नयी दिल्ली, सात नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि जेलों में विचाराधीन कैदियों या दोषियों के रजिस्टर में जाति के किसी भी तरह के उल्लेख के साथ साथ ‘‘जाति’’ की प्रविष्टि को हटाने संबंधी उसके निर्देश से राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा आंकड़ों के संग्रह में कोई बाधा नहीं आयेगी।
प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने यह स्पष्टीकरण दिया।
उच्चतम न्यायालय ने तीन अक्टूबर को दिये अपने एक ऐतिहासिक फैसले में जेलों में जाति आधारित भेदभाव को प्रतिबंधित कर दिया था और इस प्रकार का भेदभाव करने वाले 10 राज्यों की जेल नियमावली को ‘‘असंवैधानिक’’ करार दिया था।
फैसले में दिए गए निर्देशों में से एक में कहा गया है, ‘‘जेलों के अंदर विचाराधीन या दोषी कैदियों के रजिस्टर में ‘जाति’ कॉलम और जाति से संबंधित किसी भी संदर्भ को हटा दिया जायेगा।’’
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एस. मुरलीधर ने कहा कि आवेदन में अनुरोध किया गया था कि रजिस्टरों से जाति संदर्भ हटाने के निर्देश देकर एनसीआरबी आंकड़ों के संग्रहण के कार्य में बाधा न डाली जाये।
उच्चतम न्यायालय ने तीन अक्टूबर के अपने फैसले में कहा था कि ‘‘सम्मान के साथ जीने का अधिकार कैदियों को भी प्राप्त है।’’
पीठ ने केंद्र और राज्यों से तीन महीने के भीतर अपने जेल नियमावली और कानूनों में संशोधन करने और उसके समक्ष अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था।
पीठ ने उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश के जेल नियमावली के कुछ भेदभावपूर्ण प्रावधानों पर गौर किया और उन्हें खारिज कर दिया था।
न्यायालय ने कहा था, ‘‘ऐसे नियम जो विशेष रूप से या परोक्ष रूप से जाति पहचान के आधार पर कैदियों के बीच भेदभाव करते हैं, वे अवैध वर्गीकरण और मौलिक समानता के उल्लंघन के कारण अनुच्छेद 14 का उल्लंघन हैं।’’
पत्रकार सुकन्या शांता की एक जनहित याचिका पर यह फैसला सुनाया गया था। शांता ने जेलों में प्रचलित जाति-आधारित भेदभाव पर एक लेख भी लिखा था।
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देवेंद्र माधव
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