सांगली: कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे से महाराष्ट्र के धागा उद्योग पर छाया संकट गहरा गया है. राज्य के कई इलाकों से प्रवासी मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है. पश्चिम महाराष्ट्र से भी बड़ी संख्या में धागा कारखानों में काम करने वाले कर्मचारी भी अपने राज्यों की तरफ कूच कर रहे हैं. इस वजह से इन कारखानों में कार्यरत मजदूर व कर्मचारियों की संख्या में भारी कमी आई है.
लिहाजा, धागा उद्योग प्रबंधन कर्मचारियों को उनके अपने राज्यों में जाने से रोकने के लिए अधिक से अधिक सुविधाएं देने के प्रस्ताव रख रहा है. दूसरी तरफ, धागे की कीमतों में आ रही गिरावट ने कारखाना प्रबंधकों की चिंता बढ़ा दी है.
मजदूरों के पलायन से बड़ी परेशानी
महाराष्ट्र राज्य वस्त्र उद्योग महासंघ के अध्यक्ष अशोक स्वामी बताते हैं, ‘धागा कारखानों द्वारा ऐसी स्थिति में मजदूर और कर्मचारियों को कार्यस्थल पर ही रोकने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं.’
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उन्होंने कहा, ‘कई कारखाना प्रबंधकों ने कर्मचारियों को वेतन के अलावा उनके रोजमर्रा का खर्च वहन करने का प्रस्ताव दिया है. लेकिन, यही एकमात्र समस्या नहीं है.’
दरअसल, लॉकडाउन के दौरान करघा उद्योग पूरी क्षमता से शुरू न हो पाने से धागे की मांग में अत्याधिक कमी आई है. धागा प्रबंधन के सामने प्रश्न है कि इस स्थिति में धागे का उत्पादन किया भी तो बाजार में मांग न होने से उत्पादित माल का करेंगे क्या.
कोल्हापुर जिले में एक सहकारी सूत कारखाना प्रबंधन से जुड़े रमेश कोरवे बताते हैं, ‘पिछले कुछ वर्षों के दौरान विभिन्न कारणों से पश्चिम महाराष्ट्र में सहकारी धागा उद्योग संकट का सामना कर रहा है. ऐसे में कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने सहकारी कारखाना प्रबंधकों की मुश्किले बढ़ा दी हैं. देश भर में लागू लॉकडाउन के कारण पिछले डेढ़ महीने धागे कारखाने पूरी तरह बंद रहे हैं.’
कारखाने हुए शुरू-कारीगर नहीं
हालांकि, लॉकडाउन में छूट देने की स्थिति में कुछ धागा कारखाने शुरू होने की उम्मीद की जा रही है. इसके तहत पहले चरण में राज्य के 107 में से 17 धागा कारखाने शुरू हो चुके हैं. इनमें सबसे अधिक सात धागे कारखाने कोल्हापुर जिले में हैं.
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रमेश कोरवे बताते हैं, ‘कोल्हापुर जिले के धागा कारखानों में से कुछ कारखाने एक, दो या तीन पारियों में उत्पादन शुरू कर रहे हैं. लेकिन, इन कारखानों में मानवीय संसाधनों में 50 प्रतिशत की कमी है.’
वह आगे कहते हैं, ‘इसकी वजह यह है कि गए दिनों में ज्यादातर प्रवासी मजदूर और कर्मचारी अपने गृह राज्य जा चुके हैं. पश्चिम महाराष्ट्र के धागा कारखानों में सबसे अधिक प्रवासी मजदूर ओड़िशा, बिहार, असम और उत्तर-प्रदेश से हैं.’
इसके अलावा, प्रवासी कर्मचारियों की एक बड़ी संख्या है जो संकट की इस स्थिति में अपने राज्य जाना चाहती है. कारखाना प्रबंधकों का मानना है कि धागा उत्पादन का कामकाज पहले की तरह शुरू होने में न्यूनतम छह से आठ महीने लग सकते हैं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)