नई दिल्ली: भारत में 1993 के बाद होने वाले सबसे बड़े आतंकी हमले की साज़िश रचने वाले कश्मीर आतंकी मॉड्यूल का एक अहम सदस्य अगस्त के बीच में गुपचुप तरीके से अफगानिस्तान भाग गया था. दिप्रिंट को इस बारे में जानकारी मिली है.
33-वर्षीय बाल रोग विशेषज्ञ (पीडियाट्रिशन) मुजफ्फर अहमद राठर को खुफिया एजेंसियों के मुताबिक, कश्मीर के आतंकी सेल और अफगानिस्तान में मौजूद जिहादियों के बीच बम बनाने और हमले की तकनीक पर तालमेल बैठाने की ज़िम्मेदारी दी गई थी.
मुजफ्फर, जो देश छोड़ने से पहले श्रीनगर में रहता था, अदील अहमद राठर का बड़ा भाई है. 31-वर्षीय डॉक्टर अदील को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से गिरफ्तार किया था. अदील इस आतंकी सेल का कमांडर बताया जा रहा है.
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कहा कि जांच के दौरान अदील के एक लॉकर से कलाश्निकोव राइफल और गोलियां बरामद की गईं. यह जांच हरियाणा के फरीदाबाद स्थित अल-फलाह अस्पताल के डॉक्टरों से जुड़े आतंकी मॉड्यूल के खिलाफ चल रही है.
उसी अस्पताल का एक डॉक्टर, डॉ उमर उन नबी, कथित रूप से फरीदाबाद में हुई हालिया छापेमारी के बाद अपनी सफेद i20 कार में भागने की कोशिश कर रहा था. कार में वह विस्फोटक सामग्री लेकर जा रहा था, जो यह मॉड्यूल इकट्ठा कर रहा था. सोमवार को जब उसकी कार फटी, तो वह मारा गया. दिल्ली के लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास हुए इस धमाके में कुल 13 लोग मारे गए.
राठर परिवार ने दिप्रिंट के सवालों का जवाब नहीं दिया और मुजफ्फर के ठिकाने पर कोई टिप्पणी नहीं की.
एक खुफिया अधिकारी ने बताया कि मुजफ्फर के अफगानिस्तान जाने के बाद कुछ अहम जानकारी सामने आई है.
अधिकारी के मुताबिक, वह पहले दुबई गया और फिर परिवार से कहा कि वह “एक सच्चे इस्लामी समाज और स्टेट की सेवा करना चाहता है.”
अधिकारी ने यह भी बताया कि मुजफ्फर, अल-फलाह मेडिकल स्कूल के प्रोफेसर मुज़म्मिल अहमद गनी और साथी उमर उन नबी के साथ मार्च 2022 में तुर्की गया था. उस वक्त इन तीनों ने अफगानिस्तान पहुंचकर सैन्य प्रशिक्षण लेने की कोशिश की थी, लेकिन सफल नहीं हुए.
पिछले कुछ सालों में खुफिया एजेंसियों ने पाया है कि आतंकी संगठन अब ऑनलाइन ही नए सदस्यों को ट्रेनिंग देते हैं — उन्हें लड़ाई की बुनियादी तकनीक, आईईडी (बम) बनाना और हथियार चलाना सिखाते हैं.
खुफिया अधिकारी ने कहा, “हालांकि अभी कुछ भी निश्चित कहना जल्दबाज़ी होगी…लेकिन मेरा मानना है कि 2022 में अफगानिस्तान न पहुंच पाने की नाकामी इन लोगों के लिए एक मनोवैज्ञानिक मोड़ साबित हुई. जब वे ‘हिजरत’ यानी भारत छोड़कर किसी इस्लामी देश नहीं जा सके, तो उनके दिमाग में यही रहा कि अब उन्हें उसी देश के खिलाफ ‘जिहाद’ छेड़ना है, जिसमें वे खुद को सताया हुआ मानते हैं.”
एक दूसरे खुफिया अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा कि मुजफ्फर का अफगानिस्तान जाना ये दिखाता है कि बम धमाकों की योजना अब आखिरी चरण में पहुंच चुकी थी.
कश्मीरी डॉक्टर और मौलवी
खुफिया सूत्रों के मुताबिक, कश्मीर के मौलवी इरफान अहमद, जो श्रीनगर में एक इस्लामिक स्टडी सर्कल चलाता था, उसने कश्मीरी डॉक्टरों को अफगानिस्तान के कुनार इलाके में मौजूद जिहादी कमांडरों से मिलवाया. कहा जा रहा है कि उसने डॉक्टरों को हमले के हथियार उपलब्ध कराए, जो पहले नदीम मुज़फ्फर ने छिपाए थे. नदीम, जिसकी 2018 में मौत हो गई थी, कश्मीर में अल-कायदा के विंग ‘अंसार गज़वत-उल-हिंद’ का सदस्य था — वही संगठन जो इस आतंकी सेल से जुड़ा हुआ है और जिसकी शुरुआती दिनों से ही जैश-ए-मोहम्मद से भी कड़ी रही है.
इरफान के स्टडी ग्रुप के सदस्य दारुल उलूम देवबंद की विचारधारा से निकले एक अलग धड़े की तरफ झुके हुए थे, जिसकी शुरुआत हैदराबाद के मौलवी अब्दुल अलीम इस्लाही ने की थी, लेकिन उन्हें ‘अंसार गज़वत-उल-हिंद’ के इस विचार ने प्रेरित किया कि वे ऐसा संगठन बनाएं जो किसी भी ख़ुफ़िया एजेंसी से जुड़ा न हो और केवल धार्मिक सिद्धांतों से संचालित हो.
इरफान जैसे इस्लामिक स्टडी ग्रुप हाल के वर्षों में तेजी से बढ़े हैं, जिनमें से कई तबलीगी जमात की गतिविधियों से प्रेरित हैं. हालांकि, तबलीगी जमात खुद को धार्मिक और राजनीति से दूर बताती है, लेकिन उसके कुछ अनुयायी बाद में कट्टर संगठनों की तरफ खिंच जाते हैं.
जांचकर्ताओं का कहना है कि विदेश यात्रा और बम बनाने के उपकरणों के लिए ज़्यादातर फंड लखनऊ की डॉक्टर शाहीन सईद की निजी बचत से आया.
दक्षिण अफगानिस्तान के इस अस्थिर माहौल में कई कश्मीरी जिहादी अलग-अलग संगठनों को चला रहे हैं. 2022 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद वहां तालिबान के लिए ट्रेनिंग कैंप चला रहे हैं.
पूर्व श्रीनगर निवासी शेख सज्जाद गुल को ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट’ नाम के लश्कर-ए-तैयबा के मुखौटा संगठन की गतिविधियां संभालने वाला माना जाता है. वहीं, कश्मीर के अनुभवी जिहादी क़ारी रमज़ान जैश-ए-मोहम्मद के अफगान ऑपरेशंस चला रहे हैं.
‘यकीन करना मुश्किल है’
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि अब यह भी पता चल रहा है कि आखिर 2021 के बाद अदील और उसके साथियों ने जिहादी ग्रुप बनाने का फैसला क्यों किया. अदील वानपोरा गांव के तहसीलदार (स्थानीय सरकारी अधिकारी) का बेटा है. उसने अपनी शुरुआती पढ़ाई निजी संचालित क्रेसेंट स्कूल में की, फिर यार कुशीपोरा सरकारी स्कूल से सेकेंडरी एजुकेशन पूरी की. पढ़ाई में बहुत तेज़ होने के कारण, उसे 2021 में पहली ही कोशिश में श्रीनगर के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिल गया और 2024 में उसने अपनी सीनियर रेजिडेंसी पूरी की.
मुज़फ्फर ने दो साल पहले ही मेडिकल डिग्री हासिल कर ली थी, जबकि सबसे बड़ा भाई जाकिर अहमद राठर वेटरनरी साइंटिस्ट बन गया. उसकी बहन गौहर जान ने कश्मीर यूनिवर्सिटी से मेडिसिन में पोस्टग्रेजुएट डिग्री ली और उनकी शादी कुलगाम शहर में फार्मास्यूटिकल बिजनेस चलाने वाले मुजफ्फर अहमद शाह से हुई.
गौहर जान ने कहा, “यकीन करना मुश्किल है” कि भाई आतंकवाद में शामिल थे. उन्होंने दोनों भाइयों को बेहद धार्मिक और दयालु बताया.
अदील ने 4-5 अक्टूबर को दो दिन चले समारोह में सैयद रुकैया से शादी की, जो श्रीनगर के रैनावारी इलाके में मनोचिकित्सक (साइकेट्रिस्ट) हैं. एक मेहमान ने दिप्रिंट को बताया कि शादी में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए थे. जिन लोगों ने मुजफ्फर के बारे में पूछा, उन्हें बताया गया कि वह दुबई में काम कर रहा है. शादी के बाद यह जोड़ा आठ दिन के लिए केरल घूमने गया और फिर वापस अपने काम पर लौट आया.
खुफिया अधिकारी ने बताया कि भले ही उमर जल्द से जल्द बम धमाकों को अंजाम देना चाहता था, लेकिन बीच में कुछ दिक्कतें आ गईं. ग्रुप को बमों के टाइमर तो मिल गए थे, लेकिन उनके पास सिर्फ तीन गाड़ियां थीं. इससे भी बड़ी समस्या यह थी कि वे डेटोनेटर नहीं जुटा पा रहे थे, इसलिए उन्हें एसिड से चलने वाले अस्थिर फ्यूज़ का इस्तेमाल करने पर मजबूर होना पड़ा.
हालांकि धमाकों का पैमाना समझना मुश्किल नहीं है.
2009 में, इंडियन मुजाहिदीन के आतंकियों ने मुंबई की लोकल ट्रेनों में धमाके किए थे — सात प्रेशर कुकर बमों के ज़रिए, जिनमें हर एक में 30 किलो अमोनियम नाइट्रेट और फ्यूल ऑयल भरा था.
कश्मीरी डॉक्टरों के इस सेल ने 2022 से अब तक कई हजार किलो अमोनियम नाइट्रेट और दूसरे विस्फोटक रसायन इकट्ठे कर लिए थे.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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