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बुधवार, 21 मई, 2025
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मध्यस्थता निर्णयों को संशोधित करने की शक्ति का मुद्दा विधायिका पर छोड़ा जाए : केंद्र

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नयी दिल्ली, 13 फरवरी (भाषा) केंद्र ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि इस महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न कि क्या अदालतें मध्यस्थता और सुलह पर 1996 के कानून के तहत मध्यस्थता निर्णयों को संशोधित कर सकती हैं, को देश की उभरती मध्यस्थता आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विधायिका पर छोड़ दिया जाना चाहिए।

उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ एक अहम कानूनी मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी कि क्या अदालतें मध्यस्थता और सुलह से संबंधित वर्ष 1996 के कानून के प्रावधानों के तहत मध्यस्थता से जुड़े फैसलों को संशोधित कर सकती हैं।

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति संजय कुमार, न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की संविधान पीठ के समक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र का पक्ष रखा।

पीठ ने कहा, ‘‘यदि हम मानते हैं कि मध्यस्थता निर्णयों को रद्द करने में संशोधन (शक्तियां) शामिल नहीं हैं, तो मामला यहीं समाप्त हो जाता है और यदि हम अन्यथा मानते हैं, तो दिशा-निर्देश तैयार करने होंगे।’’

अगली सुनवाई 18 फरवरी के लिए तय करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘कृपया हमें बताएं कि विदेशी न्यायालय संशोधन शक्तियों पर क्या कहते हैं।’’

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल ने मध्यस्थता, विदेशी कानूनों और अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता पर संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानून आयोग (यूएनसीआईटीआरएल) के मॉडल कानून के इतिहास को रेखांकित किया और कहा कि 1996 का कानून यूएनसीआईटीआरएल मॉडल कानून के अनुसरण में तैयार किया गया था।

मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत विवाद के निपटारे का एक वैकल्पिक तरीका मध्यस्थता है और यह न्यायाधिकरणों द्वारा दिये गए फैसलों में अदालतों के हस्तक्षेप को कम करता है।

अधिनियम की धारा 34 प्रक्रियात्मक अनियमितताओं, सार्वजनिक नीति के उल्लंघन या अधिकार क्षेत्र की कमी जैसे सीमित आधार पर मध्यस्थता से जुड़े फैसलों को रद्द करने का प्रावधान करती है।

धारा 37 मध्यस्थता से संबंधित आदेशों के खिलाफ अपील को नियंत्रित करती है, जिसमें फैसले को रद्द करने से इनकार करने वाले आदेश भी शामिल हैं।

प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 23 जनवरी को इस विवादास्पद मुद्दे को एक बड़ी पीठ को सौंप दिया था।

पीठ ने कहा कि यह अदालत सबसे पहले भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के परियोजना निदेशक बनाम एम हकीम मामले में दिए गए उस फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध करने वाले वकील की दलीलें सुनेगी, जिसमें यह निहित है कि अदालत के पास मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 34 और 37 के तहत एक फैसले को संशोधित करने की शक्ति है।

पीठ के मुताबिक, इसके बाद न्यायालय उस वकील की दलीलें सुनेगी, जिसका मत है कि धारा 34 और 37 के तहत दिए गए फैसलों में संशोधन करने की शक्ति अदालत में नहीं है।

भाषा शफीक रंजन पारुल

पारुल

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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