नई दिल्ली: रविदास मंदिर 10 अगस्त को गिराए जाने के बाद से प्रदर्शन और राजनीति का दौर जारी है. दलित संगठनों की मांग है कि मंदिर वहीं बनाया जाए. लेकिन मामले की तह में जाएं तो ये सुलझने के बजाए और उलझता नज़र आ रहा है, क्योंकि जिस डीडीए को मंदिर के लिए ज़मीन देनी है उसने 2001 के बाद से धार्मिक उद्देश्यों के लिए कोई ज़मीन नहीं दी है.
संत रविदास दलित समाज के पूजनीय हैं. इनका मंदिर दिल्ली के तुगलकाबाद में स्थित था जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गिरा दिया गया. सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने दावा किया था कि ज़मीन सरकार की है और ग्रीन लैंड होने की वजह से यहां कोई निर्माण नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट ने डीडीए के इस दावे पर मुहर लगाई और मंदिर के लिए लड़ाई लड़ रहे संत रविदास जयंति समिति समारोह को हार का सामना करना पड़ा.
मंदिर गिराए जाने के विरोध में 21 अगस्त को हुए प्रदर्शन के बाद भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर आज़ाद समेत 95 लोगों को गिरफ्तार किया गया. चंद्रशेखर को 14 दिनों के न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेज दिया गया है. इसी दिन दिल्ली सरकार ने विधानसभा में मंदिर वहीं बनाए जाने को लेकर एक प्रस्ताव पास किया.
ये प्रस्ताव अब सूबे की सरकार और डीडीए के पास जाएगा. दिप्रिंट के पास मामले से जुड़ी शहरी विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट मौजूद है. इसके मुताबिक डीडीए के पास धार्मिक मामलों में ऐसी संस्थाओं और व्यक्तियों को ज़मीन देने की एक नीति है जिसके तहत ज़मीन दी जाती है. रिपोर्ट के मुताबिक डीडीए ने न जाने कितने सालों से इस नीति के तहत धार्मिक उद्देश्य के लिए कोई ज़मीन नहीं दी.
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हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान समिति को चार हफ्ते का समय देते हुए कहा था कि वो डीडीए के पास अपने प्रतिनिधियों को भेजकर मंदिर को ग्रीन ज़ोन के अलावा कहीं और शिफ्ट करवाने की अपील करें. डीडीए को निर्देश था कि वो इस मामले में उदारता दिखाए. हालांकि, समिति पर प्रतिनिधियों को नहीं भेजने के आरोप हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी मौखिक तौर पर कहा था कि मंदिर समिति वाले डीडीए से रियायत मांग सकते हैं.
मंदिर समिति ने दिप्रिंट से कहा कि जब डीडीए से इस मामले में बात की गई तो उन्होंने कहा कि वो धार्मिक मामलों में ज़मीन देने की नीति पर काम कर रहे हैं और इसके बनने के बाद समिति को आगे की जानकारी दी जाएगी. समिति को अब तक कोई जानकारी नहीं मिली है.
डीडीए की साइट पर तरह-तरह के उद्देश्यों के लिए दी गई ज़मीन की एक लिस्ट है. इसके मुताबिक डीडीए ने आख़िरी बार धार्मिक उद्देश्य के लिए 2001 में ज़मीन दी थी. डीडीए के एक अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा कि नई धार्मिक नीति की स्थिति अभी साफ नहीं है.
दिल्ली के मामले में ज़मीन केंद्र सरकार के पास है और उनके प्रतिनिधि उप-राज्यपाल होते हैं. इस मामले पर उप-राज्यपाल दफ्तर से संपर्क किया गया लेकिन वहां से कोई जवाब नहींं आया.
इस बीच दिल्ली सरकार के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने विधनसभा सत्र के दौरान कहा, ‘करीब 15 करोड़ लोग रविदास समाज से आते हैं. ये लोग केंद्र सरकार से पांच एकड़ ज़मीन मांग रहे हैं. ज़मीन तुरंत दे दी जानी चाहिए.’ केजरीवाल ने ये भी कहा कि अगर केंद्र सरकार ये ज़मीन दे दे तो वो दिल्ली सरकार की सौ एकड़ ज़मीन बदले में दे देंगे.
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इसके लिए दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट में एफेडेविट देने को तैयार है और उसकी मांग है कि इसका रिव्यू होना चाहिए. भाजपा का भी यही मानना है कि मंदिर वहीं बनना चाहिए. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख़ टिप्पणी में पहले ही कहा है कि मामले पर राजनीति नहीं होनी चाहिए.
भाजपा नेता दुष्यंत कुमार गौतम ने मंदिर गिराए जाने का ठीकरा दिल्ली सरकार पर फोड़ते हुए दिप्रिंट से कहा, ‘हम जावड़ेकर जी से मिले और उनसे कहा कि यह आम आदमी पार्टी सरकार की विफलता के कारण है कि मंदिर गिरा दिया गया. उन्हें इसका लैंड-यूज़ बदलना चाहिए था.’ इस पर दिल्ली सरकार ने प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया.
भीम आर्मी ने बयान जारी कर कहा है कि अगर 10 दिनों के भीतर ये विवाद नहीं सुलझाया गया तो दलितों की ये संस्था भारत बंद का आयोजन करेगी. उनकी मांग है कि चंद्रशेखर समेत 95 लोगों को जल्द रिहा किया जाए.
मंदिर मामले में सभी रानजीतिक पार्टियों और संगठनों से भी समर्थन की अपील की गई है. अगले साल होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र यह मामला और भी बढ़ सकता है.