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विशेष विवाह अधिनियम के तहत नोटिस के प्रावधान के विरुद्ध याचिका दो-सदस्यीय पीठ को भेजी जा सकती है

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नयी दिल्ली, 27 अप्रैल (भाषा) समलैंगिक शादी को कानूनी मंजूरी देने की मांग करने वाली कई याचिकाओं पर दलीलों को सुन रहे उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को संकेत दिया कि वह विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत 30 दिन पहले नोटिस देने के प्रावधान को चुनौती देने वाले मामले को दो-सदस्यीय पीठ को सौंपा जा सकता है।

विशेष विवाह अधिनियम 1954 अलग-अलग धर्मों या जातियों के लोगों की शादी को कानूनी रूप प्रदान करता है। इस कानून की धारा पांच के तहत पक्षों को इच्छित विवाह को लेकर नोटिस देना होता है। धारा सात किसी भी व्यक्ति को नोटिस के प्रकाशन के 30 दिनों के भीतर विवाह पर आपत्ति करने की अनुमति देती है।

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने बृहस्पतिवार को कहा कि 30 दिन का नोटिस देने का प्रा‍वधान पांच न्यायाधीशों की पीठ से जुड़ा मसला नहीं है और इसका इस बात से भी कोई संबंध नहीं है कि समलैंगिक जोड़ों को शादी का अधिकार होना चाहिए या नहीं।

इस पीठ में न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति एस आर भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा भी शामिल हैं।

छठे दिन की सुनवाई की शुरुआत में पीठ ने कहा कि अगर 30 दिन के नोटिस प्रावधान को ही सिर्फ चुनौती दी गई है तो इसे दो-सदस्यीय पीठ को सौंपा जा सकता है।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह मामला पहले भी दो-सदस्यीय पीठ के समक्ष आया था।

भोजनावकाश के बाद पीठ जब दोबारा दलीलें सुनने के लिए बैठी तो याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर और राजू रामचंद्रन ने इस मुद्दे को उठाया।

ग्रोवर ने कहा कि यह उचित होगा कि संविधान पीठ नोटिस के प्रावधान पर फैसला करे, क्योंकि याचिकाकर्ता सुनवाई के दौरान पहले ही इस बारे में दलीलें दे चुके हैं, जबकि रामचंद्रन ने दलील दी कि ये मुद्दे आपस में जुड़े हुए हैं।

इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि नोटिस देने का मुद्दा सामान्य जोड़ों और समलैंगिक जोड़ों पर समान रूप से लागू होता है, इसलिए यह पांच न्यायाधीशों की पीठ का मसला नहीं है। उन्होंने कहा कि यह बहुत साधारण मुद्दा है।

केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्होंने पहले ही कहा था कि इस मुद्दे को समलैंगिक विवाह को मान्यता संबंधी याचिकाओं के साथ गलत तरीके से जोड़ा गया है।

इस मुद्दे पर प्रधान न्यायाधीश और ग्रोवर के बीच बहस होती रही। इसके बाद पीठ ने मेहता से दलीलें देने को कहा।

मामले में सुनवाई अधूरी रही और यह तीन मई को जारी रहेगी।

भाषा नोमान सुरेश

सुरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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