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Friday, 15 November, 2024
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आईआईएससी को 425 करोड़ का दान देने वालों ने कहा, यह अच्छे काम के लिये है

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बेंगलुरु, 17 फरवरी (भाषा) भारतीय विज्ञान संस्थान को 425 करोड़ रुपये दान करने के फैसले के लिए सराहना प्राप्त करने वाले परोपकारी बागची और पार्थसारथी ने कहा है कि यह परोपकारी होने, दूसरों के लिये दया भाव रखने और अच्छे काम के लिये संसाधनों को साझा करना है ।

बागची-पार्थसारथी अस्पताल की स्थापना के लिए भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) ने सुष्मिता और सुब्रतो बागची तथा राधा और एन एस पार्थसारथी के साथ साझेदारी की है ।

आईआईएससी के निदेशक प्रोफेसर गोविंद रंगराजन ने बताया, ‘‘ये लेाग सामूहिक रूप से 800 बिस्तरों वाले मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल के निर्माण के लिये 425 करोड़ रुपये (लगभग 60 मिलियन अमरीकी डालर के बराबर) दान करेंगे। इसकी स्थापना के बाद से यह यह सबसे बड़ा निजी दान प्राप्त हुआ है ।’’

सुब्रतो बागची और एन एस पार्थसारथी माइंडट्री के सह-संस्थापक हैं जो सूचना प्रौद्योगिकी सेवा और परामर्श कंपनी है जिसका मुख्यालय बेंगलुरु में है ।

सुष्मिता ने पीटीआई भाषा से बातचीत में कहा, ‘‘यह दान के बारे में नहीं है जितना कि यह धर्मार्थ होने के बारे में है। परोपकारी होने का मतलब दूसरों के लिए सहानुभूति पैदा करना है। दूसरों के लिए महसूस करना और संवेदनशील बनना है। ये ऐसे मूल्य हैं जो माता-पिता द्वारा परिवार में बहुत पहले ही विकसित किये जा चुके हैं ।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमने उनके पद चिन्हों पर चलते हुए छोटे-छोटे तरीके अपनाए। जब हम 1990 के दशक में अमेरिका में रहते थे, तो समुदाय में हर कोई मुद्दों के साथ जिस तरह से जुड़ा हुआ था, उससे हम बहुत प्रभावित हुए थे। जिस तरह से वे अपने आपको पेश करते हैं और मदद करते हैं, उससे हमें भारत लौटने पर संस्थानों से जुड़ने में मदद मिली।’’

राधा ने कहा वे लंबे समय से छोटे-मोटे परमार्थ के काम में लगे हुये हैं । उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, यह पहला मौका है जब हम आईआईएससी जैसी बड़ी संस्था में इतना बड़ा योगदान दे रहे हैं ।’’

इस सवाल पर कि इतनी बड़ी धन राशि दान करने की प्रेरणा कहां से मिली, राधा ने कहा कि उन्होंने कड़ी मेहनत की है और अब जब संसाधन उनके हाथों में है तो उनका मानना ​​है कि भाग्य से यह उन तक पहुंचे हैं।

राधा ने कहा, ‘‘हम मानते हैं कि नियति ने हमें यह संसाधन दिया है और ऐसे में इनका इस्तेमाल ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ के सिद्धांत पर – लोगों की भलाई के लिए किया जाना चाहिये । महामारी ने तात्कालिकता की भावना को आगे बढ़ाया। हमारा इरादा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के लिये इनका उपयोग करना था।

भाषा रंजन रंजन नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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