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Monday, 23 December, 2024
होमदेश1930 में बना बिहार का यह अस्पताल तमाम जानें बचा सकता है, लेकिन ‘किलर’ रेलवे लाइन ऐसा होने नहीं देती

1930 में बना बिहार का यह अस्पताल तमाम जानें बचा सकता है, लेकिन ‘किलर’ रेलवे लाइन ऐसा होने नहीं देती

बिहार के हरिद्या गांव में रहने वाले दोनों भाइयों ने कहा, ‘ऐसा लगता है जैसे हमने तूफान में अपने घर की छत गंवा दी है. हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है.’

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रक्सौल: 38 वर्षीय रियाज आलम अपनी मृत पत्नी शाहाना खातून के बारे में बात करते हुए एकदम बिलखने लगा, जिसकी 1 जून को दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई थी. हर बार जब आलम की आवाज रुंध जाती तो उनके भाई वहाब मिया आगे बताना शुरू कर देते हैं.

बिहार के हरिद्या गांव में रहने वाले दोनों भाइयों ने कहा, ‘ऐसा लगता है जैसे हमने तूफान में अपने घर की छत गंवा दी है. हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है.’

बुधवार सुबह 30 वर्षीय शाहाना रोज की तरह ही सोकर उठी थी और उसने परिवार के लिए नाश्ता तैयार किया. सुबह करीब साढ़े सात बजे वह परिवार के चार कमरों वाले एक मंजिला मकान में बेहोश पड़ी मिली.

चावल मिल मालिक वहाब ने एक एम्बुलेंस को फोन किया और सुबह 8.30 बजे तक दोनों भाई शाहाना को साथ लेकर सबसे नजदीकी अस्पताल—रक्सौल स्थित डंकन अस्पताल—के लिए रवाना हो गए.

बेसुध से हो चुके रियाज, जो स्क्रैप डीलर का काम करना है, ने बताया, ‘रास्ते भर वह कुछ-कुछ चिल्ला रही थी. लेकिन मैं उसके कहे किसी भी शब्द को समझ नहीं पाया.’

बिहार-नेपाल सीमा पर पड़ने वाले रक्सौल में हरिद्या और डंकन अस्पताल के बीच की दूरी लगभग 6 किलोमीटर है. एंबुलेंस को रक्सौल रेलवे क्रॉसिंग तक पहुंचने में 45 मिनट लगे. अस्पताल क्रॉसिंग से सिर्फ 700 मीटर की दूरी पर है. लेकिन शाहाना को लेकर जा रही एम्बुलेंस को एक मालगाड़ी के गुजरने के लिए क्रॉसिंग पर लगभग 15 मिनट तक इंतजार करना पड़ा.

रियाज आलम और उनके भाई वहाब मिया | साजिद अली/ दिप्रिंट

परिजन सुबह साढ़े नौ बजे जब अस्पताल पहुंचे तो डॉक्टरों ने बताया कि शाहाना नहीं रही है. वहाब ने कहा, ‘डंकन अस्पताल के डॉक्टरों ने हमें बताया कि अगर हम सिर्फ 15 मिनट पहले पहुंच जाते, तो वे उसे बचा सकते थे.’

अस्पताल ले जाते समय रास्ते में दम तोड़ने वाली शाहाना कोई अकेली मरीज नहीं है, और ऐसे मामलों में अक्सर रेलवे क्रॉसिंग इसकी वजह होती है.

दिप्रिंट ने 1 और 2 जून को दो एम्बुलेंस को क्रॉसिंग पर क्रमशः पांच और आठ मिनट तक प्रतीक्षा करते देखा.

डंकन अस्पताल के प्रबंध निदेशक प्रभु जोसेफ ने भी दिप्रिंट को बताया कि उनके सामने ‘महीने में तीन-चार ऐसे मामले आते हैं, जिसमें क्रॉसिंग के कारण इंतजार करते रहने वालों मरीजों की अस्पताल लाने से पहले रास्ते में ही मौत हो जाती है.’ साथ ही जोड़ा कि हालांकि, ‘यह एक मोटा अनुमान’ है.

क्षेत्र का एक हवाई दृश्य | साजिद अली/ दिप्रिंट
क्षेत्र का एक हवाई दृश्य | साजिद अली/ दिप्रिंट

उन्होंने आगे कहा कि अस्पताल आने का एक और रास्ता है लेकिन वहां भी एक रेलवे क्रॉसिंग पड़ती है. अस्पताल के मुख्य मार्ग पर पड़ने वाली यह क्रॉसिंग बेहद व्यस्त है क्योंकि यह रक्सौल जंक्शन रेलवे यार्ड से जुड़ी है जहां ट्रेनों की शंटिंग—मरम्मत आदि के लिए लाइन बदलने की प्रक्रिया—होती है और उन्हें धोया या पार्क किया जाता है.

रेलवे क्रॉसिंग पर अधिकारियों की तरफ से मोटे तौर पर उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक, रक्सौल जंक्शन के लिए इस क्रॉसिंग से 500-600 मालगाड़ी और यात्री ट्रेनें गुजरती हैं.

भारत-नेपाल के बीच लगभग 60 प्रतिशत कारोबार इसी रक्सौल-बीरगंज रेलवे लाइन के जरिये होता है, जो रक्सौल ड्राई पोर्ट को नेपाल के बीरगंज ड्राई पोर्ट से जोड़ती है.


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रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि यह भारत की सबसे व्यस्त रेलवे क्रॉसिंग में से एक है.

उन्होंने कहा, ‘मैं इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि अक्सर यह लंबे समय तक सड़क यातायात को बाधित करती हैं और कई बार दुर्भाग्य से हमें क्रॉसिंग के कारण मौतें होने के बारे में सुनने को मिलता है. इससे मुझे बहुत दुख होता है.’

पूर्व मध्य रेलवे के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह एक मानवीय समस्या है और इसका एकमात्र समाधान सड़क के ऊपर पुल का निर्माण होना ही है.

डंकन तक का रास्ता

रक्सौल स्थित डंकन अस्पताल 1930 में एक स्कॉटिश मिशनरी ने बिहार और नेपाल दोनों ही जगहों के मरीजों के इलाज के उद्देश्य से बनाया था. अस्पताल में 200 बेड हैं और यहां प्रसूति एवं स्त्री रोग, सामान्य चिकित्सा, सर्जरी, बाल रोग, हड्डी रोग और गहन देखभाल आदि विभाग हैं.

इसे फिलहाल पूरी तरह कोविड केयर केंद्र बना रखा गया है.

रेलवे क्रॉसिंग अस्पताल आने वाले कोविड मरीजों के तत्काल इलाज की जरूरतों में भी आड़े आती है.

अस्पताल ने दूसरी लहर में अब तक लगभग 255 कोविड मरीजों का इलाज किया है, जिनमें 215 ठीक हो चुके हैं और 40 ने वायरस के कारण दम तोड़ दिया. अस्पताल में अभी 20 कोविड मरीजों का इलाज चल रहा है.

रक्सौल-अमलेखगंज लाइन अस्पताल बनने से भी तीन साल पहले की है और इसका निर्माण 1927 में किया गया था. यह दिल्ली-लखनऊ-गोरखपुर-रक्सौल-बीरगंज लाइन पर स्थित है.

एम्बुलेंस चालक विशाल कुमार को याद है कि जिस दिन डंकन अस्पताल ले जाते समय शाहाना की मौत हुई, उस दिन वे जिस मालगाड़ी का इंतजार कर रहे थे, वह ‘पहले लेन स्विच एरिया की ओर गई और फिर रक्सौल जंक्शन की तरफ वापस आई, जिससे उन्हें और भी ज्यादा देर हुई थी.’

अस्पताल की ओर जाने के लिए एक और वैकल्पिक रास्ता है, लेकिन उसके लिए पांच किलोमीटर चक्कर लगाना पड़ता है और वहां भी एक अन्य क्रॉसिंग पड़ती है.

रेलवे क्रॉसिंग पर ट्रैफिक जाम || साजिद अली/ दिप्रिंट

रास्ते में एम्बुलेंस चालकों ने दिप्रिंट को बताया कि क्रॉसिंग पर लगने वाले समय के कारण हर महीने औसतन पांच से 10 मरीजों की मौत हो जाती है.

एक एम्बुलेंस चालक अदित पटेल ने कहा, ‘जब भी मरीज लेकर अस्पताल की तरफ जाता हूं तो मैं यही प्रार्थना करता हूं ही रेलवे क्रॉसिंग बंद न हो.’

शाहाना जैसे एक मामले में एक अन्य एम्बुलेंस चालक उमर अंसारी को रक्सौल में ही स्थित सीताराम प्रसाद मेमोरियल ट्रस्ट अस्पताल से एक मरीज के बारे में फोन आया, जिसे डंकन रेफर कर दिया गया था. दो अस्पतालों के बीच की दूरी लगभग तीन किलोमीटर है और अमूमन इतनी दूरी तय करने में पांच से 10 मिनट का समय लगना चाहिए. लेकिन रास्ते में रेलवे क्रॉसिंग है.

उसने बताया, ‘एसआरपी से मरीज को लेने के बाद मैंने देखा कि क्रॉसिंग बंद है. मुझे वहां खड़े वाहनों की कतार से बाहर निकलने के लिए 30 मिनट इंतजार करना पड़ा और वैकल्पिक रास्ता अपनाना पड़ा, जो पांच किलोमीटर दूर था. उस मार्ग पर एक और रेलवे क्रॉसिंग है और वह भी बंद थी. मेरे और मरीज के परिवार के सदस्यों द्वारा बार-बार अनुरोध करने पर गेटमैन ने क्रॉसिंग खोली और हम आगे आने में सक्षम हो पाए.

लेकिन उमर को बाद में पता चला कि डंकन अस्पताल में डॉक्टरों ने मरीज को ‘मृत लाया गया’ घोषित कर दिया था.

एसआरपी अस्पताल के लिए एम्बुलेंस चलाने वाले हीरालाल यादव ने कहा कि उनके लिए रास्ते में देरी होना और कुछ मामलों में क्रॉसिंग पर देरी के कारण मौतें होना सामान्य बात हो गई है.

एम्बुलेंस चालक उमर अंसारी (बाएं) अन्य एम्बुलेंस चालकों के साथ | साजिद अली/ दिप्रिंट

डॉ. प्रभु कहते हैं, ‘कई बार लोगों को यहां पहुंचने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है और हमें यह सुनने को मिलता है कि क्रॉसिंग पर इंतजार करते समय मौत हो गई है.’ साथ ही जोड़ा कि खासकर जिन लोगों को सांप के काटने के लिए तुरंत इंट्यूबेशन या एंटीडोट्स की आवश्यकता होती है, उन्हें ज्यादा खतरा रहता है.

रेलवे अधिकारी ने कहा कि उन्होंने ‘गेटमैन को निर्देश दिया है कि सुरक्षित होने पर लाइन खोलकर लोगों की जान बचाने का यथासंभव प्रयास करें.’

उन्होंने बताया कि रेलवे क्रॉसिंग पार करने के लिए एक ओवरब्रिज भी बनाया जा रहा है. लेकिन इससे केवल दोपहिया और ऑटो रिक्शा जैसे हल्के वाहनों को ही सुविधा मिलेगी.

एम्बुलेंस को तब भी क्रासिंग पार करने के लिए उसी रास्ते को अपनाना होगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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