों ही मामलों में प्रशासन पर आरोप है, कि या तो उसने एक ओर से आंखें बंद कर लीं, या फिर उसके तर्क संदेहास्पद थे. दो मामलों में प्रशासन ने उन मुसलमानों के घर तोड़ दिए, जिनके घरों से कथित तौर पर पथराव किया था.
मामले ने अब सियासी रंग ले लिया है. वरिष्ठ कांग्रेस नेता तथा राज्यसभा सांसद, दिग्विजय सिंह ने शुक्रवार को आरोप लगाया, कि मध्यप्रदेश में मुसलमान इलाक़ों को निशाना बनाया जा रहा है. सिंह ने हिंसा की हालिया घटनाओं की, निष्पक्ष जांच की भी मांग की.
इसके जवाब में, बीजेपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने, मीडिया को जारी एक विडियो क्लिप में कहा: ‘एमपी में हर समाज, समुदाय और पंथ सकुशल और सुरक्षित हैं’.
राज्य के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने इस बीच, पत्थर-बाज़ों को एक चेतावनी जारी की. ‘अगर आप ग़लत काम करेंगे, तो हम आपको रोकेंगे, लेकिन अगर आप नहीं रुकेंगे, तो फिर हम मारेंगे…हम किसी ऐसी ताक़त को फलने-फूलने नहीं देंगे, जो समाज को तोड़ती हो’.
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बेगम बाग़, उज्जैन, 25 दिसंबर
प्रशासन और निवासियों के अलग अलग दावे
25 दिसंबर को, बीजेपी की युवा विंग, भारतीय जनता युवा मोर्चा (बीजेवाईएम), और कुछ अन्य दक्षिण पंथी संगठन, मुस्लिम-बहुल बेगम बाग़ से गुज़रे, और वो कथित रूप से स्थानीय निवासियों को निशाना बनाकर, आपत्तिजनक नारेबाज़ियां कर रहे थे, जिसकी वजह से पथराव हुआ.
निवासियों का कहना था कि बाइक रैली, दो बार वहां से शांतिपूर्वक गुज़र गई, लेकिन तीसरी बार जब वो आए, तो नारे बाज़ी की गई, और पत्थर फेंके गए.
उसके बाद प्रशासन ने अब्दुल हामिद नाम के एक व्यक्ति का, घर तोड़ने का आदेश दे दिया, और ये कारण बता कि उसी के घर से रैली पर पत्थर फेंके गए थे. उज्जैन के ज़िला मजिस्ट्रेट आशीष सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमें पता चला कि पत्थर दो घरों से फेंके गए थे. एक मामले में, वो मकान मालिक नहीं बल्कि किराएदार था, इसलिए हमने कोई कार्रवाई नहीं की. लेकिन दूसरे मामले में, वो घर अब्दुल हामिद का है जिसकी पत्नी यास्मीन, पत्थर फेंकते हुए कैमरे में क़ैद हुई थी’.
लेकिन वहां के निवासियों का कहना है, कि दूसरा घर इसलिए नहीं तोड़ा गया, क्योंकि उसका मालिक हिंदू संप्रदाय से ताल्लुक़ रखता है.
सिंह का दावा था कि डिमोलीशन अभियान का मक़सद, ऐसे ‘अपराधियों’ को नुक़सान पहुंचाना है, जो पत्थरबाज़ी जैसी गतिविधियों में संलिप्त होते हैं. उन्होंने कहा, ‘हमने कोई कार्रवाई इसलिए नहीं की, क्योंकि वो महिला किराएदार थी. वो घर उसका नहीं था. हम समुदायों के बीच भेदभाव नहीं करते’.
उज्जैन के पुलिस अधीक्षक सत्येंद्र कुमार शुक्ला ने पुष्ट किया, कि रैली के आयोजकों ने आवश्यक पुलिस अनुमति नहीं ली थी, और इस मामले में एक केस दर्ज कर लिया गया है. उन्होंने कहा, ‘हमने कुछ निवासियों के खिलाफ कार्रवाई की है, क्योंकि हमारे पास पत्थरबाज़ी के स्पष्ट सबूत हैं. बीस गिरफ्तारियां की जा चुकी हैं, जिनमें से छह पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लगाया गया है’.
रैली में शामिल लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई, जिसमें बीजेवाईएम और वीएचपी के सदस्य भी शामिल थे, ये पूछे जाने पर शुक्ला ने कहा, कि अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ एक केस दर्ज कर लिया गया है. उन्होंने कहा, ‘हमने कुछ लोगों की शिनाख़्त की है, लेकिन उनकी संबद्धता का पता लगाया जाना अभी बाक़ी है’.
लेकिन उन्होंने इस बात से इनकार किया, कि पथराव से पहले कोई नारेबाज़ी हुई थी.
बेगम बाग़ के निवासियों का कहना है, कि प्रशासन ने हिंदू समुदाय को खुश करने के लिए, अब्दुल हमिद का घर तोड़ा है. एक स्थानीय निवासी ने जो अपना नाम छिपाना चाहता था, कहा, ‘दक्षिण पंथी समूह जिन्होंने रैली निकाली थी, उनमें ग़ुस्सा था, और उन्हें एक संदेश देने के लिए प्रशासन ने घर तोड़ने का फैसला किया’.
घटनाक्रम की एक वीडियो का हवाला देते हुए, अब्दुल हामिद ने आगे कहा: ‘हमने कोई पत्थरबाज़ी नहीं की, और वीडियो में साफ दिख रहा है, कि हम उसका हिस्सा नहीं थे. जिस घर से पत्थर फेंके गए वो किसी हिंदू का है, इसलिए हमारी फरियाद के बावजूद, प्रशासन ने मेरा घर तोड़ने का फैसला कर लिया. मेरा पूरा परिवार सड़क पर आने को मजबूर हो गया है. क्या यही क़ानून है?’
रैली में भाग लेने वालों और VHP का बयान
दिप्रिंट ने उन लोगों से भी संपर्क किया, जिन्होंने रैली में हिस्सा लिया था, और जो पथराव में घायल हुए थे. 21 वर्षीय प्रणय शर्मा ने कहा: ‘रैली शांतिपूर्वक गुज़र गई, लेकिन फिर उन्होंने अचानक पथराव शुरू कर दिया. मेरे बाज़ू में खरोंच आई, और उसमें फ्रेक्चर भी हो गया. ये एक संवेदनशील इलाक़ा है, और सीएए विरोध के दौरान भी, उन्होंने ये पूरी सड़क बंद कर दी थी. हमने भगवा वस्त्र पहने थे तो उन्होंने हमला कर दिया’.
वीएचपी ने भी पथराव के पीछे किसी साज़िश की तरफ इशारा किया, और उसके मालवा क्षेत्र सचिव सोहन विश्वकर्मा ने कहा: ‘उन्हें आख़िर ये पत्थर मिल कहां से रहे हैं? क्या वो इन्हें जमा करके रखते हैं, जैसे वो कश्मीर में करते हैं? ये और कुछ नहीं, बल्कि राम मंदिर दान कार्यक्रम को बदनाम करने, और हिंदुओं को बुरा दिखाने की साज़िश है’. इंदौर, उज्जैन और मंदसौर जैसे इलाक़े विश्वकर्मा के अंतर्गत ही आते हैं.
विश्वकर्मा ने ये भी आरोप लगाया, कि स्थानीय लोगों ने हथियार जमा किए हुए थे, और उन्होंने रैली पर हमला किया. उन्होंने कहा, ‘क्या जय श्रीराम जैसे नारे लगाना अपराध है? जब वो मुहर्रम के जलूसों में, अल्लाहो-अकबर के नारे लगाते हुए, हिंदू-बहुत इलाक़ों से गुज़रते हैं, तो क्या हम उन्हें रोकते हैं?’
चंदन खेड़ी, इंदौर, 29 दिसंबर
‘तलवारें और देसी तमंचे’
29 दिसंबर को, कई हिंदू सगठनों की ओर से, अयोध्या में राम मंदिर के लिए, एक दान अभियान जागरूकता रैली के दौरान हिंसा फूट पड़ी. चंदन खेड़ी एक मुस्लिम-बहुल गांव है, जिसकी आबादी क़रीब 3,500 है, जिसमें केवल 10-12 हिंदू परिवार हैं.
गांववासियों का दावा है कि रैली निकालने वाले लोगों ने, एक मुसलमान परिवार के घर में आग लगा दी. इससे पहले उन्होंने गांव के बाहर एक ईदगाह की मीनार में तोड़फोड़ की थी. सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में, कुछ लोगों को कथित तौर पर, मीनार को नुक़सान पहुंचाते हुए देखा जा सकता है.
गांव के एक निवासी 35 वर्षीय हनीफ ने बताया, ‘शुरू में रैली आराम से निकल रही थी, लेकिन बाद में उन्होंने नारेबाज़ी शुरू कर दी. उनमें से एक नारा था ‘तुम्हारा आख़िरी दिन आ गया है’. सारा मामला इसी के बाद शुरू हुआ’. हनीफ का कहना था कि लोग ज़ोर ज़ोर से नारे लगाते रहे, और जब हिंसा शुरू हुई तो ‘उन्होंने पास के गांवों से और लोगों को बुला लिया’.
हनीफ के मुताबिक़ भीड़ अपने हाथों में हथियार लिए हुए थी, जिनमें तलवारें, देसी तमंचे और दूसरी धारदार चीज़ें शामिल थीं.
उसी दिन जब ये रैली एक 26 वर्षीय व्यक्ति सद्दाम पटेल के घर के सामने से गुज़री, तो उसके परिवार ने लोगों के पीने लिए पानी बाहर रखा था. लेकिन, सद्दाम ने कहा कि उसी भीड़ ने, बाद में वापस आकर उन्हें पीटा, घायल किया, और उनके घर का एक हिस्सा जला दिया.
उसने कहा, ‘जब हमने देखा कि हिंसा शुरू हो गई है, तो ख़ुद को घर के अंदर बंद कर लिया. बाद में, पुलिस ने हमसे घर खोलने और मोटर चालू करने के लिए कहा. भेरे भाई की बच्ची,जो क़रीब 3 महीने की है घर के दूसरे हिस्से में थी, और वो उसे लाने के लिए बाहर निकला. अचानक भीड़ अंदर घुस आई और हमें मारना शुरू कर दिया. उन्होंने घर में आग लगा दी, लेकिन बच्ची को समय रहते बचा लिया गया’.
सद्दाम का एक भाई, जिसके बारे में परिवार का कहना है कि उसे गोली लगी, अभी भी अस्पताल में है.
गांव वालों के अनुसार तीन ट्रेक्टर्स, बाइक्स, और फसलें, आगज़नी का शिकार हो गईं.
एक ग्रामीण ने नाम छिपाने की शर्त पर कहा, ‘बकरियों की आंखें बाहर निकाल ली गईं, और बहुत सी भैंसों पर तलवारों और लाठियों से हमला किया गया’.
गांववालों ने ये भी कहा कि 10-15 मुस्लिम परिवारों के घर, प्रशासन द्वारा 30 दिसंबर को शुरू किए गए, अतिक्रमण विरोधी अभियान के तहत ढहा दिए गए, जिसका ज़ाहिरी मक़सद, सड़क को चौड़ा करना था.
गांववासियों का कहना है, कि अभी तक वो सामंजस्य के साथ रह रहे थे, लेकिन अब वो हिल गए हैं. जब दिप्रिंट ने चंदन खेड़ी का दौरा किया, तो बहुत से लोगों ने कहा, कि उन्हें मीडिया के साथ बात करने में भी बहुत डर लग रहा है, क्योंकि उन्हें लगता है कि प्रशासन, उनके खिलाफ बदले की कार्रवाई करेगा.
कई लोगों ने ज़ोर देकर कहा, कि प्रस्तावित दान अभियान और कुछ नहीं, बल्कि मुस्लिम समुदाय में डर फैलाने की तरकीब है. उन्होंने ये भी कहा कि उज्जैन की घटनाओं की तरह, उनके यहां भी रैली में शरीक लोगों ने, आपत्तिजनक नारे लगाए थे
स्थिति पर नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए, अब चंदन खेड़ी गांव में क़रीब 25-30 पुलिसकर्मी तैनात हैं.
पुलिस के दावे
दिप्रिंट ने फोन कॉल्स, व्हाट्सएप, और लिखित संदेशों के ज़रिए, इंडौर डीएम मनीष सिंह, और एडीएम अजय देव से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.
लेकिन, पुलिस का मानना था कि टकराव तब शुरू हुआ, जब रैली में शामिल लोगों ने गांववासियों के रैली को फिल्माने पर ऐतराज़ किया.
इंदौर के पुलिस उप-महानिरीक्षक हरिनारायण चारी मिश्रा के अनुसार, आयोजकों ने जलूस के लिए अनुमिति ली थी. उन्होंने कहा, ‘इस मामले में चार प्राथमिकियां दर्ज की गई हैं, जिनमें गांववालों की ओर से फायरिंग, और मीनार को नुक़सान पहुंचाते पाए गए, दो व्यक्तियों के खिलाफ मामले शामिल हैं. आयोजकों ने जलूस के लिए अनुमिति ले रखी थी’.
इंदौर (पश्चिम) के पुलिस अधीक्षक महेश चंद्र जैन ने कहा, कि हिंसा गांव वालों के पत्थर फेंकने के बाद शुरू हुई.
उन्होंने कहा, ‘हमें देखना है कि उसे किसने शुरू किया. गांववालों की ओर से पत्थर बाज़ी शुरू की गई, जिसके नतीजे में संघर्ष हुआ. संख्या बल में कम होने के बावजूद, हमने जल्द ही स्थिति पर क़ाबू पा लिया’.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने, नाम न बताने की शर्त पर, उज्जैन वीएचपी नेता विश्वकर्मा के विचारों का ही समर्थन किया और कहा, कि गांववाले उसे एक ‘मिनी-पाकिस्तान’ बनाना चाह रहे थे, और 29 दिसंबर को जो कुछ हुआ, वो एक ख़तरे की घंटी थी.
पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘वहाबियत और तब्लीग़ी जमात की विचारधारा में विश्वास रखने वाली, कट्टरपंथी ताकतें ही इसके लिए ज़िम्मेदार हैं. मुसलमान युवक कट्टरपंथी बन रहे हैं. हिंदू तो डर के भाग जाता है, ये डटे रहते हैं’.
हिंदू परिवारों के इस दावे पर, कि इस गांव में पहले कभी इस तरह की सांप्रदायिक घटनाएं नहीं हुई, उनका क्या कहना है ये पूछने पर उन्होंने पुरानी कहावत का सहारा लिया: ‘तालाब में रहकर मगरमच्छ से बैर?’
इमरान की आज़माइश
एक 27 वर्षीय दिहाड़ी मज़दूर मोहम्मद इमरान, बोल पाने में असमर्थ है- उसके परिवार का कहना है कि सात साल पहले तेज़ बुख़ार के चलते उसने अपनी आवाज़ खो दी थी, और उसका अभी भी इलाज चल रहा है. लेकिन पिछले 10 दिनों में, खोई हुई आवाज़ उसकी चिंता नहीं रही है- इंदौर पुलिस ने इमरान और उसके भाई मोहम्मद अज़रुद्दीन को, हिंसा के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.
किराने की एक छोटी सी दुकान चलाने वाली, इमरान की पत्नी हीना ने कहा, ‘मेरे पति बोल नहीं सकते. उनका अभी भी इलाज चल रहा है, और हिंसा के दिन भी उन्हें बुख़ार था, और वो घर के अंदर आराम कर रहे थे’.
इमरान के केस के बारे में पूछे जाने पर, एसपी जैन ने कहा: ‘सिर्फ इसलिए कि वो बोल नहीं सकता, इसका मतलब ये नहीं है कि वो भीड़ का हिस्सा नहीं था. सभी चीज़ों की जांच करने के बाद ही, हमने उचित कार्रवाई की है’.
लेकिन उसके परिवार ने कहा, कि उनकी आज़माइश यहीम ख़त्म नहीं होती. रैली के अगले दिन, स्थानीय प्रशासन ने उनके घर के कुछ हिस्सों को तोड़ दिया. लेकिन हीना डिमोलीशन कार्रवाई के कथित कारणों, तथा समय पर संदेह ज़ाहिर करती है. उसने पूछा, ‘वो इसे अतिक्रमण बता रहे हैं, लेकिन ये कार्रवाई रैली के अगले दिन ही क्यों की जा रही है?’
दोराना, मंदसौर, 29 दिसंबर
‘औरंगज़ेब की औलादों, सुधर जाओ’
इसी तरह की आवाज़ें मंदसौर ज़िले के दोराना गांव में भी सुनने को मिलीं. नाम न बताने की शर्त पर दोराना के एक निवासी ने कहा, ‘रैली में शामिल लोग ऐसे नारे लगा रहे थे जैसे ‘औरंगज़ेब की औलादों सुधर जाओ, देश हमारा है’.
गांव के एक निवासी मोहम्मद उमर मंसूरी के अनुसार, गांववालों ने 28 दिसंबर को स्थानीय पुलिस को सूचित कर दिया था, कि अगले दिन उनके इलाक़े से रैली निकलने वाली थी, इसलिए उचित पुलिस बल तैनात किया जाना चाहिए. गांववालों का कहना है कि रैली के लिए 5,000 से अधिक लोग मौजूद थे.
मंसूरी ने कहा कि रैली में शामिल लोगों ने, मस्जिद को नुक़सान पहुंचाने की कोशिश की, और मुस्लिम क़ौम को भड़काने के लिए, मस्जिद परिसर के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ भी किया. दोराना में क़रीब 300 हिंदू परिवार हैं, और लगभग 85 परिवार मुस्लिम समुदाय के हैं.
उन्होंने कहा, ‘वीएचपी, बजरंग दल, और दूसरे संगठनों की ओर से, रैली में शिरकत के लिए एक व्हाट्सएप संदेश जारी किया जा रहा था, और जब हमें वो हासिल हुआ, तो हमने पुलिस को उस बारे में सूचित किया. लेकिन नारेबाज़ी के अलावा, कुछ लोगों ने मस्जिद को नुक़सान पहुंचाने की कोशिश की, और कुछ दूसरों ने दरगाह में रखी चादर को जला दिया. लोगों के घरों को नुक़सान पहुंचाया गया, खिड़कियों के शीशे तोड़े गए…उन्होंने सीसीटीवी कैमरे भी तोड़ दिए’.
अब एक अशांति का माहौल
चंदन खेड़ी की तरह दोराना में भी, गांव के मवेशियों को निशाना बनाया गया. गांववालों का ये भी कहना है, कि एहतियात के तौर पर दिन के दौरान, सिर्फ 10-15 लोग गांव में रह गए थे, और बाक़ी को सुरक्षित जगहों पर रहने के लिए कह दिया गया था. चांद मोहम्मद, जिन्होंने बताया कि उन लोगों ने, उसकी बकरी के सर पर मारा था, ने आगे कहा, ‘हिंसा के डर से, हमने अपने गांव की महिला सदस्यों से कहा था, कि वो पास की जगहों पर चली जाएं. रेली में शामिल लोगों ने मेरी बकरी को मार दिया’.
पुलिस की निष्क्रियता को लेकर गांव वालों के बीच, चिंता और हताशा साफ देखी जा सकती है. मोहम्मद आरिफ ने कहा, ‘पुलिस ने भी कुछ नहीं किया और मूकदर्शक बनी रही. हम पुलिस को पूरी तरह ज़िम्मेदार मानते हैं, चूंकि पहले से बताने के बाद भी, उन्होंने कुछ नहीं किया’.
युवा आबादी के एक हिस्से का ये भी कहना था, कि ये रैली आगे आने वाली चीज़ों का संकेत थी. उनका ये भी कहना था कि ये घटना इस बात की भी कोशिश थी, कि नई दिल्ली के बाहर चल रहे किसानों के प्रदर्शन से, लोगों का ध्यान हटाया जाए.
एक और गांववासी ने नाम छिपाने का अनुरोध करते हुए कहा, ‘ये और कुछ नहीं, बस ये दिखाने की एक कोशिश है कि कौन ताक़तवर है. ये किसानों के आंदोलन से ध्यान भटकाने की भी कोशिश है. आख़िरकार, मध्यप्रदेश में एक के बाद एक, इतनी घटनाएं कैसे हो सकती हैं?’
‘बेक़ाबू भीड़’ ‘कोई नारे बाज़ी नहीं’
लेकिन, मंदसौर एसपी सिद्धार्थ चौधरी ने कहा, कि हालांकि गांव में पर्याप्त संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया था, लेकिन रैली में लोगों की भारी उपस्थिति, एक ‘बेक़ाबू भीड़’ में बदल गई.
चौधरी ने कहा, ‘हमने सुनिश्चित किया कि मस्जिद को कोई क्षति न पहुंचे, और हमने उस व्यक्ति को फौरन नीचे उतार लिया जो उसके ऊपर चढ़ गया था. हमने नौ लोगों को गिरफ्तार किया है, और छह एफआईआर दर्ज की गई हैं. हम उन लोगों के खिलाफ सबूत जुटा रहे हैं, जिनके नाम गांव वालों ने दिए हैं. धारा 144 लागू कर दी गई है, और हमारी अनुमति के बिना, कोई रैली नहीं निकाली जा सकती’.
इस मामले में भी वीएचपी इन आरोपों का खंडन कर रही है, कि कोई उत्तेजक नारेबाज़ी की गई थी. वीएचपी के मंदसौर ज़िला अध्यक्ष दीप चौधरी ने कहा, ‘गांववालों की ओर से पत्थर फेंके गए. कुछ ने तो रैली की तरफ हथियार भी लहराए. इससे कुछ युवा तैश में आ गए, जिसके नतीजे में टकराव हुआ’.
उन्होंने दावा किया, ‘हमारे कार्यकर्ताओं पर हमला किया गया, और बाइक्स को नुक़सान पहुंचाया गया, लेकिन पुलिस ने अभी तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया है.
फिलहाल, दोराना में सतही तौर पर शांति नज़र आती है. लेकिन, जैसा कि मोहम्मद आरिफ ने कहा: ‘हम सुना करते थे कि उत्तर प्रदेश में ऐसी चीज़ें होती हैं. लेकिन अब ये हमारे अपने इलाक़े में होने लगी हैं’.
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