शामली, उत्तर प्रदेश: 36 वर्षीय अस्मत (पहचान छिपाने के लिए बदला हुआ नाम) को मंगलवार को जब पता चला कि एक दशक पहले उसके साथ बलात्कार करने वाले लोगों को कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया है, तो वह बहुत खुश हई. उसने कहा कि उसने वुजू किया, नमाज पढ़ी और अपने बच्चों को गले लगाया.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं बहुत खुश हूं कि मुझे खुदा [भगवान] से न्याय मिला है.’
8 सितंबर 2013 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में जाट-मुस्लिम सांप्रदायिक हिंसा के दौरान अस्मत के साथ तीन लोगों ने बलात्कार किया था. इस दंगे में कम से कम 60 लोग मारे गए थे, लगभग 100 घायल हुए थे और कई परिवार विस्थापित हुए थे.
9 मई को यूपी की एक ट्रायल कोर्ट ने दो लोगों को अपराध का दोषी ठहराया और उन्हें 20 साल कैद की सजा सुनाई. मुकदमे के दौरान तीसरे आरोपी की मौत के बाद 2020 में तीसरे आरोपी के खिलाफ मामला खत्म कर दिया गया था.
अस्मत के खिलाफ फैसले के मुताबिक, जिसे दिप्रिंट द्वारा एक्सेस किया गया, हमले के दिन अस्मत अपने परिवार के साथ अपने गांव, लंक (शामली, मुजफ्फरनगर में) से भाग रही थी, जब उन्होंने दंगों के बारे में सुना. भागते समय, अस्मत, जो अपने तीन महीने के बच्चे को गोद में लिए हुए थी, अपने परिवार के बाकी लोगों से बिछड़ गई.
दंगाईयों से छिपने के लिए अस्मत पास के गन्ने के खेत में घुस गई. हालांकि, उसके बच्चे के रोने के चलते वहां से गुजर रहे तीन लोगों को पता चल गया कि कोई गन्ने के खेत में है. और ये तीन थे- कुलदीप, महेशवीर और सिकंदर.
कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले में कहा गया है कि कुलदीप बंदूक से लैस था और सिकंदर के पास चाकू था. कुलदीप ने उसके बेटे को उससे छीन लिया और सिकंदर ने बच्चे के गले पर चाकू रख दिया. फिर तीनों ने उसके साथ बारी-बारी से बलात्कार किया और तीनों ने बारी-बारी से उसके बेटे के गले पर चाकू रखा.
अस्मत ने अपनी पुलिस में शिकायत दर्ज करवाने के दौरान कहा था, ‘मेरा बेटा खतरे में था इसलिए मैं चिल्लाई नहीं.’
अस्मत ने कहा कि वह सालों से कानूनी लड़ाई लड़ती रही, धमकियों का सामना करते हुए भी उसने आरोपियों को सजा देने की मांग करती रही. वह उस समय को याद करती हैं कि कैसे उन्हें और उनके परिवार को शामली छोड़ना पड़ा और परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ सालों के लिए दिल्ली जाना पड़ा.
जैसा कि उनका मामला न्याय प्रणाली में काफी दिनों तक रेंगता रहा, लंबे समय तक देरी और मुकदमे के अंत में कई जजों का ट्रांसफर किया गया, अस्मत ने कहा, उनके पति ने हमेशा उनका समर्थन किया.
यह पूछे जाने पर कि पिछले एक दशक में वह किन तकलीफों से गुजरी, उन्होंने कहा, ‘मैंने लड़ाई जारी रखी ताकि मुझे देखकर अन्य महिलाओं को भी ऐसी लड़ाई लड़ने की ताकत मिल सके. मैं नहीं चाहती कि जो मैंने दुख सहा उससे कोई और गुजरे.’
‘वह मुझे बहुत प्यार करता है’
अस्मत की पुलिस शिकायत के अनुसार, बलात्कारियों ने उसे घटना के बारे में किसी को न बताने की चेतावनी दी थी.
अस्मत दिप्रिंट से कहती हैं, ‘बलात्कार के बाद मैं बहुत दर्द में थी, लेकिन मैं किसी को कुछ नहीं बता रही थी. दंगे खत्म होने के बाद मैं अपने पति से मिली, और उन्हें सबकुछ बताया. उन्होंने मुझे गले लगाया और मुझसे पूछा कि क्या हुआ. तभी मैंने सारी कहानी बताई.’
एक बार जब परिवार उत्तर प्रदेश के मलकपुर गांव में शरणार्थी शिविर में पहुंचा, तो उसने अन्य महिलाओं से बलात्कार और तबाही की ऐसी ही कहानियां सुनीं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘इससे मुझे ताकत मिली.’
अक्टूबर 2013 में उसने अपनी आपबीती सुनाते हुए मुजफ्फरनगर के फुगाना थाने में डाक से शिकायत भेजी.
अस्मत ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने एक पत्र लिखा, क्योंकि मैं उस समय बहुत डरी हुई थी. मैं फिर से वहां जाने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी. लेकिन, वे [पुलिस] हमारी प्राथमिकी दर्ज नहीं कर रहे थे, हमारी बात सुनने वाला कोई नहीं था. जब मैंने शिकायत की चिट्ठी भेजी थी, मुझे कोई जवाब नहीं मिला था. मैं बहुत निराश थी.’
कोर्ट के डॉक्यूमेंट्स के मुताबिक, इस मामले में प्राथमिकी फरवरी 2014 में दर्ज की गई थी, जब सांप्रदायिक हिंसा के दौरान सामूहिक बलात्कार के अन्य पीड़ितों के साथ अस्मत ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
2014 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने दंगों के दौरान बलात्कार का आरोप लगाने वाली सात महिलाओं को 5 लाख रुपये के मुआवजे की घोषणा की. इस पैसे से अस्मत और उनके पति को शामली के एक गांव में घर खरीदने में मदद मिली.
अस्मत कहती हैं, ‘जब हम शामली से चले गए तो हमें काफी कुछ सहना पड़ा. हमारे पास कुछ भी नहीं बचा था. मेरी मां, जो एक दिहाड़ी मजदूर हैं, ने मुझे बचाया और मुझे बहुत कुछ दिया. सब कुछ चला गया था. उसने अपने चारों ओर देखते हुए कहा.
वह आगे कहती हैं, ‘इस सब के बीच, मेरे पति मेरी सबसे बड़ी ताकत बने रहे, उन्होंने मुझे बहुत सपोर्ट किया है. वह अब भी मुझे बहुत सलाह देते हैं, वह मुझे बहुत प्यार करते हैं.’
फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए और मामले में उनके संघर्षों को याद करते हुए, अस्मत के पति, जो एक दर्जी के रूप में काम करते हैं, ने दिप्रिंट को बताया, ‘उन्हें अपने बयान दर्ज कराने के लिए जाना होता था, यह कम से कम आठ-नौ महीने तक चला. हमने बहुत संघर्ष किया. अन्य महिलाओं ने मामले को खत्म कर दिया, लेकिन हमें वृंदा ग्रोवर [वरिष्ठ अधिवक्ता, जिन्होंने मामले में अस्मत का प्रतिनिधित्व किया] मैम ने चेतावनी दी थी कि वे हमें तोड़ने की कोशिश करेंगे. इसलिए हम डटे रहे.’
उन्होंने कहा, ‘अंतत: हमने लड़ाई लड़ी और हमें न्याय मिला.’
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‘मेरे बच्चों को जान से मारने की धमकी’
मुकदमा दायर करना अस्मत की कठिन परीक्षा की शुरुआत भर थी.
अस्मत ने दिप्रिंट को बताया, ‘वे [दोषी?] कभी-कभी दूसरे लोगों के साथ हमारे [शामली] घर पर आते थे. वे मेरे बच्चों को जान से मारने की धमकी देते थे. मुझे जान से मारने की धमकी देते थे. उन्होंने पैसे लेकर मामले को निपटाने की भी कोशिश की थी.’
उन्होंने कहा कि ग्रोवर और उनकी टीम ने उन्हें चेतावनी दी थी कि केस लड़ना आसान नहीं होगा, लेकिन वह इसके लिए तैयार थीं.
अस्मत के तीन बेटे हैं – एक 13 साल का, एक 10 साल का और एक छह साल का. उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक में सबसे बड़े बेटे की शिक्षा का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है.
अस्मत ने दिप्रिंट को बताया, लड़का अभी पांचवीं कक्षा में पढ़ रहा है, जबकि उसे आठवीं कक्षा में होना चाहिए था. 10 साल का बच्चा चौथी और छह साल का बच्चा दूसरी कक्षा में है.
वह कहती हैं, ‘मैं इस बात से बहुत परेशान हूं कि इसके कारण मेरे बच्चों का भविष्य भी प्रभावित हुआ. जो समय मैंने खो दिया है वह कभी वापस नहीं आएगा.’
मामले में चार्जशीट 2014 में दायर की गई थी, और कुलदीप, सिकंदरा और महेशवीर के खिलाफ चार साल बाद दिसंबर 2018 में आरोप तय किए गए थे. जिन लोगों को 2014-15 में गिरफ्तार किया गया था, उन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 डी (गैंगरेप), 376 (2) (जी) (दंगों के दौरान गैंगरेप) और धारा 506 (आपराधिक धमकी) के तहत आरोप लगाए गए थे.
2020 में कुलदीप की मौत हो जाने के कारण उसके खिलाफ मुकदमा खत्म कर दिया गया.
हालांकि, अस्मत को इस साल फरवरी में एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा और अपने मामले की रोजाना सुनवाई की गुहार लगाई. उसने कहा कि उसके मामले में जज को अंतिम बहस के दौरान कम से कम तीन बार तबादला किया गया था, जो जनवरी 2022 में ही शुरू हुई थी.
जब अंतिम दलीलों के दौरान एक जज का तबादला किया जाता है, तो नए जज को दोनों पक्षों की दलीलें फिर से सुननी पड़ती हैं.
शीर्ष अदालत के समक्ष उनकी याचिका, जिसे दिप्रिंट ने देखा, ने मामले में ‘अत्यधिक और अत्यधिक देरी’ का आरोप लगाया.
13 मार्च 2023 को, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह परेशान करने वाला है और ट्रायल कोर्ट से मामले को प्राथमिकता के आधार पर लेने के लिए कहा. शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले को जितना संभव हो सके दिन-प्रतिदिन के आधार पर लेना चाहिए.
इस साल 26 अप्रैल को मामले में फैसला सुनाकर उसे सुरक्षित रख लिया गया था. सजा का ऐलान मंगलवार को किया गया.
ओग्गी और कॉकरोच
शामली स्थित अपने घर में दिप्रिंट से बात करते हुए अस्मत ने कहा कि पिछले एक दशक में उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी खराब हुआ है. वह कहती हैं कि अभी वह जिस कॉलोनी में रहती हैं, वहां के परिवार अक्सर उनका बहिष्कार कर देते हैं.
वह कहती हैं, ‘वे अपने बच्चों को मेरे पास नहीं जाने देंगे. वे एक-दूसरे को बताएंगे कि मेरे साथ बलात्कार हुआ था. इससे मुझे बहुत गुस्सा आता है. क्या मैंने जान-बूझकर, अपनी खुशी के लिए ऐसा किया?’
2016 में अस्मत का परिवार कुछ साल के लिए दिल्ली चला गया. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, धमकियां और बहिष्कार उन्हें लगातार परेशान कर रहा था. बाद में फिर वे शामली वापस आ गए.
दिल्ली में, अस्मत ने शिक्षा के लिए अपना रास्ता ढूंढ लिया. उसने कहा कि वह अब अंग्रेजी और हिंदी में पढ़ना और लिखना सीख रही है.
वह कहती हैं, ‘मैंने पढ़ना सीख लिया है. मैं अब फ़ोन पर भी चैट कर सकती हूं. मैं अपना नाम लिख सकती हूं. हस्ताक्षर कर सकती हूं. ये सब मैं अपने बच्चों के लिए कर रही हूं.’
नए शहर में उसने कई दोस्त भी बनाए. वह कहती हैं, ‘वह महिला जो दिल्ली में हमारे बच्चों को पढ़ाने आती थी, मेरी दोस्त बन गई और उसने मुझे पढ़ाया भी. मैं Youtube पर वीडियो देख सकती हूं.’
वह कहती हैं, ‘हम आमतौर पर पढ़ाई की वीडियो देखते हैं. मैं पहाड़ा भी सीख रही हूं. मैं अभी गणित में अच्छी नहीं हूं, लेकिन मैं सीख रही हूं.’
उन्होंने आगे कहा: ‘मैं कभी-कभी अपने बेटों के साथ कार्टून भी देखती हूं. हमें ऑगी और कॉकरोच पसंद हैं. अब मैं सिर्फ अपने बच्चों पर ध्यान देना चाहती हूं, बस उनकी मां बनना चाहती हूं और उसी के लिए जीना चाहती हूं.’
(संपादन: ऋषभ राज)
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