scorecardresearch
Saturday, 21 December, 2024
होमदेशदेश में इस साल मारे गए ये 5 पत्रकार, 4 की ‘हत्या’, एक जान जोखिम में डालकर अपने काम पर निकला था

देश में इस साल मारे गए ये 5 पत्रकार, 4 की ‘हत्या’, एक जान जोखिम में डालकर अपने काम पर निकला था

पत्रकारों की सुरक्षा पर नजर रखने वाले संगठन का कहना है कि इस साल भारत में ऐसे पत्रकारों की संख्या सबसे ज्यादा रही जिन्हें अपने काम का ‘खामियाजा’ अपनी जान देकर चुकाना पड़ा. दिप्रिंट ने इन्हीं मामलों की पड़ताल की और पता लगाया कि उनमें अब तक क्या-क्या हुआ है.

Text Size:

नई दिल्ली: अमेरिकी गैर-लाभकारी संगठन कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (सीपीजे) की तरफ से इसी हफ्ते जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल भारत में अपने काम की ‘सजा’ के तौर पर मारे गए पत्रकारों की संख्या सबसे अधिक रही है.

प्रेस की स्वतंत्रता और मीडिया पर हमलों के संबंध में अपने वार्षिक सर्वेक्षण में निगरानी संगठन ने कहा कि दुनियाभर के 19 पत्रकारों में से चार अकेले भारत के जिन्हें 2021 में ‘अपने काम की सजा अपनी जान देकर चुकानी पड़ी’ है. वहीं, पांचवें की एक मौत एक ‘जोखिम भरे असाइनमेंट’ पर रहने के दौरान हुई.

सीपीजे के मुताबिक, मारे गए पांच पत्रकारों में से चार को ‘पुष्ट’ तौर पर उनकी कवरेज की वजह से मार डाला गया था. हालांकि, इनमें से कुछ मामलों में पुलिस का वर्जन सीपीजे की रिपोर्ट में कही गई बातों से एकदम अलग है.

दिप्रिंट ने पांच पत्रकारों की मौत से जुड़े घटनाक्रम की पड़ताल की और यह पता लगाया कि आज इन मामलों में क्या स्थिति है.

सुलभ श्रीवास्तव: पुलिस ने ‘दुर्घटना’ माना, परिवार इससे सहमत नहीं

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में रहने वाले टेलीविजन पत्रकार सुलभ श्रीवास्तव एबीपी न्यूज और इसकी क्षेत्रीय शाखा एबीपी गंगा के लिए काम करते थे.

42 वर्षीय पत्रकार को शराब माफिया पर अपनी रिपोर्ट के बाद जान से मार देने की धमकी मिली थी और इस बारे में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को लिखे जाने के दो दिन बाद ही 13 जून को उन्हें एक ईंट भट्टे के पास मृत पाया गया.

श्रीवास्तव ने अपने पत्र में लिखा था, ‘मेरे चैनल के न्यूज पोर्टल पर 9 जून को जिले के शराब माफिया के खिलाफ मेरी एक रिपोर्ट चली थी. तब से ही इस रिपोर्ट को लेकर काफी चर्चा है. जब मैं अपने घर से निकलता हूं तो ऐसा लगता है कि कोई मेरा पीछा कर रहा है… मैंने अपने सूत्रों के माध्यम से सुना है कि शराब माफिया मेरी रिपोर्टिंग से नाराज है और मुझे नुकसान पहुंचा सकता है. मेरा परिवार भी बहुत चिंतित है.’

हालांकि, जब श्रीवास्तव का शव मिला तो पुलिस ने शुरू में इसे ‘मोटरसाइकिल दुर्घटना’ करार दिया, और बाद में उनकी पत्नी की तरफ से अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का आरोप लगाए जाने की शिकायत दर्ज कराए जाने के बाद ही हत्या का मामला दर्ज किया.

उस समय प्रतापगढ़ के पुलिस अधीक्षक (एसपी) आकाश तोमर ने कहा कि श्रीवास्तव के सहयोगियों और घटनास्थल पर मौजूद लोगों के बयानों के आधार पर यह घटना हादसे में मौत होने जैसी प्रतीत होती है.

पुलिस ने यह दावा भी किया था कि पत्रकार ने हादसे से दो घंटे पहले ‘शराब पी थी.’ हालांकि, श्रीवास्तव की पत्नी रेणुका ने कहा कि वह एक अवैध हथियारों के कारखाने से जुड़ी खबर कवर करने के लिए घर से निकले थे.

फ्रांसीसी मीडिया वॉचडॉग रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने घटना की स्वतंत्र जांच की मांग की थी और सीपीजे ने भी ‘एक व्यापक और निष्पक्ष जांच’ के लिए दबाव डाला था.

दिप्रिंट ने जब प्रतापगढ़ के मौजूदा पुलिस अधीक्षक (एसपी) सतपाल से बात की तो उन्होंने बताया कि प्रत्यक्षदर्शियों और अन्य लोगों की गवाही के आधार पर मामला बंद कर दिया गया है जो सुलभ श्रीवास्तव की मृत्यु से पहले उनके साथ थे.

अधिकारी ने बताया, ‘तीन लोग एक साथ चल रहे थे—मनीष, रोहित और सुलभ. मनीष और रोहित एक मोटरसाइकिल पर थे और सुलभ दूसरी पर. लौटते समय सड़क पर सुलभ की बाइक एक खंभे से जा टकराई और बाद में अस्पताल में उनकी मौत हो गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण सदमा और अधिक खून बह जाना ही पाया गया था.’

हालांकि, ‘दुर्घटना’ के शिकार पत्रकार की तस्वीरों को लेकर कुछ विवाद उत्पन्न हो गया था. एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीवास्तव के चेहरे पर चोट के निशान थे और ऐसा लग रहा था जैसे उनके कपड़े भी कुछ फटे हुए हैं.

मनीष सिंह: तीन गिरफ्तारियां लेकिन ‘मकसद’ का नहीं पता चला

सुदर्शन टीवी के पत्रकार मनीष सिंह के लापता होने के तीन दिन बाद 10 अगस्त को बिहार के पूर्वी चंपारण में मृत पाया गया था. उसका शव मथलोहियार गांव की एक झील से बरामद हुआ था.

उस समय मनीष के पिता संजय सिंह, जो स्थानीय अखबार अरेराज दर्शन के प्रधान संपादक हैं, ने दिप्रिंट को बताया था कि उन्हें इसके पीछे ‘उन लोगों का हाथ होने की आशंका है जिनके खिलाफ बतौर पत्रकार मैंने और मेरे बेटे ने लिखा था.’ संजय ने यह भी कहा कि उन्हें और मनीष को धमकियां मिली थीं क्योंकि उन्होंने ‘जिहादी दुश्मन और भ्रष्टाचार’ के खिलाफ लिखा था.

संजय के मुताबिक, मनीष के पास अमरेंद्र नाम के एक अन्य पत्रकार का फोन आया था और वह 7 अगस्त को दोपहर में घर से निकला लेकिन फिर लौटकर नहीं आया.

पुलिस ने मृतक के तीन परिचितों—अमरेंद्र कुमार, मोहम्मद अरशद आलम और महेंद्र सिंह को गिरफ्तार भी किया है लेकिन मामले में हत्या की परिस्थिति के बारे में अभी तक कुछ साफ नहीं हो पाया है.

नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि तीनों पर हत्या और अपहरण का आरोप लगाया गया है, मामले की जांच अभी जारी है और मकसद स्पष्ट नहीं है.

अधिकारी ने कहा, ‘एफआईआर में एक दर्जन से अधिक लोगों के नाम हैं. जांच अभी जारी है—कई मकसद सामने आए हैं जिसमें कुछ लोगों का उसकी रिपोर्ट और उसके पिता की पत्रकारिता से नाराज होने की बात भी सामने आई है लेकिन हम अभी किसी मकसद और हत्या की साजिश के बीच लिंक स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं.’

चेन्नाकेसवालु: भ्रष्टाचार का खुलासा करने पर कांस्टेबल ने ‘मार डाला’

आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में ईवी5 से जुड़े 35 वर्षीय पत्रकार चेन्नाकेसवालु को 8 अगस्त को कथित तौर पर एक निलंबित पुलिसकर्मी और उसके भाई ने मार डाला.

पुलिसकर्मी वेंकट सुब्बैया को पत्रकार की तरफ से उसके और मटका जुआरियों और तंबाकू तस्करों के बीच कथित सांठगांठ उजागर करने वाली एक रिपोर्ट प्रकाशित करने के बाद पद से निलंबित कर दिया था.

चेन्नाकेसवालु की मौत से एक महीने पहले उसके यूट्यूब चैनल पर रिपोर्ट पब्लिश हुई थी और कथित तौर पर इसके बाद ही निलंबित पुलिसकर्मी ने उसकी हत्या की साजिश रची. पत्रकार की रिपोर्ट पर जांच के दो हफ्ते बाद ही वेंकट सुब्बैया को निलंबित कर दिया गया था. पुलिस ने दोनों आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया है.


यह भी पढ़ें: अपने काम के लिए 2021 में भारत में 4 पत्रकारों की ‘हत्या’: CPJ रिपोर्ट


अविनाश झा : पुलिस ने ‘लव अफेयर’ को बताया वजह लेकिन ‘मकसद अस्पष्ट’ ही है

आरटीआई कार्यकर्ता और बीएनएन न्यूज के पत्रकार 24 वर्षीय अविनाश झा 9 नवंबर को लापता हो गए थे और फिर आंशिक तौर पर जला हुआ उनका शव तीन दिन बाद बिहार के मधुबनी जिले के बाहरी इलाके में बरामद किया गया था.

पुलिस ने दावा किया कि यह हत्या प्रेम संबंधों के कारण हुई थी और इस घटना के संबंध में एक महिला पूर्णा कला देवी और पांच अन्य लोगों—रोशन कुमार, बिट्टू कुमार, दीपक कुमार, पवन कुमार और मनीष कुमार—को गिरफ्तार कर लिया. सभी बेनीपट्टी प्रखंड के रहने वाले हैं. एक नर्स का काम करने वाली पूर्णा कला देवी और रोशन कुमार दोनों अनुराग हेल्थकेयर नामक एक नर्सिंग होम में काम करते थे.

पुलिस ने दावा था कि पूर्णा को अविनाश से प्रेम हो गया था लेकिन पवन कुमार नामक एक अन्य आरोपी को इस पर ईर्ष्या होने लगी और उसने उस पर पत्रकार से बात न करने का दबाव डाला. इसके बाद पवन ने अविनाश की हत्या के लिए रोशन कुमार से मदद ली—जो बेनीपट्टी में एक टेस्टिंग लैब चलाता था. पुलिस ने बताया कि इसके पीछे रोशन का मकसद यह था कि झा ने उसकी लैब बंद कराने की धमकी दी थी.

हालांकि, मृतक पत्रकार के भाई चंद्रशेखर झा ने कहा कि हत्या का असली कारण यह था कि अविनाश झा क्षेत्र में ‘फर्जी’ चिकित्सा प्रतिष्ठानों को उजागर कर रहे थे और उनके काम के कारण कई संदिग्ध क्लीनिकों और लैब पर जुर्माना हुआ था या वे बंद करा दिए गए थे. अपने लापता होने से दो दिन पहले 7 नवंबर को पत्रकार ने फेसबुक पर पोस्ट किया था: ‘खेल 15/11/2021 को फिर से शुरू होगा.’

चंद्रशेखर ने 11 नवंबर को बेनीपट्टी पुलिस स्टेशन में अनुराग हेल्थ केयर (अन्य क्लीनिकों के साथ जिन्हें उन्होंने ‘मेडिकल माफिया’ बताया) के खिलाफ एक नामजद शिकायत दर्ज कराई थी. पत्रकार का शव मिलने के तीन दिन बाद जिले अधिकारियों ने नर्सिंग होम को नोटिस भेजा.

दिप्रिंट ने एसपी मधुबनी सत्यप्रकाश से बात की जिन्होंने बताया कि इस मामले में दो अन्य लोगों सरोज और मनोज चौधरी को गिरफ्तार किया गया है. अधिकार ने कहा ‘सरोज का यहां एक नर्सिंग होम भी है. हम अभी सबूत इकट्ठा कर रहे हैं और मकसद बहुत स्पष्ट नहीं हो पाया है.’

शुरू में प्रेम संबंध के दावे किए जाने के बाबत पूछने पर कहा, ‘पूर्णा और कुमार ने इस बात को कबूला था, इसलिए हमने प्रेम त्रिकोण को इसका मकसद बताया लेकिन अन्य तमाम पहलुओं को भी ध्यान में रखकर जांच की जा रही है.’

रमन कश्यप: ड्यूटी पर रहने के दौरान गंवाई जान

साधना टीवी प्लस 33 वर्षीय रिपोर्टर रमन कश्यप अक्टूबर में लखीमपुर खीरी में भड़की हिंसा में दौरान मारे गए थे और उनकी मृत्यु को सीपीजे ने ‘जोखिम भरे असाइनमेंट’ के दौरान हुई मौत के तौर पर सूचीबद्ध किया है.

विशेष जांच दल (एसआईटी) 3 अक्टूबर की इस घटना की जांच कर रहा है जिसमें कथित तौर पर भाजपा कार्यकर्ताओं के वाहनों के काफिले की चपेट में आकर चार किसानों सहित आठ लोग मारे गए थे. अन्य पीड़ितों में दो बीजेपी कार्यकर्ता और एक उनका ड्राइवर था.

घटना को कवर करने की कोशिश के दौरान निघासन निवासी कश्यप घायल हो गए थे. उसके भाई पवन ने तब बताया था कि जब कश्यप को शाम 6 बजे के आसपास घटनास्थल से उठाया गया तब ‘शायद वह जीवित था’, लेकिन तत्काल इलाज मुहैया कराने के बजाये पुलिस उसे मुर्दाघर ले गई.

यूपी सरकार ने घटना की न्यायिक जांच शुरू कराने के साथ मृतकों और घायलों के परिवारों को मुआवजा देने की घोषणा की. इस मामले में अब तक केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा—जो कथित तौर पर इस काफिले में शामिल थे—और 13 अन्य के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया जा चुका है.

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: राजनीतिक राय और पत्रकारों को दबाने के लिए राज्य बल का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिएः सुप्रीम कोर्ट


share & View comments