(उज्मी अतहर)
नयी दिल्ली, सात अप्रैल (भाषा) आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा से होकर महानदी और पेन्नार बेसिन के बीच बहने वाली नदियों में फिलहाल पानी नहीं है। केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के आंकड़ों से यह जानकारी मिली है।
आंकड़ों के मुताबिक, ऋषिकुल्या, बाहुडा, वंशधारा, नागवती, शारदा, वराह, तांडव, एलुरु, गुंडलकम्मा, तम्मिलेरु, मुसी, पालेरु और मन्नेरु ऐसी नदियां हैं, जिनमें पानी नहीं बचा है।
विशेषज्ञ इसके लिए कमजोर मानसून, वर्षा गतिविधियों में बदलाव, जलग्रहण क्षेत्र में गिरावट और भूजल में कमी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) के नितिन बस्सी ने कहा कि महानदी बेसिन को लेकर किए गए उनके विश्लेषण में पाया गया कि सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों को अपनाने और फसल संबंधी प्रणालियों में बदलाव से जलापूर्ति आवश्यकता की कमी को 24 प्रतिशत से घटाकर लगभग 18 प्रतिशत किया जा सकता है।
सीडब्ल्यूसी ने जलाशयों में जल भंडारण की स्थिति का विवरण दिया है, जिसमें कहा गया है कि मौजूदा जल भंडारण क्षमता घटकर कुल क्षमता का केवल 35 प्रतिशत रह गई है।
आंकड़ों के मुताबिक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के जलाशयों में भंडारण स्तर में खासी गिरावट आई है, जहां वर्तमान में उनकी कुल क्षमता का केवल 20 प्रतिशत पानी है।
आंकड़ों के मुताबिक, महानदी और पेन्नार बेसिन के बीच पूर्व की ओर बहने वाली नदियों में इस साल फिलहाल पानी नहीं है।
पेन्नार और कन्याकुमारी के बीच पूर्व की ओर बहने वाली नदियों में भी पानी की भारी कमी है और उनमें (क्षमता का) केवल 12 प्रतिशत जल भंडारण है।
चार अप्रैल को जारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में उपलब्ध जल संसाधनों में भारी गिरावट दर्ज की गई है।
इसके अनुसार, भारत में 150 जलाशयों की कुल भंडारण क्षमता 178.784 अरब घन मीटर (बीसीएम) है, जो देश भर में अनुमानित कुल क्षमता 257.812 बीसीएम का लगभग 69.35 प्रतिशत है।
हालांकि, इन जलाशयों में उपलब्ध वास्तविक भंडारण मात्र 61.801 बीसीएम है, जो इनकी कुल क्षमता का केवल 35 प्रतिशत है।
बांध व नदियां मामलों पर दक्षिण एशिया नेटवर्क (एसएएनडीआरपी) के समन्वयक हिमांशु ठक्कर ने जलाशयों के जलस्तर में गिरावट के कई कारणों पर प्रकाश डाला, जिसमें मानसून की वर्षा में कमी और बदलती वर्षा गतिविधियां शामिल हैं।
ठक्कर ने जलाशयों की भंडारण क्षमता के कारकों के रूप में जलग्रहण क्षेत्रों के क्षरण और भूजल की कमी का भी उल्लेख किया।
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले साल, 2022 की तुलना में मानसून की वर्षा में कमी देखी गई थी, यह भी एक कारण है कि जलाशयों की क्षमता पिछले साल की तुलना में कम है।’’
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि जलग्रहण क्षेत्रों के सिकुड़ने के कारण वर्षा का पानी तेजी से नदियों में चला जाता है।
इन आंकड़ों की तुलना पिछले साल के आंकड़ों से करने पर गिरावट साफ नजर आती है। पिछले वर्ष, इसी अवधि के दौरान, उपलब्ध मौजूदा भंडारण 74.47 बीसीएम से काफी अधिक था।
भाषा शफीक सिम्मी
सिम्मी
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