कोच्चि, चार फरवरी (भाषा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार को कहा कि व्यक्तिगत तौर पर स्वयं के उद्धार और पृथ्वी पर सभी के कल्याण के लिए कार्य करने की भारतीय परंपरा की आज की दुनिया को ‘‘सख्त आवश्यकता’’ है और वह ‘भारत’ से इसे संरक्षित करने की उम्मीद करती है।
यहां राजेंद्र मैदान में तपस्या कलासाहित्य वेदी के 50वें वर्षगांठ समारोह का उद्घाटन करने के बाद भागवत ने कहा कि दुनिया भारत से उम्मीद करती है कि वह अपने ‘विचारों’ और ‘संस्कारों’ सहित अपनी परंपराओं को संरक्षित रखे।
उन्होंने यह भी कहा कि इन विचारों और संस्कारों को सामाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन में ‘‘पुनर्स्थापित’’ करना होगा क्योंकि ‘‘हमारे और दुनिया के जीवित रहने का यही एकमात्र तरीका है’’।
संघ प्रमुख ने कहा, ‘‘यह भारत को विश्व को देना होगा और यह भारतीय समाज का, हिंदू समाज का ईश्वर प्रदत्त कर्तव्य है। हमने पहले भी कई बार ऐसा किया है और एक बार फिर यह काम हमारे सामने है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यदि भारत का बौद्धिक और कलात्मक जगत व्यक्तिगत तौर पर स्वयं के उद्धार और पृथ्वी पर सभी के कल्याण के लिए काम करने की भावना के साथ आगे बढ़ता है, तो बहुत कम वर्षों में हमारे सामाजिक मानस में एक बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।’’
भागवत दो दिवसीय दौरे पर केरल में हैं।
संघ प्रमुख संगठनात्मक गतिविधियों के तहत जनवरी में छह दिन के लिए राज्य में थे।
भाषा नेत्रपाल प्रशांत
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