राजापुर: महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के राजापुर तालुका स्थित छोटे-से गांव देवाचे गोठाणे में लहराते नारियल के पेड़, आम के बाग और कटहल के पेड़ मई की चिलचिलाती धूप से कुछ राहत दिलाते हैं. लेकिन, ग्राम पंचायत कार्यालय के पास एक मंदिर में एकत्र चार लोगों के बीच जारी बहस ने माहौल में गर्मी बढ़ा रखी है.
विवाद की जड़ रत्नागिरी रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड (आरआरपीएल) परियोजना है, जिसका प्रस्ताव 2015 में केंद्र और महाराष्ट्र की सरकार की तरफ से रखा गया था. यह महत्वाकांक्षी ग्रीन ऑयल रिफाइनरी पहले राजापुर के नानार क्षेत्र में लगनी थी, लेकिन स्थानीय लोगों और शिवसेना के कड़े विरोध के कारण इसे टाल दिया गया. शिवसेना ने उस समय अपनी गठबंधन सहयोगी रही भाजपा के खिलाफ जाकर इस योजना का विरोध किया था.
अब शिवसेना ने अपनी राय बदल ली है. कांग्रेस और एनसीपी के साथ महा विकास अघाड़ी गठबंधन के हिस्से के तौर पर सत्तासीन शिवसेना उसी तालुका के बरसू-धोपेश्वर क्षेत्र (जिसके अंतर्गत देवाचे गोठाने पड़ता है) में यह परियोजना शुरू करने पर जोर दे रही है, और उसका दावा है कि इससे पर्यावरण को कम नुकसान होगा है और स्थानीय लोग इसका समर्थन करते हैं.
लेकिन, यह सब इतना आसान भी नहीं है.
ये दोनों ही जगह कोंकण क्षेत्र में आती हैं और केवल एक संकरी नदी के इधर-उधऱ स्थित हैं. यद्यपि नई साइट नानार की तरह घने पेड़ों से भरी तो नहीं है लेकिन उस तरह बंजर भी नहीं है, जैसा महाराष्ट्र सरकार तर्क दे रही है. यही नहीं, परियोजना को अभी सामान्य स्तर पर स्वीकृति भी नहीं मिली है.
देवाचे गोठाणे के पूर्व सरपंच कमलाकर गुराव ने कहा, ‘जब यह रिफाइनरी नानार में लगनी थी, तो यह विनाशकारी थी. लेकिन अब अन्य गांवों के लिए उसी परियोजना की सराहना की जा रही है. उस समय, उद्धव ठाकरे ने कहा था कि परियोजना कोंकण को नष्ट कर देगी और हमें ऐसा नहीं होने देना चाहिए…अब लगता है कि वो ये सारी बातें भूल गए हैं.’
रत्नागिरी के शिवसेना विधायक राजन साल्वी ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि पार्टी के रुख में बदलाव परिस्थितियों में बदलाव को दर्शाता है.
साल्वी ने दिप्रिंट से कहा, ‘पहले नानार में 100 प्रतिशत स्थानीय लोग इसके खिलाफ थे. लेकिन अब समर्थक भी हैं और वे नौकरी चाहते हैं. उनकी जो भी मांग है, शिवसेना उनके साथ खड़ी है.’
हालांकि, जब दिप्रिंट ने नई साइट का दौरा किया, तो नानार की तरह ही यहां भी असंतोष स्पष्ट तौर पर नजर आया.
हालांकि, कुछ स्थानीय लोगों को वास्तव में लगता है कि रिफाइनरी बहुप्रतीक्षित रोजगार और विकास के रास्ते खोलेगी लेकिन ज्यादातर लोगों को यही लगता है कि यह प्राचीन समुद्र तट और हरे-भरे काजू और आम के बागानों को नष्ट कर देगी. कई लोग तो शिवसेना और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के यू-टर्न पर भी सवाल उठा रहे हैं.
ऐसे में शिवसेना के लिए परियोजना के समर्थकों और आलोचकों के बीच संतुलन साधना और अपने खुद के रुख में बदलाव को जायज ठहराना काफी मुश्किल हो रहा है, खासकर यह देखते हुए कि पार्टी का कोंकण क्षेत्र में जनाधार काफी मजबूत है.
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नानार में आरआरपीएल परियोजना क्यों रद्द की गई?
2015 में जब केंद्र सरकार और महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाले भाजपा सरकार ने रत्नागिरी रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल लिमिटेड परियोजना का प्रस्ताव रखा था तो यह एशिया की सबसे बड़ी ऑयल रिफाइनरी बनने वाली थी.
योजना के मुताबिक रत्नागिरी जिले के तटीय कोंकण इलाके में स्थित नानार क्षेत्र में इस परियोजना को विदेशी तेल दिग्गज सऊदी अरामको और अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी के साथ-साथ भारत की तीन सार्वजनिक तेल कंपनियों—इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड और भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड—के संयुक्त उद्यम के तौर पर स्थापित किया जाना था.
करीब 3 लाख करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली इस ‘मेगा रिफाइनरी’ में हर साल 60 मिलियन मीट्रिक टन कच्चा तेल प्रोसेस होने और बीएस-6 मानकों के अनुरूप परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों के उत्पादन की उम्मीद थी.
हालांकि, यह सारा उत्साह क्षणिक साबित हुआ. परियोजना को नानार के स्थानीय लोगों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा. इस क्षेत्र में मजबूत जनाधार वाली शिवसेना ने भी आंदोलन का समर्थन किया और 2014 और 2019 के बीच इसे लेकर अपने गठबंधन सहयोगी भाजपा से भिड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
विरोध की सबसे मुखर आवाजों में से एक उद्धव ठाकरे की भी थी, जिन्होंने रत्नागिरी में कई रैलियां कीं. इस दौरान उन्होंने यहां तक कहा कि वह परियोजना के लिए ‘एक इंच जमीन’ भी नहीं लेने देंगे. उनके बेटे, आदित्य ठाकरे ने भी कहा कि शिवसेना इस परियोजना का विरोध करती है कि क्योंकि इससे पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ता और ‘स्थानीय लोग’ भी इसके खिलाफ हैं.
अंतत: 2019 में इस परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.
हालांकि, गौर करने वाली बात यह रही कि इस परियोजना को लेकर शिवसेना के अंदर भी एक राय नहीं थी. उदाहरण के तौर पर, पिछले साल जून में कोंकण में 100 से अधिक शिवसैनिक नानार में रिफाइनरी परियोजना बंद होने को लेकर अपनी नाराजगी जताते हुए भाजपा में चले गए थे.
नई साइट में क्या अलग है?
इस साल मार्च में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा था, जिसमें अरबों डॉलर वाली इस रिफाइनरी परियोजना को रत्नागिरी में ही दूसरी अधिक उपयुक्त जगह पर स्थानांतरित करने का प्रस्ताव रखा गया.
उस समय, राज्य के उद्योग मंत्री और शिवसेना नेता सुभाष देसाई ने दिप्रिंट को बताया था कि इसे लेकर ग्रामीणों की राय ‘सकारात्मक’ है और जब लोग इसका समर्थन कर रहे हैं तो पार्टी को इस परियोजना को लेकर ‘कोई आपत्ति नहीं’ है. आदित्य ठाकरे, जो अब पर्यावरण मंत्री हैं, ने भी घोषणा की कि वे रिफाइनरी परियोजना को आगे बढ़ाने को तैयार हैं, क्योंकि स्थानीय हितधारकों ने इसे मंजूरी दे दी है.
नानार की तरह ही राजापुर तालुका स्थित नई साइट से धोपेश्वर (जिसमें देवाचे गोठाणे और सोलगांव शामिल हैं), बारसू, पन्हाले, शिवने खुर्द और गोवाल की ग्राम पंचायतों के प्रभावित होने के आसार हैं. हालांकि, इसका प्रभाव कम होने की उम्मीद है क्योंकि साइट एक पठार पर है और यहां पर पेड़-पौधे कम हैं.
हालांकि, रिफाइनरी के लिए आधिकारिक अधिसूचना जारी होना अभी बाकी है.
जब दिप्रिंट ने प्रस्तावित साइट का दौरा किया तो रिफाइनरी के एक प्रतिनिधि ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि परियोजना के लिए खाली पड़ी करीब 7 किलोमीटर भूमि लेने की उम्मीद है और नानार के विपरीत, यहां किसी गांव या घर को ‘विस्थापित करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’
राजापुर शहर निवासी और रिफाइनरी समर्थक समन्वय समिति के कार्यकारी अध्यक्ष महेश शिवलकर ने दिप्रिंट से कहा कि परियोजना के विरोध का कोई कारण नहीं है क्योंकि भूमि ‘बंजर’ है और किसी को भी विस्थापित करने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी.
शिवलकर ने कहा, ‘अब टेक्नोलॉजी काफी बदल गई है और रिफाइनरी का निर्माण नए जमाने की तकनीक से किया जाएगा. इसलिए विरोध करने वालों को पहले इसके बारे में पूरी जानकारी हासिल करनी चाहिए और फिर कुछ बोलना चाहिए.’
फिर भी, जब दिप्रिंट ने प्रस्तावित साइट का दौरा किया तो गांवों के कई लोगों ने इस पर आपत्ति जताई.
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प्रदूषण, फसलों की चिंता
रिफाइनरी के लिए प्रस्तावित नई साइट नानार से मात्र 25-30 किलोमीटर दूर है, और एक पतली-सी अर्जुन नदी उन दोनों पहाड़ी क्षेत्रों को अलग करती है जहां रिफाइनरी के लिए प्रस्तावित पुरानी और नई साइट स्थित हैं.
इसके अलावा, यह क्षेत्र उतना ‘बंजर’ भी नहीं है जितना बताया जा रहा है, जिसे लेकर किसान चिंतित हैं, जैसा कि नानार के मामले में हुआ था.
शिवने खुर्द निवासी अमोल बोले के पास करीब 10 एकड़ जमीन है जहां वह आम और काजू उगाते हैं. उन्होंने कहा कि उनकी उपज की गुणवत्ता काफी अच्छी है, जिससे उन्हें सालाना लगभग 10 लाख रुपये की कमाई होती है. उन्हें डर है कि रिफाइनरी फसलों पर हानिकारक प्रभाव के साथ क्षेत्र में प्रदूषण का कारण बन सकती है.
उन्होंने कहा, ‘चूंकि यह एक रासायनिक परियोजना है, इसका मेरे बागों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और मेरा उत्पादन घट जाएगा. उन्होंने कहा, ‘अभी अलफांसो आम और काजू के लिए माहौल अनुकूल है, लेकिन अगर रिफाइनरी बन जाएगी तो पर्यावरण में बदलाव आएगा और इसका असर हमारे आम और काजू के उत्पादन पर पड़ेगा.’
इस क्षेत्र में आय का एक अन्य प्रमुख स्रोत मछली पकड़ना है, और लोगों को डर है कि अपशिष्ट जल मछली पालन को प्रभावित कर सकता है.
देवाचे गोठाने के पास सोगमवाड़ी गांव के एक मछुआरे शबुद्दीन पत्रकालू ने कहा, ‘यह हमारे लिए एक बड़ा नुकसान होगा. अगर पानी दूषित हो जाता है, तो हम क्या करेंगे? हम कहीं और नहीं जाना चाहते. प्रतिदिन 500-1,000 रुपये के साथ मेरी आजीविका चल रही और मैं इसमें खुश हूं.’
यहां कई लोग इसी तरह की चिंता जता रहे हैं और खुद को परियोजना के खिलाफ खड़े करने की तैयारी में जुटे हैं.
नई साइट प्रस्तावित किए जाने के बाद पांच ग्राम पंचायतों–गोवाल, देवाचे गोठाने, शिवने खुर्द, सोलगांव और कोडावली—ने परियोजना का विरोध करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया है.
दिप्रिंट को हासिल कागजात के मुताबिक, ग्रामीणों ने इस बात को लेकर अपनी चिंता जताई कि चूंकि रिफाइनरी एक पठार पर अधिक ऊंचाई पर स्थित होगी, इसलिए प्रदूषित पानी बहकर उनके गांवों की तरफ आ सकता है और संभवतः प्राचीन पहाड़ियों को भी नुकसान पहुंचा सकता है.
30 मार्च को, इन गांवों के कई लोगों ने राजापुर तहसील कार्यालय तक मार्च निकाला, और सरकार से परियोजना को आगे न बढ़ाने का अनुरोध किया क्योंकि यह पर्यावरण के लिए हानिकारक है. अगले महीने, धोपेश्वर ग्राम सभा ने इस पर वोटिंग कराई जिसमें 466 लोगों ने रिफाइनरी के विरोध में मत दिया जबकि केवल 144 लोगों ने इसका समर्थन किया. यही नहीं, 28 मई को पांच गांवों की महिलाएं सोलगांव में रिफाइनरी का विरोध करने के लिए जुटीं.
कुछ ग्रामीणों का यह भी कहना है कि वे स्थानीय पारिस्थितिकी को ध्यान में रखने वाली विकास परियोजनाओं को प्राथमिकता देंगे.
देवाचे गोठाने के कमलाकर गुराव ने कहा, ‘हम विकास के खिलाफ नहीं हैं. कोंकण विविधता समृद्ध है, जहां आम और काजू के बाग बहुतायत में हैं. इसलिए, अगर यहां की पारिस्थिति के अनुकूल कारखाने यहां बनाए जाएं तो हम उनका स्वागत करेंगे.’
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‘हमारे बच्चों को नौकरी के लिए मुंबई या पुणे नहीं जाना पड़ेगा’
4.5 एकड़ जमीन पर आम और काजू उगाने वाले बरसू गांव निवासी विनायक कदम के घर के बाहर लगे एक साइनबोर्ड पर लिखा है, ‘रिफाइनरी का समर्थन. हमें रोजगार चाहिए.’
कदम ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने अध्ययन किया कि रिफाइनरी आखिर है क्या. हम मुंबई के माहुल इलाके में गए. हमने वहां देखा कि क्षेत्र में विकास हुआ है. देश को आर्थिक रूप से इस परियोजना की जरूरत है.’
कदम ने आगे बताया कि उनके चाचा कतर में एक रिफाइनरी में काम करते हैं, इसलिए उन्हें ऐसी परियोजनाओं के लाभ पता हैं. उन्होंने यह भी दावा किया कि उन्होंने रिफाइनरी प्रतिनिधियों से बात की है.
कदम ने कहा, ‘हमने कंपनी के साथ बात की. वे बच्चों की पढ़ाई स्पांसर करने और लोगों को अच्छी नौकरी देने के लिए तैयार हैं. रिफाइनरी बनने में कम से कम सात-आठ साल लगेंगे, इसलिए स्थानीय लोगों को इसका फायदा जरूर मिलेगा. महिलाओं को कैंटीन चलाने को मिलेगी, हम इस पर कंपनी से लगातार बातचीत कर रहे हैं.
राजापुर शहर में काम करने वाले एक डाकिया मनोज पवार को भी लगता है कि परियोजना में नुकसान से ज्यादा फायदे हैं. उन्होंने कहा, ‘इस परियोजना को मेरा पूरा समर्थन है. यहां के युवा बेरोजगार हैं. अगर परियोजना शुरू होती है, तो हमारे बच्चों को नौकरी की तलाश में मुंबई या पुणे नहीं जाना पड़ेगा.’
रिफाइनरी समर्थक समन्वय समिति के महेश शिवलकर ने कहा कि ग्रामीणों को अपने डर पर काबू पाने के लिए कोच्चि और जामनगर जैसी अन्य रिफाइनरियों के बारे में जानना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘हम घर पर एलपीजी सिलेंडर रखते हैं क्या हम डरते हैं कि यह फट सकता है और इसलिए हमें इसे नहीं रखना चाहिए? इसके बजाये, एलपीजी ने चूल्हे और लकड़ी जलाने से होने वाले कष्ट को दूर किया है और यह पर्यावरण के अनुकूल भी है.’
उनके मुताबिक, रिफाइनरी एक जीरो-डिस्चार्ज परियोजना होगी, और तालुका के बुनियादी ढांचे में भी सुधार लाएगी. उन्होंने कहा, ‘यदि परियोजना आती है तो स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और बुनियादी ढांचे में विकास होगा, इसलिए हम इसका समर्थन करते हैं.’ उन्होंने यह दावा भी किया कि क्षेत्र की 101 ग्राम पंचायतों में से 57 रिफाइनरी के पक्ष में हैं.
चुनौतियों से जूझ रही शिवसेना
इस पर जारी बहस के बीच शिवसेना थोड़ी अनिश्चितता की स्थिति में है क्योंकि वह एक ऐसी परियोजना पर जोर दे रही है जिसे कुछ ही साल पहले उसने खारिज कर दिया था.
पार्टी का रुख यही है कि वह केवल ग्रामीणों के समर्थन के आधार पर ही आगे बढ़ेगी, लेकिन वह इस तर्क पर जोर दे रही है कि जमीन ‘बंजर’ है और किसी को भी विस्थापित करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
हालांकि, पर्यावरण की स्थिति के मामले में अब तक कोई स्पष्ट जवाब सामने नहीं आया है.
रत्नागिरी के विधायक राजन साल्वी ने दिप्रिंट से कहा कि वह ‘प्रदूषण के पहलुओं’ पर नहीं बोल सकते क्योंकि वह कोई ‘विशेषज्ञ’ नहीं हैं, लेकिन स्थानीय लोगों के बीच कथित तौर पर डर फैलाने के लिए उन्होंने गैरसरकारी संगठनों को जिम्मेदार ठहराया.
साल्वी ने कहा, ‘एनजीओ का हमारे क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन वे लोगों से मिलते हैं, उन्हें भ्रामक जानकारियां देते हैं और अविश्वास बढ़ाने की कोशिश करते हैं. लेकिन हम इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं. कुछ आश्वस्त हो रहे हैं, कुछ नहीं हो रहे, लेकिन हम कोशिश करते रहेंगे. यह परियोजना युवाओं को रोजगार देगी. अभी वे नौकरी के लिए मुंबई, पुणे जा रहे हैं. मेरे क्षेत्र में, हमें विकास की जरूरत है’
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