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Friday, 17 May, 2024
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महत्वाकांक्षी भारत को मिड-डे मील से ज़्यादा अंग्रेज़ी की भूख है

यूपी में एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत अब तक 5000 अंग्रेज़ी माध्यम के सरकारी स्कूल शुरू किए गए हैं. अधिकारियों की मानें तो अगले साल इनकी संख्या 15000 हो जाएगी.

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नई दिल्ली : मिड डे मील से जुड़े ताज़ा डेटा में ‘नए भारत’ की अनोखी तस्वीर निकल कर सामने आई है. इस तस्वीर में ऐसा दिखाई देता है जैसे ‘न्यू इंडिया’ के परिवार अपने बच्चों को मुफ्त के सरकारी खाने तक सीमित नहीं रखना चाहते.

दिप्रिंट को मिले आंकड़ा 2016-17, 2017-18 और 2018-19 के बीच हुए दाखिलों और दाखिला पाने वाले बच्चों को मिले मिड-डे मील की कवरेज से जुड़ा है. इसे आसानी से ऐसे समझ सकते हैं कि पिछले तीन सालों में कितने बच्चों को इनरोल किया गया और उनमें से कितनों को मिड-डे मील की कवरेज मिली. दिप्रिंट ने इस डाटा का विश्लेषण किया है.

2016-17 में देशभर में कुल 12,93,12,142 बच्चों को इनरोल किया गया था जिनमें से 9,77,70,853 को मिड-डे मील का फ़ायदा मिला, 2017 में 12,32,62,644 बच्चों को इनरोल किया गया था जिनमें से 9,51,84,725 को मिड-डे मील का फ़याद मिला और 2018 में 11,98,27,939 बच्चों में 9,11,53,668 को इसका फ़ायदा मिला.

डाटा पर ग़ौर करने पर पता चला कि पिछले तीन सालों में मिड डे मील की इनरोलमेंट और उसकी कवरेज पाने वालों के बीच हर साल लगभग तीन करोड़ बच्चों को गैप रहा. यानी जिन बच्चों को इनरोल किया गया उनमें से 25 प्रतिशत बच्चों को कवरेज नहीं मिल पाई.


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मामले पर शिक्षा मंत्रालय का कहना है कि ये वो बच्चे हैं जिनके परिवार तीसरी-चौथी क्लास के बाद इन्हें अंग्रेज़ी स्कूल में भेज देते हैं. शिक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘मिड डे मील में इनरोलमेंट और कवरेज के बीच इतने बड़े गैप की वजह ये है कि तीसरी और चौथी क्लास के बाद लोग अपने बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों में भेज देते हैं.’

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अधिकारी द्वारा दी गई जानकारी को 2018 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा संसदीय समिति को दिए गए एक जवाब से बल मिलता है. दरअसल, एक संसदीय समिति ने शिक्षा मंत्रालय से पूछा था कि 2010-11 से 2014-15 के बीच सरकारी स्कूलों में नए दाखिलों में 15 प्रतिशत की गिरावट क्यों हुई है जबकि इस दौरान निजी स्कूलों में ये 33 प्रतिशत बढ़ा.

उस दौरान की सर्व शिक्षा अभियान और मिड-डे मील से जुड़ी रिपोर्ट में संसदीय समिति ने कहा, ‘मिड डे मील कवरेज वाले स्कूलों में घटता इनरोलमेंट पैनल के लिए चिंता का विषय है. ये चलन निजी और उच्च-प्राथमिक विद्यालयों में होने वाले इनरोलमेंल से ठीक उल्टा है.’ समिति ने इसके कारण पता करके जल्द इसका समाधान करने को कहा था.

इसके जवाब में शिक्षा मंत्रालय ने 5 जनवरी 2108 को कहा, ‘इसकी वजह तेज़ी से बढ़ते निजी संस्थान हैं. इनसे मुकाबले के लिए कुछ राज्य अंग्रेज़ी माध्यम के प्राइमरी स्कूल शुरू करने की योजना बना रहे हैं.’ शिक्षा मंत्रालय ने उम्मीद जताई थी कि इसकी वजह से प्राथमिक विद्यालय में इनरोलमेंट घटने का चलन रुकेगा.

उत्तर प्रदेश (यूपी) में 2018-19 में इसी से जुड़ा एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया. दिप्रिंट को मिली पायलट प्रोजेक्ट की जानकारी के मुताबिक अब तक ऐसे 5000 अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल शुरू किए गए हैं. इनमें पहली से तीसरी तक अंग्रेज़ी और चौथी-पांचवी तक हिंदी और अंग्रेज़ी में पढ़ाया जाता है.

यूपी में अंग्रेज़ी स्कूलों के इस कार्यक्रम को लीड कर रहे बेसिक शिक्षा के निदेशक सर्वेंद्र कुमार ने कहा, ‘बच्चे इन स्कूलों की तरफ़ आकर्षित हो रहे हैं. 2018 में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इस कार्यक्रम को लॉन्च करने के दौरान ऐसे 1000 स्कूल शुरू करने की योजना थी लेकिन अब इनकी संख्या बढ़कर 5000 हो गई है.’

सीमा पांडे उत्तर प्रदेश के बिकामु खुर्द प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाध्यापक हैं. उन्होंने कहा, ‘मेरा स्कूल एक गांव में है इस वजह से यहां से ज़्यादा बच्चे स्कूल छोड़कर नहीं जाते. लेकिन शहरी इलाकों के समृद्ध परिवारों में अपने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा के बाद अंग्रेज़ी माध्यम में ले जाने का चलन है.’ उन्होंने ये भी कहा कि उन्हें उत्तर प्रदेश में मिड-डे मील से जुड़ी ‘नाकारात्मक’ ख़बरों का पता है लेकिन उनके स्कूल में मिड-डे मील (खाना) देने का काम अक्षय पात्रा फाउंडेशन का है. इसी का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि उनके स्कूल में अच्छा खाना आता है.

अंग्रेज़ी माध्यम के ये सरकारी स्कूल सफलता के दावों के साथ आंकड़े भी देते हैं. क्योंकि एक तरफ जहां 2016-17 में यूपी में 1,78,51,084 बच्चों को इनरोल किया गया था. वहीं, 2018-19 में ये संख्या बढ़कर 1,80,19,846 हो गई. बावजूद इसके यूपी में मिड डे मील कवरेज में फ़िर भारी गिरावट बनी रही.

अंबेडकर यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ़ लिबरल स्टडीज़ की एक शिक्षिका लंबे समय से मिड-डे मील पर लिखती रही हैं, उन्होंने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, ‘इनरोलमेंट और कवरेज के बीच गैप से जुड़ा ये तर्क समझ से परे है. वैसे इनरोलमेंट नंबर कई बार बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है क्योंकि इससे स्कूलों को ज़्यादा फंड मिलता है.’

राइट टू फूड कैंपेन की संयोजक आयशा ने कहा, ‘इसके कई कारण हैं जैसे कई बच्चे दाखिले के बाद अपने परिवार के साथ मजदूरी का काम रहे होते हैं. कई तो सरकारी स्कूल में मिलने वाले फ़ायदों की वजह से दाखिला तो ले लेते हैं लेकिन असल पढ़ाई प्राइवेट स्कूल में कर रहे होते हैं.’

वहीं, उत्तर प्रदेश से ही मिड-डे मील से जुड़ी एक के बाद एक डरावनी ख़बरें भी आई हैं. मिर्ज़ापुर के एक प्राइमरी स्कूल से ख़बर आई कि बच्चों को नमक रोटी परोसा गया तो कहीं और सोनभद्र से ख़बर आई कि एक लीटर दूध में पानी मिलाकर दर्जनों बच्चों को पिलाया गया. ताज़ा ख़बर मुज्जफरनगर से है जहां मिड डे मील में मरा हुआ चूहा मिला जिससे नौ बच्चे बीमार हो गए.

आपको बता दें कि 15 अगस्त 1995 को मिड डे मील की स्कीम को लॉन्च किया गया था. इसका उद्देश्य दाखिले के बाद बच्चों को स्कूल में बनाए रखना, उनकी हाजिरी और साथ ही उनमें पोषण का स्तर बढ़ाना है. शिक्षा मंत्रालय के स्कूली शिक्षा विभाग से जुड़े ताज़ा डाटा के मुताबिक 2018-19 के दौरान समग्र शिक्षा के तहत आने वाली मिड डे मिल का फ़ायदा 11.34 लाख़ सरकारी स्कूलों, सरकार से मदद प्राप्त स्कूलों, मदरसों और मकतबों में पढ़ने वाले पहली से आठवीं तक के 11.98 करोड़ बच्चों का इसका फ़ायदा मिला है.

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