नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में फीस को लेकर लंबे समय से चल रहे विरोध और छात्रों के आक्रोश पर शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सह-सचिव अतुल कोठारी का मानना है कि गरीबों की फीस कम की जानी चाहिए पर अमीरों को छूट वाजिब नहीं. साथ ही कोठारी का मत था कि छात्र राजनीति हो पर ये जेएनयू को राजनीति का अखाड़ा नहीं बनने दिया जाना चाहिए.
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने गुरुवार को जेएनयू पर एक सेमिनार का आयोजन किया. इस आयोजन के केंद्र में हिंसा से हो रहे छात्रों के पढ़ाई के नुकसान और करियर पर खड़े हो रहे प्रश्न चिन्ह को लेकर विमर्श करना था. विमर्श के दौरान वहां मौजूद शिक्षा जगत से जुड़े प्रतिनिधियों से सलाह भी मांगी गई जिनमें आगे चर्चा की जाएगी और एक मासौदा बानकर पीएम नरेंद्र मोदी को भेजा जाएगा.
इस दौरान दिप्रिंट ने न्यास के सह-सचिव अतुल कोठारी से बातचीत की जिसमें फ़ीस हाइक रोलबैक मामले से लेकर छात्र राजनीति तक पर उनके विचार सामने आई. बढ़ी फीस वापस लिए जाने से जुड़े सवाल के जवाब में कोठारी ने कहा, ‘ग़रीबों को सहूलियत मिलनी चाहिए, लेकिन अमीर बच्चों से फ़ीस ली जानी चाहिए.’
हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने फ़ीस बढ़ोतरी पर जेएनयू के बच्चों का पक्ष सुनते हुए कहा कि सरकार अपने आप को शिक्षा से बाहर नहीं कर सकती. इस मामले पर न्यास का मानना है कि ये ठीक है कि सरकार ख़ुद को शिक्षा से बाहर नहीं कर सकती, लेकिन इसके बावजूद संतुलन होना चाहिए.
कोठारी ने कहा, ‘जेएनयू को हर साल 550 करोड़ रुपए दिए जाते हैं, जबकि ऐसे कई विश्वविद्यालय हैं जिन्हें लाखों भी नहीं मिलते.’ इसका हवाला देते हुए उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट की टिप्पणी पर फिर से संतुलन की अपनी बात दोहराई. उनका कहना है कि जेएनयू वाले हाई कोर्ट गए लेकिन बाकि लोग जा नहीं पाते इसलिए उनकी बात नहीं सुनी जाती.
कोठारी के मुताबिक दिल्ली हाई कोर्ट को ये देखना चाहिए कि जो जेएनयू में जो गाड़ी से आते हैं क्या उन्हें भी 10 रुपए हॉस्टल फ़ीस देनी चाहिए. हालांकि, उन्होंने ये बात ज़ोर देकर कही कि किसी बच्चे की पढ़ाई पैसे की वजह से नहीं रुकनी चाहिए.
फ़ीस रोलबैक की लड़ाई लड़ रहे जेएनयू छात्रों का मानना है कि इसके ज़रिए सरकार शिक्षा को निजीकरण के तरफ ले जाने की कोशिश कर रही है. इसके लिए प्रदर्शनकारी छात्र हायर एजुकेशन फंडिंग एजेंसी (हेफा) और जियो यूनिवर्सिटी जैसे उदाहरण देते हैं.
भविष्य में शिक्षा के निजिकरण की आशंका को न्यास सही नहीं मानता. न्यास का कहना है कि इसके प्रमाण नहीं हैं. कोठारी का मानना है कि जेएनयू वीसी हिंसा इसलिए नहीं रोक पाए क्योंकि वो अतिआत्मविश्वास का शिकार हो गए. उन्होंने कहा, ‘यहां पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था. ऐसे में वीसी भी अतिआत्मविश्वास में होंगे.’
जेएनयू के वीसी जगदीश कुमार मामिडाला के इस्तीफ़े की मांग पर कोठारी ने कहा कि उनके इस्तीफ़े की मांग वही लोग उठा रहे हैं जिन्होंने हिंसा की है. ये दोहरी बात है. उन्होंने कहा, ‘इस वीसी के आने के बाद कई नई बातें भी हुई हैं, उसकी चर्चा कोई नहीं करता.’
हाल ही में जेएनयू वीसी कुमार पर यहां हुई नियुक्तियों में गड़बड़ी से जुड़े कई आरोप लगे हैं. न्यास इन आरोपों को नहीं मानता. इनके मुताबिक जो आरोप लगा रहे हैं उन्हें प्रमाण के साथ बात करनी चाहिए. शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक बार-बार ये कहते आए हैं कि यूनिवर्सिटी को राजनीति का अखाड़ा नहीं बनाया जाना चाहिए और न्यास इससे सहमत है.
कोठारी ने कहा, ‘बच्चों को नेतृत्व का प्रशिक्षण दिया जाना ज़रूरी है क्योंकि आज का छात्र हीं भविष्य का नेतृत्वकर्ता बनेगा. लेकिन ये जो पार्टी पॉलिटिक्स और गंदी राजनीति होती है, वो नहीं होनी चाहिए.’ इसके बाद उन्होंने कहा कि कई कैंपस में होने वाले चुनाव छात्रों के शुद्ध सात्विक कार्य की तरह होना चाहिए.
उनके मुताबिक कई ऐसी जगहें हैं जहां अलग-अलग ढंग से चुनाव होता है लेकिन राजनीति नहीं होती. उन्होंने कहा, ‘छात्र आपस में चुनाव लड़ें. विश्वविद्यालय में अच्छा कार्य हो छात्रों की दृष्टी से, इसलिए चुनाव है. हार जीत होती रहेगी. लेकिन सब मिलकर काम करें. जो जीता उसका नेतृत्व होगा.’
कोठारी ने कहा कि जेएनयू में जो हुआ उससे संस्थान की देश और दुनिया में छवी ख़राब हो रही है. उनके मुताबिक इसके लिए वो लोग ज़िम्मेदार हैं जिन्होंने हिंसा की. उनकी मानें तो यूनिवर्सिटी प्रशासन और सरकार की ज़िम्मेदारी बाद में आती है.
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास भारत में शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में काम करता है जिसके संस्थापक दीनानाथ बत्रा थे. बत्रा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहे हैं और शिक्षा क्षेत्र में क्या पढ़ाया जा रहा है उस पर काफी सक्रिय रहे थे. न्यास मूलरुप से वैकल्पिक शिक्षा व्यवस्था स्थापित करने के उद्देश्य से काम करता है.