नयी दिल्ली, 23 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि दहेज पीड़िता द्वारा पति के रिश्तेदारों पर आरोप लगाए जाने का चलन बढ़ रहा है। इसके साथ ही न्यायालय एक महिला के सास-ससुर के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला खारिज कर दिया।
न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्ला और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि महिला की ननद, पति और ससुर के खिलाफ सामान्य तरह के आरोप हैं।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने पाया कि अपीलकर्ताओं द्वारा किसी भी प्रकार की शारीरिक यातना दिए जाने का आरोप गायब है।
इसने कहा कि आरोप केवल ताना मारने और यह कहने का है कि वे उच्च पद पर हैं, उनका राजनीतिक प्रभाव है और मंत्रियों से संबंध हैं।
आदेश में कहा गया कि दहेज पीड़िता द्वारा पति के रिश्तेदारों को दोषी ठहराने की बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए यह अदालत भादंसं की धारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 4 के तहत अपराध के लिए पति के रिश्तेदारों को शामिल करने के चलन की निंदा करती है।
शिकायतकर्ता और उसके पति का विवाह 2014 में आंध्र प्रदेश के गुंटूर में हुआ था।
इस मामले के तहत विवाह के पांच महीने बाद महिला ने अपने पति को छोड़ दिया और अपने माता-पिता के साथ रहने लगी।
बाद में, वह अपने ससुराल वापस चली गई, लेकिन फिर अपने माता-पिता के पास वापस आ गई।
पति ने उसे कानूनी नोटिस भेजा और उसके बाद 2015 में वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर की।
इस कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान, महिला ने 2016 में पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराई। हालांकि, समझौता हो गया और पति ने मामला वापस ले लिया।
इसके बाद वह अपने पति या उसके परिवार के सदस्यों को सूचित किए बिना अमेरिका चली गई तथा विवाद जारी रहा।
पति ने 21 जून, 2016 को विवाह विच्छेद के लिए याचिका दायर की और जवाबी कार्रवाई में महिला ने वर्तमान अपीलकर्ताओं सहित छह आरोपियों के खिलाफ फिर से पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
भाषा नेत्रपाल अविनाश
अविनाश
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