लखनऊ: अयोध्या के धन्नीपुर गांव में 5 एकड़ की जमीन पर बनने जा रहे मस्जिद कॉम्पलेक्स में किसी भी मुगल शासक का जिक्र नहीं होगा बल्कि ये कॉम्लेक्स 1857 की जंग के स्वतंत्रता सेनानी अहमदुल्ला शाह उर्फ ‘मौलवी फैजाबादी ‘ को डेडिकेटेड रहेगा. मस्जिद को फिलहाल धन्नीपुर मस्जिद ही कहा जाएगा लेकिन इसके अंदर बनने जा रहे इंडो इस्लामिक कल्चरल रिसर्च सेंटर को अहमदुल्ला शाह के नाम रखने की पेशकश की गई है.
दरअसल राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के बाद आए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में धन्नीपुर में मुस्लिम पक्षकारों को मस्जिद बनाने के लिए जमीन दी गई थी लेकिन मस्जिद निर्माण की देखरेख के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा गठित इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ने तय किया है कि मस्जिद या उसके अंदर तैयार हो रही दूसरी इमारतों को मुगल शासकों के नाम पर नहीं रखा जाएगा.
फाउंडेशन के सचिव अतहर हुसैन ने दि प्रिंट से बातचीत में कहा, ‘मंदिर-मस्जिद विवाद बीते जमाने की बातें हो गई हैं, हम आज़ाद हिंदुस्तान में जी रहे हैं. इस आजादी में जिनका योगदान रहा है उनके किस्से कहानी आने वाली पीढियां जानें ये हमारी कोशिश है. इसी कारण हमने साफ किया है कि मस्जिद का नाम न तो बाबरी मस्जिद होगा न ही इसे किसी अन्य मुगल शासक को डेडिकेट किया जाएगा. लोगों ने तमाम कयास जरूर लगा रहे थे लेकिन अब हम ‘न्यू और डेमोक्रेटिक इंडिया’ में रहते हैं ऐसे में मुगल शासकों को याद करने कि क्या जरूरत है.’
अतहर के मुताबिक, 1857 में अवध क्षेत्र में ‘विद्रोह का बिगुल फूंकने वाले’ अहमुदुल्ला शाह के नाम पर इसे डेडिकेट किया जाए. इस पर अंतिम मोहर लगनी बाकी है. अथर के मुताबिक, अहमुदुल्ला शाह फैजाबाद (अयोध्या) के ही रहने वाले थे जिन्हें मौलवी फैजाबादी भी कहा जाता था.
अयोध्या में बनने वाली मस्जिद कॉम्पलेक्स सांप्रदायिक भाईचारे तथा देश भक्ति के संकेत के रूप में प्रस्तुत होगा. शाह इन मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने के साथ-साथ इस्लाम के सच्चे अनुयायी भी थे.
कौन थे अहमदुल्ला शाह
फाउंडेशन से जुड़े एक पदाधिकारी ने बताया कि शाह के नाम से फैजाबाद(अयोध्या) में लोग काफी परिचित हैं. उनका जन्म 1787 में हुआ वहीं 5 जून 1858 को वह शहीद हो गए थे. यही नहीं जॉर्ज ब्रुस मालेसन तथा थॉमस सियटन जैसे अंग्रेज अधिकारियों ने उनके साहस, शौर्य तथा उनकी संगठनात्मक क्षमताओं का जिक्र किया है. 1857 की जंग पर आधारित किताब ‘हिस्ट्री ऑफ इंडियन म्यूटिनी’ में मालेसन ने शाह का कई बार जिक्र किया है. यही कारण है कि उनको डेडिकेट करते हुए रिसर्च सेंटर बनाने की तैयारी है.
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रिसर्च सेंटर के अलावा अस्पताल व किचन भी
मस्जिद कॉम्पलेक्स में मस्जिद के अलावा एक 200 बेड का अस्पताल बनेगा, एक कम्यूनिटी किचन भी होगा. वहीं इसके अलावा इंडो इस्लामिक कल्चरल रिसर्च सेंटर जो कि इस कॉम्पलेक्स का एक अहम हिस्सा होगा उसमें एक लाइब्रेरी, म्यूजियम व पब्लिकेशन हाउस होगा. जेएनयू के रिटायर्ड प्रोफेसर पद्मश्री पुष्पेश पंत लाइब्रेरी व म्यूजियम के सलाहकार बनाए गए है्. रिसर्च सेंटर में इंडो -इस्लामिक कल्चर के स्कॉलर आएंगे जो तमाम विषयों पर रिसर्च करेंगे.
फाउंडेशन से जुड़े एक सूत्र के मुताबिक, 1857 की जंग को भी शोध का विषय रखा जाएगा क्योंकि इसका अवध से ताल्लुक रहा है और अहमदुल्ला शाह भी इसका अहम हिस्सा रहे हैं. उनसे जुड़े किस्सों का भी वहां जिक्र होगा. यही कारण है कि रिसर्च सेंटर को उनके नाम पर रखे जाने की उम्मीद है. वहीं 26 जनवरी को मस्जिद कॉम्प्लेक्स का औपचारिक शिलान्यास झंडारोहण व ट्री प्लान्टेशन करके किया गया अब निर्माण कार्य भी जल्द ही शुरू कर दिया जाएगा. फाउंडेशन की ओर से इसका औपचारिक ऐलान तो नहीं हुआ लेकिन सूत्रों की मानें तो लगभग 105 करो़ड़ का खर्च इस पूरे प्रोजेक्ट होगा.
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