नई दिल्ली: देश के कोने-कोने में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी ‘साइलेंट रेवोल्यूशन’ ला रहे हैं. वो अपने काम को ‘काम’ नहीं बल्कि ‘कर्म’ (ड्यूटी) समझ रहे हैं. कोई स्कूल में पढ़ाने पहुंच रहा है तो किसी ने कचरे में पड़ी बेकार चीजों से पूरे जिले के रंग-रूप को ही बदल कर रख दिया है. वहीं सिक्किम के आईएएस अधिकारी तो गांव-गांव पहुंचकर एक दो नहीं पूरे पांच गांव की हर कमी को समाप्त कर दिया. वहीं इंदौर के आईएएस अधिकारी की सूझ-बूझ और कचरा निपटारा देख देशभर के नगरनिगम अधिकारी उसी नक्शेकदम पर चलने लगे हैं..वहीं एक ने लोगों तक पहुंच बनाने के लिए अपना फोन नंबर दीवारों पर लिख दिया है.
दिप्रिंट हिंदी आपको ऐसे ही आईएएस अधिकारियों से मिलवा रहा है
भारत की बहुत बड़ी समस्या है प्रदूषण और प्लास्टिक कचरा. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड 2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल करीब 25,940 टन प्लास्टिक का कचरा निकलता है. देश के 60 बड़े शहरों से मिले आंकड़े के अनुसार 90 फीसदी प्लास्टिक रिसाइकिल होने के बजाए या तो पानी में बहा दिए जाते हैं या फिर खाली पड़ी जगहों पर उड़ते-फिरते दिखाई देते हैं. इसमें ऐसे कचरे भी शामिल हैं तो महज एकबार ही प्रयोग में लाए जा सकते हैं.
कचरे से सजाया पार्क और सड़क
प्लास्टिक कचरा हमारे जीवन को किस तरह प्रभावित कर रहा है और इसके उपयोग से हमें कैसे बचना है इसे लेकर गैर सरकारी संस्थाएं और सरकार दोनों ही कई अभियान चला रही हैं लेकिन हैदराबाद में ज़ोनल कमिशनर हरी चांदना देसारी ने दो सालों में प्लास्टिक की पानी की बोतलों और कोल्ड ड्रिंक की बोतल जो कल तक शहर की गंदगी बढ़ा रही थीं, उन्हें वेस्ट मैनेजमेंट की स्किल की बदौलत ग्रीन रेवोल्यूशन में बदल दिया. शहर के पार्क और सड़कों को उसी कचरे की बोतलों से सजा दिया.
चांदना का वेस्ट मैनेजमेंट यहीं नहीं थमा उन्होंने पुराने टायर, तेल के बड़े-बड़े ड्रम जो किसी प्रयोग के नहीं रह गए थे, उनका कोई उपयोग समझ में नहीं आ रहा था आज रंग रोगन के बाद वो सारे ड्रम और टायर खूबसूरत आकार ले चुके हैं. हैदराबाद के 120 पार्क के रंग रूप को बदल दिया है.
देसारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘जब मैंने यह प्रयोग करना शुरू किया तो हमारे विभाग के इंजीनियरों ने कहा इससे कुछ नहीं होगा. मैंने फिर इसे चैलेंज के रूप में लिया और परिणाम आपके सामने है. इस बदलाव की तारीफ सिर्फ हैदराबाद ही नहीं बल्कि देशभर में तारीफ हो रही है.’
देसारी कहती हैं- ‘मैंने देखा की नगर निगम के ऑफिस में प्रयोग में नहीं लिए जा रहे टायर पड़े हैं, मैंने उसे पेंट कर साफ कराया और ऑफिस आने वाले लोगों के लिए बैठने के उपयोग लायक बनवाया, फिर बाद में उसे पार्क और आम जन के उपयोग के लिए पार्कों में लगवाया.’
शहर के सौंदर्यीकरण के बाद कुछ नए काम में जुटी हैं. देसारी ने शहर में डॉग पार्क का निर्माण कराया है, जहां पालतू कुत्ते को लेकर शहर वाले घूमने जा सकते हैं. वहां 24 प्रकार के ऐसे इक्वीपमेंट लगाए हैं जहां मालिक अपने कुत्तों को एक्सरसाइज़ करवा सकते हैं, वैक्सीनेशन कराने से लेकर घुमाने तक की हर सुविधा वाला यह देश का पहला पार्क है.
देसारी के ही क्लासमेट रहे आशीष सिंह भी इसी तरह इंदौर में बदलाव की कहानी लिख रहे हैं.
देश ले रहा है आशीष से ज्ञान
स्वच्छता अभियान में लगातार तीन वर्षों से नंबर एक मध्यप्रदेश के इंदौर के नगर निगम कमिश्नर आशीष सिंह बायो माइनिंग मॉडल के जरिए शहर के 13 लाख टन कूड़े को महज छह महीने में निपटा दिया और कूड़े का प्रयोग खाद बनाने के लिए किया. आज उनके इस मॉडल से पूरा देश सीख ले रहा है.
2010 बैच के मध्यप्रदेश कैडर के आईएएस आशीष इंदौर नगर निगम में कमिश्नर हैं. सिंह ने प्रिंट को बताया, ‘दो वर्षों में सिर्फ दो लाख टन कूड़ा ही साफ हो सका.’ जिसके बाद उन्हें नगर निगम कमिश्नर के तौर पर नियुक्त किया गया जहां उन्होंने कूड़ा निपटाने को एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में देखते हुए एक मिशन की तरह काम किया.
इंदौर नगर निगम कूड़े का उपयोग कुछ अलग तरीके से कर रही है. गीले कूड़े को उपयोग मिथेन गैस बनाने में किया जा रहा है जो शहर में चल रही बस में फ्यूल के रूप में उपयोग किया जा रहा है वहीं इससे निकलने वाले खाद को किसानों को दिया जा रहा है जो इसका उपयोग खेती और हॉर्टीकल्चर के रूप में कर रहे हैं. जबकि सूखे कूड़े की रिसाइक्लिंग की जा रही है.
सिंह ने कहा, ‘हमारा मॉडल को पूरा देश अपनाएगा यह तय है. 100 फीसदी.’
आशीष से जब पूछा कि आपके इस काम में राजनैतिक दखलअंदाजी नहीं की गई? तो वह तपाक से बोले, ‘साफ सफाई के मामले में इंदौर की मेयर ने खूब सपोर्ट किया.’
आशीष का नया चैलेंज शहर के बीचों बीच बह रही नदियां जो अब गंदा नाला बन चुकी हैं उन्हें उनके स्वरूप में वापस लाना है. शहर के बीचों बीच कान्ह और गंभीर नदी गुजरती है जिसमें शहर की गंदगी और मल जाता है जिसका निपटारा ही आशीष का मुख्य मुद्दा है.
आशीष ने प्रिंट को बताया, ‘नदियों के किनारे 434 जगहों का चयन किया है जो नदी में जा रही गंदगी को पूरी तरह से ट्रीट करेगा और नदी दिसंबर तक अपने अविरल स्वरूप में होगी.’
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में शहरी विकास विभाग में एडिशनल कमिशनर डॉ. पंकज जैन ने अपनी बेटी पंखुड़ी को आंगनवाड़ी स्कूल भेज समाज के बड़े और अमीर लोगों के बीच मिसाल बने. पंकज दिप्रिंट को बताते हैं, ‘मैंने तो छोटी सी बच्ची को खेलने-कूदने के लिए आंगनवाड़ी भेजा था. मेरी इस छोटी सी पहल से आंगनवाड़ी में काम कर रहे कर्मचारी खूब प्रोत्साहित हुए.’ आज वह आंगनवाड़ी आईएसओ सर्टिफाइड है.
डॉ जैन कहते हैं, ‘मैंने किसी को डराने या फिर धमकाने के लिए बच्ची को आंगनवाड़ी नहीं भेजा था. वहां की साफ-सफाई अच्छी थी और कर्मचारी बहुत बढ़-चढ़ कर भाग लेते थे. बच्ची का भी वहां खूब मन लगता है.’
‘ वैसे तो हमारा काम अपने जिले की प्रशासनिक व्यवस्था को देखना है लेकिन इस छोटे से कदम से बदलाव बड़ा आया है. वहां के कर्मचारियों ने इस बदलाव को सकारात्मक लिया.’
अपना गांव आप बनाओ का नारा दिया
सिक्किम कैडर के 2009 बैच के आईएएस अधिकारी राज कुमार यादव सिक्किम का जाना पहचाना चेहरा है. राज यादव ने जिला कार्यालयों के एक एक कर्मचारी में इतना जोश भरा कि उन्होंने सिक्किम के पांच गांवों को गोद लेकर वहां के 7500 से अधिक लोगों की जिंदगी में बदलाव ला दिया है. कल तक सूरज डूबते ही घरों में घुस जाने वाले लोग शाम को घरों से बाहर निकलकर खेल के मैदान में पहुंचते हैं.
महज तीन साल पहले सिक्किम के रोंग-बुल गांव में जैसे ही सूर्य अस्त होने लगता था सभी अपने अपने घरों में दुबक जाते थे. गांवों का हाल बुरा था, न सड़क थी, न घरों में पानी था और ना ही बिजली ही थी लेकिन संसद आदर्श ग्राम योजना 2014 में लांच होने के बाद रोंगबुल में बदलाव की लहर बही और उस समय प्रोजेक्ट देख रहे आईएएस राज यादव ने सोचा कि अगर इस बदलाव को जिला प्रशासन के सारे अधिकारी ही गोद लें तो उनका जुड़ाव ही अलग होगा.
यादव की सोच रंग लाई और अधिकारी ग्रासरूट स्तर पर पहुंचे और उनकी परेशानियों को समझा. अब गांव बदल चुका है. पांच गांवों में रह रहे दो दो हजार लोगों की जिंदगी में बड़ा बदलाव आया है. रोंगबुल गांव 4400 फीट ऊंचाई पर स्थित है. अक्सर सूखा और पानी की कमी से जूझने वाले गांव में पानी, बिजली जाती ही नहीं है. शिक्षक विहीन स्कूलों में शिक्षक नजर आने लगे हैं.
अपना गांव, आप बनाओ के मिशन के साथ आगे बढ़े आईएएस राज यादव ने दिप्रिंट बताया, ‘अब मेरा ट्रांसफर गैंगटोक कर दिया गया है. अब मैं नए चैलेंज लेने जा रहा हूं.’
‘रोंगबुल में संसद आदर्श ग्राम योजना के बाद ‘दाव’ के अंतगर्त हम ग्राम पंचायत तक पहुंचे और एक एक शख्स से बात की. बिना बातचीत और गांव वालों के समर्थन के आदर्श गांव की परिकल्पना संभव नहीं थी. हमने गांव की महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को सुना और फिर हमने बदलाव का काम शुरू किया. हर एक विभाग को उनका बेहतरीन करने की जिम्मेदारी सौंपी गई. बिजली, शिक्षा, लॉ एंड ऑर्डर, साफ सफाई.’
राज बताते हैं, ‘यह काम आज जितना आसान लग रहा है उतना था नहीं. जब हम गांव पहुंचे तो लोगों ने हमारी बात का विश्वास नहीं किया. लेकिन हमने काम जारी रखा, शुरुआत बच्चों और स्कूलों से की फिर सड़क, बिजली में हाथ लगाने के साथ ही लोगों का विश्वास बना और वो हमारे साथ जुड़ते गए.’
लोगों तक पहुंचने के लिए दीवारों पर लिखवा दिया अपना फोन नंबर
“अब मैं सूरज को नहीं डूबने दूंगा,
देखो मैंने कंधे चौड़े कर लिये हैं
मुट्ठियां मजबूत कर ली हैं
और ढलान पर एड़ियां जमाकर
खड़ा होना मैंने सीख लिया है.’
27 जुलाई को ट्वीटर की यह पोस्ट बहुत कुछ कहती है. यह पोस्ट है छत्तीसगढ़ में कबीरधाम जिले के कलेक्टर आईएएस अवनीश शरण की. अवनीश जितना अपने जिले में काम काज को लेकर चर्चित हैं उतने ही सोशल मीडिया पर भी. उन्होंने जिले में कई जगह आम जन से सीधी पहुंच के लिए दीवारों पर अपना नंबर तक लिखवा रखा है. वह बताते हैं, ‘एक दिन मैं स्कूल पहुंचा, बच्चों से सवाल-जवाब के दौरान पूछा क्या बनना चाहते हो..अभी पूछ ही रहा था कि बच्चे ने जवाब दिया कलेक्टर.’
‘मैंने पूछा कलेक्टर देखा है- छात्र ने तपाक से कहा- आप हैं…मैंने पूछा कैसे पहचाना? बोला- व्हाट्सएप पर देखा..कैसे बोला- आपका नंबर दीवार पर है, अपने मोबाइल पर सेव किया आपकी प्रोफाइल फोटो देखी और पहचान लिया.’
अवनीश दो वर्ष पहले तब चर्चा में आए जब उन्होंने अपनी बेटी को सरकारी स्कूल में एडमिशन करा दिया. उन्होंने अपनी बेटी को पहले आंगनबाड़ी में पढ़ाया, फिर सरकारी स्कूल में.जिले में वह कभी स्कूल पहुंच कर मिड डे मील खाने बैठ जाते हैं तो कभी बच्चों को जोश दिलाने के लिए उन्हें पढ़ाने लग जाते हैं.
मूल रूप से बिहार के रहने वाले अवनीश शरण दि प्रिंट से कहते हैं, ‘मैंने सरकारी स्कूल में ही पढ़ाई की है. आज सरकारी नौकरी सभी चाहते हैं, लेकिन सरकारी स्कूल और अस्पताल नहीं जाना चाहते हैं.’
‘थोड़ा सा मोटीवेशन और थोड़ा सा काम ही पूरी सोसाइटी को बदल सकने की ताकत रखता है.’
अवनीश की प्राथमिकता स्कूल और अस्पताल हैं. बलरामपुर की पोस्टिंग से लेकर कवर्धा तक अवनीश ने हर दिन बदलाव के लिए काम किया है. वह कहते हैं कि मोटर बाइक पर एंबुलेंस बनाते ही बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है.
अवनीश ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारा हर जगह पहुंचना संभव नहीं है तो मैंने अपना नंबर अस्पताल और स्कूलों की दीवारों पर लिखवा दिया..गांव वाले और स्कूल के बच्चे मुझे टीचर की कमी से लेकर अस्पताल में हो रही कमियों तक की जानकारी देते हैं, मेरे लिए काम आसान हो जाता है और गांव वाले भी खुश होकर हमारी मदद में आगे आते हैं.
‘इंसान के चाहने से समाज में बदलाव नहीं होता, समाज अपने समय के साथ ही बदलता है. हम लाखों लोगों के बीच प्रतियोगिता में पास होकर आए हैं तो हमें ही बदलाव की कहानी लिखनी है.’