scorecardresearch
Saturday, 21 December, 2024
होमदेशये जर्मन गौसेवक लौटाना चाहती है पद्मश्री, सुषमा स्वराज ने किया मदद का वादा

ये जर्मन गौसेवक लौटाना चाहती है पद्मश्री, सुषमा स्वराज ने किया मदद का वादा

सुदेवी मथुरा में रहकर एक आश्रम चलाती हैं. उनका वीजा 25 जून को खत्‍म हो रहा है.

Text Size:

मथुरा: पिछले 25 साल से मथुरा में गोसेवक के तौर पर काम कर रहीं पद्मश्री फ्रेडरिक एरिना ब्रूनिंग उर्फ सुदेवी अपना पद्मश्री सम्मान लौटाना चाहती हैं. दरअसल 25 जून को उनके वीजा की समय सीमा समाप्त हो रही है. वह भारत में ही रहना चाहती हैं और इसीलिए उन्‍होंने वीजा बढ़ाने का आवेदन किया था. लेकिन विदेश मंत्रालय ने उनके आवेदन को खारिज कर दिया. इससे परेशान होकर सुदेवी ने पद्मश्री लौटाने की बात कही. अब इस मामले में सुषमा स्वराज ने ट्वीट कर कहा है कि वह इस पर संज्ञान लेंगी.

मथुरा में रहती हैं सुदेवी

सुदेवी मथुरा में रहकर एक आश्रम चलाती हैं. उनका वीजा 25 जून को खत्‍म हो रहा है. दिप्रिंट से बातचीत में उन्होंने कहा कि, ‘मैं मथुरा में स्‍थानीय अधिकारियों से संपर्क कर रही हूं ताकि यह जान सकूं कि मुझे अब क्‍या करना चाहिए?’ वह बोलीं पद्म श्री लौटाकर बहुत दुख होगा लेकिन अगर वीजा आवेदन को खारिज किया जाता है तो उनके पास इसे लौटाने के अलावा और कोई चारा भी नहीं है. उनके मुताबिक, ‘इस पुरस्‍कार को रखने का क्‍या मतलब है, जब मैं यहां रह ही नहीं सकती हूं और बीमार गायों की देखभाल नहीं कर सकती हूं?’ फ्रेडरिक एरिना ने बताया कि उन्‍होंने वीजा अवधि बढ़ाने के लिए आवेदन दिया था, लेकिन विदेश मंत्रालय के लखनऊ कार्यालय ने बिना कोई कारण बताए उनके आवेदन को खारिज कर दिया.

सुषमा के ट्वीट की अभी नहीं मिली जानकारी

सुदेवी ने बताया कि उन्हें सुषमा स्वराज के ट्वीट की जानकारी अभी नहीं मिली है. अगर सुषमा स्वराज इस पर संज्ञान ले रही हैं तो वह उनकी शुक्रगुजार होंगी. हालांकि अभी उनके पास विदेश मंत्रालय से कोई फोन कॉल या मैसेज नहीं आया है. सुदेवी के मुताबिक वीजा की अवधि न बढऩे पर अगर अनाथ गोवंश से बिछुडऩा पड़ा तो वह पद्मश्री सम्मान को सरकार को लौटा देंगी. हर वर्ष मथुरा एलआइयू की रिपोर्ट पर वीजा की अवधि बढ़ा दी जाती थी. इस वर्ष ऑनलाइन प्रक्रिया होने के चलते विदेश मंत्रालय के लखनऊ स्थित विदेशी पंजीकरण अधिकारी (एफआरओ) के कार्यालय में आवेदन किया था. वहां से उनके प्रार्थना पत्र को निरस्त कर दिया गया

कैसे आईं मथुरा

दरअसल सुदेवी ने बताया कि लगभग 25 साल पहले वह मथुरा घूमने आईं थीं. तब यहां के आवारा गायों की बदहाली देखकर वह परेशान हो गई थीं. उन्होंने तय किया कि वह यहीं रहकर इन जानवरों की देखभाल करेंगी. लोगों की चकाचौंध से दूर एक सुनसान और मलिन इलाके में फ्रेडरिक एरिना ब्रूनिंग 2500 से ज्यादा गायों और बछड़ों को एक गोशाले में पाल रही हैं. वह बताती हैं कि गोशाले के अधिकतर जानवरों को उनके मालिक ने छोड़ने के बाद फिर से अपना लिया था और उन्हें अपने साथ ले गए. ब्रूनिंग को स्थानीय लोग सुदेवी माताजी कहकर बुलाते हैं. सुदेवी टूटी-फूटी हिंदी भी बोल लेती हैं.

पिछले साल मिला था पद्मश्री

सुदेवी को साल 2018 में राष्ट्रपति कोविंद के हाथों पद्मश्री मिला था. सुदेवी सरकार के प्रति अपना आभार व्यक्त करती हैं जिसने उनके काम को पहचाना और सम्मानित करने का फैसला किया. वह उम्मीद करती हैं कि लोग उनसे प्रभावित होंगे और जानवरों के प्रति दयालु बनेंगे. वह बताती हैं, ‘गोशाले में 60 कर्मचारी हैं और उनकी सैलरी के साथ जानवरों के लिए अनाज और दवाइयों में हर महीने 35 लाख रुपये का खर्च आता है. उनकी पैतृक संपत्ति से उन्‍हें हर महीने 6 से 7 लाख रुपये मिलते हैं.

share & View comments