नई दिल्ली: मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में 39 वर्षीय रेडियोलॉजिस्ट डॉ. नगैजावुंग को पिछले साल राज्य में 200 से अधिक दिनों तक लंबे समय तक इंटरनेट बंद रहने के कारण कई महीनों तक रेडियोलॉजी रिपोर्ट मैन्युअल रूप से भेजने के लिए मजबूर होना पड़ा था. कानूनी सेवा संगठन सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (एसएफएलसी) के अनुसार, मणिपुर में शटडाउन – कश्मीर में 552 दिनों तक चले शटडाउन के बाद – ने भारत को लगातार पांच वर्षों तक इंटरनेट शटडाउन में वैश्विक रूप से अग्रणी बना दिया है.
3 मई को कुकी-ज़ो और मैतेई समुदायों के बीच सांप्रदायिक झड़पों के कारण भड़की हिंसा के बाद राज्यव्यापी इंटरनेट शटडाउन लागू किया गया था. पूर्वोत्तर में सबसे लंबे समय तक लगाया गया पूर्ण प्रतिबंध आखिरकार 23 सितंबर को हटा लिया गया, जिसे तीन दिन बाद फिर से लागू कर दिया गया. यह 3 दिसंबर तक जारी रहा.
इंटरनेट सोसाइटी पल्स के नेटलॉस कैलकुलेटर का अनुमान है कि इसके परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग 2.8 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ. कैलकुलेटर “आर्थिक, सामाजिक और अन्य परिणामों की एक श्रृंखला” पर इंटरनेट शटडाउन के प्रभाव का अनुमान लगाता है. मंच ने भारत में इस तरह के शटडाउन का जोखिम 16.2 प्रतिशत पर रखा है, जो 2023 में वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक में से एक है.
Top10VPN.com द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार, 2023 में, भारत को 6,000 से अधिक घंटों के इंटरनेट शटडाउन के कारण 481.6 मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ, जिससे 56.7 मिलियन लोग प्रभावित हुए.
3 दिसंबर, 2023 तक, चुराचांदपुर में इंटरनेट सेवाएं छिटपुट थीं, और जबकि ब्रॉडबैंड सेवाओं की अनुमति थी, सीमित पहुंच के कारण अधिकांश डिजिटल रूप से कटे हुए थे.
डॉ. नगैजावुंग ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, “शुरुआत में यह वास्तव में कठिन था. मरीजों को रिपोर्ट लेने के लिए डायग्नोस्टिक सेंटर तक जाना पड़ता था और पैसे भी निकालने पड़ते थे, क्योंकि इंटरनेट न होने का मतलब डिजिटल भुगतान भी नहीं था.”
इस बीच, जब उथल-पुथल के बीच ऑनलाइन कक्षाएं फिर से शुरू हुईं तो मणिपुर के मेडिकल कॉलेजों के छात्रों ने खुद को “नो-इंटरनेट जोन” में पाया.
वाई-फाई सेवाएं बहाल होने के बाद भी, कई लोगों को उनके फोन पर इंटरनेट सर्विस को फिर से बहाल कराने के लिए वेवर पर हस्ताक्षर करने के लिए जियो और एयरटेल कार्यालयों में जाना पड़ा, जिसमें कहा गया था कि व्यक्ति स्वेच्छा से किसी भी ऑनलाइन गतिविधि में भाग नहीं लेगा जो सरकार के खिलाफ है. कॉस्मेटिक्स की दुकान चलाने वाले लम्का निवासी जॉन हेनकम उनमें से एक थे.
“ज्यादा परेशानी कम्युनिकेशन में थी. 30 वर्षीय ने दिप्रिंट से कहा, हम शुरू में न्यूज तक नहीं पहुंच सके, इसलिए हमारे पास यह पुष्टि करने का कोई तरीका नहीं था कि झड़प के दौरान क्या न्यूज़ आई. बेशक, व्यवसाय के लिए, अधिकांश लोग नकदी का सहारा लेने लगे क्योंकि डिजिटल भुगतान पूरी तरह से बंद हो गया था. इंटरनेट सेवाएं वापस आने के बाद, प्रत्येक व्यक्ति से सरकार द्वारा जारी छूट फॉर्म पर हस्ताक्षर करवाए गए.
पिछले 11 वर्षों में, भारत में इंटरनेट शटडाउन के उपयोग में वृद्धि देखी गई है, जिससे मानवाधिकारों और सामाजिक-आर्थिक विकास पर उनके प्रभाव के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं. आपातकाल के दौरान डॉक्टरों से संपर्क करने में असमर्थ अस्पताल, उम्मीदवारों की जानकारी से वंचित मतदाता, आर्थिक बर्बादी का सामना कर रहे हस्तशिल्प निर्माता, और छात्रों की परीक्षा छूट जाना – ये व्यापक इंटरनेट शटडाउन के कुछ परिणाम हैं, जैसा कि इस साल जून में ह्यूमन राइट्स वॉच और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की एक रिपोर्ट में बताया गया है.
साइबर सुरक्षा कंपनी सर्फ़शार्क के वार्षिक विश्लेषण से पता चला है कि भारत ने 2023 में वैश्विक स्तर पर इंटरनेट शटडाउन में शीर्ष स्थान हासिल किया और 2015 से 112 मामलों के साथ “विश्व की इंटरनेट शटडाउन राजधानी” कहा गया.
दुनिया भर में कुल इंटरनेट शटडाउन में एशिया का हिस्सा 71 प्रतिशत रहा, जो इंटरनेट आउटेज के मामले में दुनिया में सबसे आगे है. इसमें से इंटरनेट बैन किए जाने की एशियाई घटनाओं में से अधिकांश (74 प्रतिशत से अधिक) के लिए जम्मू-कश्मीर जिम्मेदार है. ईरान 46 बार इंटरनेट बैन के साथ दूसरे स्थान पर और पाकिस्तान 13 बार के साथ तीसरे स्थान पर रहा. चीन 2015 के बाद से केवल 4 बार के साथ 12वें स्थान पर रहा.
दिप्रिंट से बात करते हुए, डिजिटल अधिकार कार्यकर्ता और सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर के संस्थापक मिशी चौधरी ने कहा कि भारत में इंटरनेट शटडाउन लगाने की शक्ति केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के पास है, जो दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 और दूरसंचार सेवा नियमों के अस्थायी निलंबन के तहत आता है.
हालांकि, शटडाउन आदेशों को एक्ज़ीक्यूट करने में पारदर्शिता, जवाबदेही और उचित प्रक्रिया के पालन की कमी को लेकर चिंताएं बनी हुई हैं.
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कानूनी ढांचा और जवाबदेही
इंटरनेट शटडाउन, जिसे इंटरनेट सेवाओं तक पहुंच में बाधा के रूप में परिभाषित किया गया है, विशेष रूप से मोबाइल इंटरनेट को प्रभावित करना, भारत में बढ़ती चिंता का विषय बन गया है.
ऐतिहासिक रूप से, सीआरपीसी की धारा 144 के तहत इंटरनेट शटडाउन लगाया जाता रहा है. जिससे अधिकारियों को कुछ गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए सेल फोन और टावरों सहित संपत्तियों के उपयोग का निर्देश देने की अनुमति मिल जाती है. हालांकि, इन शटडाउन के लिए चुनौतियां उस वक्त सामने आईं, जब गुजरात उच्च न्यायालय ने 2015 में पाटीदार आंदोलन के दौरान मोबाइल इंटरनेट को निलंबित करने की मजिस्ट्रेट की शक्ति को बरकरार रखा.
इसके बाद, 2017 में, सरकार ने दूरसंचार सेवाओं के अस्थायी निलंबन (सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा) नियम, 2017 को पेश करते हुए कानून में संशोधन किया. यह नियम, भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5(2) के आधार पर, अधिकारियों को सार्वजनिक आपातकाल की स्थिति में या सार्वजनिक सुरक्षा के लिए, इंटरनेट सहित दूरसंचार सेवाओं को निलंबित करने की शक्ति प्रदान करता है.
टेलीकॉम इंटरनेट सस्पेंशन नियमों में उल्लिखित कानूनी आवश्यकताओं के बावजूद, पारदर्शिता और इंटरनेट शटडाउन से संबंधित आदेशों के गैर-प्रकाशन को लेकर चिंताएं बनी हुई हैं. प्रेस या आधिकारिक राजपत्रों में शटडाउन के बारे में जानकारी देने वाले प्रावधानों की अनुपस्थिति प्रभावित उपयोगकर्ताओं के बीच जागरूकता की कमी पर सवाल उठाती है.
सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2020 में जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट शटडाउन पर फैसला सुनाते हुए इनमें से कुछ चिंताओं को हल किया.
भारत सरकार ने अगस्त 2019 में जम्मू और कश्मीर में लैंडलाइन, फिक्स्ड-लाइन इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क सहित सभी संचार नेटवर्क पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया. अनुच्छेद 370 के माध्यम से राज्य की संवैधानिक स्वायत्तता को वापस लेने के सरकार के फैसले के बाद कश्मीरियों द्वारा किसी भी विरोध को रोकने के लिए यह उपाय किया गया था. हालांकि कुछ सेवाओं को धीरे-धीरे बहाल किया गया था, फरवरी 2021 तक लगभग 500 दिनों तक मोबाइल 4 जी इंटरनेट कनेक्शन प्रभावी रूप से अनुपलब्ध था.
अदालत ने घोषणा की कि भारतीय संविधान के तहत अनिश्चितकालीन इंटरनेट शटडाउन की अनुमति नहीं है और वास्तविक विरोध को दबाने के लिए धारा 144 के दुरुपयोग की आलोचना की. अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इंटरनेट का उपयोग संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत एक मौलिक अधिकार है और सरकार को धारा 144 के तहत प्रतिबंध लगाने वाले सभी आदेशों को प्रकाशित करने का आदेश दिया.
इन कानूनी हस्तक्षेपों के बावजूद, भारत में इंटरनेट शटडाउन एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है.
मार्च में, सिख अलगाववादी अमृतपाल सिंह की तलाश के दौरान कई दिनों तक पंजाब के कुछ हिस्सों में इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं बंद कर दी गईं, जिनकी आबादी 27 मिलियन से अधिक है. शटडाउन का उद्देश्य उनके समर्थकों को ऑनलाइन अपना समर्थन व्यक्त करने या भागने की योजना बनाने से रोकना था.
उन्होंने कहा कि कश्मीर में अब तक के सबसे लंबे शटडाउन के बाद अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ (2020) के मामले में इंटरनेट निलंबन के फैसले ने सार्वजनिक रूप से उपलब्ध शटडाउन आदेशों की आवश्यकता पर जोर दिया, जिसे कि अक्स नजरअंदाज कर दिया गया.
ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि इंटरनेट सहित दूरसंचार सेवाओं के पूर्ण निलंबन पर केवल तभी विचार किया जाना चाहिए जब आवश्यक और अपरिहार्य हो. अदालत ने अनुच्छेद 19(1)(ए) और 19(1)(जी) के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर विचार करते हुए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध शटडाउन आदेशों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला. हालांकि, वास्तविक प्रेक्टिस इन सिद्धांतों पर खरा नहीं उतरता है.
इंटरनेट निलंबन के बीच, हाल ही में स्वीकृत दूरसंचार विधेयक 2023, जिसका उद्देश्य दूरसंचार कानून को आधुनिक बनाना है, विरोधाभासी रूप से इंटरनेट शटडाउन को वैध बनाता है.
पिछले पांच वर्षों में इंटरनेट शटडाउन चार्ट में भारत के शीर्ष पर पहुंचने की अंतर्राष्ट्रीय आलोचना भी हुई है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने 2012 के एक प्रस्ताव में कहा कि ऑनलाइन अधिकारों की रक्षा ऑफ़लाइन अधिकारों की तरह ही सख्ती से की जानी चाहिए, ऑनलाइन जानकारी तक पहुंचने में किसी भी तरह के व्यवधान को मानवाधिकार का उल्लंघन माना जाता है. वैश्विक सहमति के बावजूद, भारत इंटरनेट शटडाउन में अग्रणी बना हुआ है, आरोप है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा शटडाउन लगाने की संभावना 3.5 गुना अधिक है.
डच राजनीतिक विश्लेषक क्रिस रुइजग्रोक के एक अध्ययन, जिसका शीर्षक है ‘इंटरनेट शटडाउन में भारत की बढ़ती परेशानी को समझना: एक गुणात्मक और मात्रात्मक विश्लेषण’, में कहा गया है, “ऑनलाइन फर्जी खबरों और गलत सूचना के कारण उत्पन्न कानून-व्यवस्था की समस्या से निपटने के बजाय (जैसा कि अधिकारियों द्वारा सुझाव दिया गया है) भारत में इंटरनेट शटडाउन का उपयोग एक स्वाभाविक राजनीतिक समस्या है. जिन राज्यों में पार्टी सत्ता में नहीं है, उनकी तुलना में भाजपा शासित राज्यों में इंटरनेट शटडाउन अधिक बार होता है: यदि किसी जिले में भाजपा राज्य सरकार का शासन है, तो इंटरनेट शटडाउन की संभावना 3.5 गुना अधिक है.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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