नयी दिल्ली, छह सितंबर (भाषा) हिंसा प्रभावित मणिपुर में राहत एवं पुनर्वास की निगरानी के लिए सर्वोच्च अदालत द्वारा नियुक्त समिति का प्रतिनिधित्व करने वाली एक वरिष्ठ वकील ने बुधवार को राज्य सरकार के दावे पर आपत्ति जताई कि भोजन और दवा की आपूर्ति में कथित कमी को लेकर उनका बयान बिना तथ्यात्मक आधार के था।
मणिपुर के मुख्य सचिव ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष दायर एक हलफनामे में, वकील के दावे का जिक्र करते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सर्वोच्च अदालत के मंच का ‘दुरुपयोग’ किया जा रहा है।
हलफनामे में कहा गया है, ‘सुनवाई के दौरान समिति की वकील और अन्य आवेदकों/याचिकाकर्ताओं द्वारा किए गए दावे बिना किसी तथ्यात्मक आधार के थे।’
न्यायमूर्ति गीता मित्तल समिति का प्रतिनिधित्व करने वाली वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि हलफनामे के कुछ कथन उन पर ‘सीधा हमला’ हैं।
वरिष्ठ वकील ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि वह समिति की ओर से पेश नहीं होंगी।
उन्होंने कहा, ‘हमने इस हलफनामे का अध्ययन किया है। यह समिति की वकील पर सीधा हमला लगता है। मैंने अपनी ओर से कोई बयान नहीं दिया है…सिर्फ समिति के निर्देश पर कहा है।’
मैतेई क्रिश्चियन चर्च काउंसिल की ओर से पेश एक अन्य वरिष्ठ वकील हुजेफा अहमदी ने भी राज्य सरकार द्वारा उनके खिलाफ दिए गए एक बयान पर आपत्ति जताई।
उन्होंने कहा कि हलफनामे में सवाल उठाया गया है कि याचिकाकर्ता ने केवल चर्चों के विध्वंश का मामला ही क्यों उठाया। उन्होंने कहा कि राज्य ऐसा कोई रुख नहीं अपना सकता।
केंद्र और राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह विचार सिर्फ याचिकाकर्ता के चुनिंदा दृष्टिकोण को रेखांकित करने के लिए था।
भाषा अविनाश माधव
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