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Friday, 20 December, 2024
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मोदी सरकार ने निजीकरण के लिए इन 18 सेक्टर को ‘रणनीतिक’ रूप से महत्वपूर्ण माना

योजना के अनुसार, रणनीतिक क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र की अधिकतम चार इकाइयां और न्यूनतम एक इकाई का संचालन किया जाएगा. सरकार की बाकी से बाहर निकलने की योजना है.

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नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों के निजीकरण की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए 18 रणनीतिक क्षेत्रों की पहचान कर ली है. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक इसमें बैंकिंग, बीमा, इस्पात, उर्वरक, पेट्रोलियम और रक्षा उपकरण आदि क्षेत्र शामिल हैं.

अगर इसे पूरी तरह से लागू किया जाता है, तो इसका सीधा मतलब होगा कि सरकार निजीकरण या रणनीतिक विनिवेश के जरिए गैर-रणनीतिक क्षेत्रों से पूरी तरह बाहर निकल रही है. यहां तक कि रणनीतिक क्षेत्रों में भी सार्वजनिक क्षेत्र की अधिकतम चार इकाइयां होंगी और न्यूनतम एक इकाई का संचालन होगा.

वित्त मंत्रालय के तहत काम कर रहे निवेश और सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम), जो पिछले महीने ‘वाणिज्यिक क्षेत्र उद्यम में सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदारी को फिर से परिभाषित करने’ पर एक कैबिनेट प्रस्ताव लाया था, ने 18 रणनीतिक क्षेत्रों को तीन व्यापक खंडों में विभाजित किया है-खनन और पर्यवेक्षण, विनिर्माण, प्रसंस्करण एवं निर्माण, और सेवा क्षेत्र.

खनन और पर्यवेक्षण खंड में कोयला, कच्चा तेल एवं गैस और खनिज और धातु आदि क्षेत्रों में सरकार सीमित उपस्थिति बनाए रखेगी.

इसी तरह, विनिर्माण, प्रसंस्करण और निर्माण क्षेत्र में, सरकार जिन क्षेत्रों में सीमित उपस्थिति बनाए रखेगी वे हैं रक्षा उपकरण, इस्पात, पेट्रोलियम (रिफाइनरी और मार्केटिंग), उर्वरक, बिजली उत्पादन, परमाणु ऊर्जा और जहाज निर्माण.

और, सेवा क्षेत्र खंड में चिह्नित क्षेत्र हैं- पावर ट्रांसमिशन, अंतरिक्ष, हवाई अड्डों, बंदरगाहों, राजमार्गों और गोदामों का विकास और संचालन और गैस ट्रांसपोर्टेशन और लॉजिस्टिक (गैस और पेट्रो-केमिकल ट्रेडिंग शामिल नहीं), रणनीतिक क्षेत्रों और उप-क्षेत्रों से जुड़ा तकनीकी परामर्श और अनुबंध और निर्माण, बुनियादी ढांचे के लिए वित्तीय सेवाएं, निर्यात ऋण गारंटी, ऊर्जा और आवास क्षेत्र, दूरसंचार और आईटी, बैंकिंग और बीमा से संबंधित सेवाएं.

इसका सबसे ज्यादा असर बैंकिंग जैसे क्षेत्रों में होने की उम्मीद है, जहां बड़ी संख्या में सरकारी स्वामित्व वाले बैंक संचालित होते हैं. पिछले साल सरकारी स्वामित्व वाले 10 बैंकों का विलय करके चार बैंक बनाए जाने और 2017 और 2018 में हुए विलय के बाद भी, भारत में अभी सरकारी स्वामित्व वाले 12 बैंक हैं.

‘निजी निवेशक बड़े खिलाड़ी साबित होंगे’

योजना के अनुसार, यहां तक कि जिन क्षेत्रों में सरकार अपनी उपस्थिति बनाए रखना चाहती है, उनमें भी एक फर्म में केवल उतनी हिस्सेदारी रखी जाएगी जितनी नियंत्रण बनाए रखने के लिए जरूरी हो.

लेकिन सरकार इनसे बाहर कब निकलेगी यह बाजार की स्थितियों और प्रस्ताव की व्यवहार्यता सहित कई कारकों पर निर्भर करेगा.


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सरकार के सूत्रों ने कहा कि निजी क्षेत्र की भागीदारी निजी पूंजी, प्रौद्योगिकी, इनोवेशन को बढ़ावा देगी और सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन व्यवस्था लागू करेगी.

बुनियादी क्षेत्र के एक मंत्रालय से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘यह रोजगार पैदा करके अर्थव्यवस्था को बड़ी मजबूती देगा. इन क्षेत्रों में बड़ी संभावनाएं हैं, जिनका विभिन्न कारणों से अब तक अहसास नहीं किया गया है. निजी निवेशक इस तरह के परिदृश्य में गेम-चेंजर साबित हो सकते हैं.’

दीपम प्रस्ताव के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के रणनीतिक विनिवेश से जुटाए गए संसाधनों का उपयोग सामाजिक क्षेत्र और विकास कार्यक्रमों के वित्तपोषण के लिए किया जा सकता है.

सरकारी अनुमानों के अनुसार, भारत में 348 सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम हैं और इन फर्मों में सरकार की हिस्सेदारी वाली कुल परिसंपत्ति लगभग 7 लाख करोड़ रुपये की है.

यदि इसे पूरी तरह से लागू किया गया तो यह वर्ष 2000 के बाद सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी विनिवेश योजना होगी, जब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों से पूरी तरह से बाहर निकलने की प्रक्रिया शुरू की थी.

विभिन्न क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति घटाने और सभी क्षेत्रों में निजी भागीदारी की अनुमति देने की सरकार की मंशा को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मई में ही जाहिर कर दिया था.

और बैंकों के विलय और निजीकरण की संभावना

सरकारी सूत्रों ने कहा कि वित्त मंत्रालय कैबिनेट की मंजूरी के एक महीने के भीतर नीति को अधिसूचित करेगा. हालांकि, इस पर वास्तविक रूप से अमल होने में अभी काफी समय लगेगा.

वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘अभी सिर्फ मंशा को जाहिर किया गया है. इन सार्वजनिक उपक्रमों में हिस्सेदारी घटाने और अंतत: इससे बाहर होने के लिए कई कदम उठाने होंगे.

बैंकिंग क्षेत्र पर उक्त अधिकारी ने कहा, मौजूदा समय में बजट घोषणा के मुताबिक सरकार की पहली प्राथमिकता आईडीबीआई बैंक में अपनी बची हिस्सेदारी को घटाने की है.

2018 में जीवन बीमा निगम ने बैंक में अधिकांश हिस्सेदारी ले ली थी और सरकार की शेयरधारिता लगभग 46 प्रतिशत ही बची थी.

अधिकारी ने आगे कहा, ‘सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों की संख्या घटाकर चार पर लाने के लिए अभी और बैंकों का विलय और निजीकरण हो सकता है.

जहां यह नीति लागू नहीं होगी

सरकार के सूत्रों ने कहा कि प्रस्तावित नीति प्रमुख बंदरगाह ट्रस्ट, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण आदि व अन्य स्वायत्त संगठनों या ट्रस्टों, नियामक प्राधिकरणों, पुनर्वित्त संस्थानों पर लागू नहीं होगी, जिनमें से कई का गठन संसद में कानून बनाकर किया गया है.

यह केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों पर भी लागू नहीं होगी जिसमें वित्तपोषण के जरिये कमजोर तबकों अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्गों को सहायता देने वाले संगठन शामिल हैं. इसके अलावा सुरक्षा लिहाज से मुद्रण और टकसाल, रेलवे जैसे संगठनों और विकास के लिए वाणिज्यिक संचालन वाले पदों को भी इससे बाहर रखा जाएगा.

इस नीति से बाहर रखे गए रेलवे, हवाईअड्डे, बंदरगाह और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण जैसे विभाग और संगठन परिसंपत्ति मुद्रीकरण या विभिन्न कार्यों या गतिविधियों का निजीकरण पूर्ववत जारी रखेंगे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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2 टिप्पणी

  1. निजीकरण से युवाओं को क्या फायदा होगा

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