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Thursday, 28 March, 2024
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विश्व हिंदी सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले भारतीय प्रतिनिधिमंडल को फिजी एयरपोर्ट से वतन लौटाया गया

फिजी में 15 फरवरी को विश्व हिंदी सम्मेलन शुरू होने से महज़ चार दिन पहले वित्त मंत्रालय ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल सूची में अधिकारियों की संख्या 165 से घटाकर 51 कर दी थी.

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नई दिल्ली: फिजी में 15 से 17 फरवरी के बीच विश्व हिंदी सम्मेलन (डब्ल्यूएचसी) में हिस्सा लेने वाले भारत के आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा रहे लगभग एक दर्जन सरकारी अधिकारियों के लिए पिछला हफ्ता बहुत ज्यादा परेशानी भरा रहा. दरअसल, उन्हें फिजी के नाडी एयरपोर्ट पर उतरने के तुरंत बाद ही दिल्ली के लिए वापसी का टिकट बुक कराने को कह दिया गया क्योंकि उनका दौरा ‘अनधिकृत’’ था.

दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, करीब 100 अन्य अधिकारियों को भी इस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा होना था और वे फिजी की यात्रा के लिए पूरी तरह तैयार भी थे, लेकिन आखिरी समय में हिंदी सम्मेलन के आयोजक विदेश मंत्रालय (एमईए) ने उनसे अपने टिकट रद्द कराने को कह दिया था.

अचानक ही कार्यक्रम में इस बदलाव की वजह यह थी कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने आखिरी समय पर भारतीय प्रतिनिधिमंडल की संख्या घटाने का फैसला कर लिया था.

एक सरकारी सूत्र ने कहा कि हो सकता है कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल का स्वरूप भी इस तरह के बदलाव की वजह रहा हो.

सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘‘प्रतिनिधिमंडल सरकारी अधिकारियों से भरा था. ऐसे में यह सरकारी अधिकारियों का प्रतिनिधिमंडल बन गया था. इसमें शायद ही कोई विद्वान या शिक्षाविद शामिल था.’’

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डब्ल्यूएचसी के पीछे विचार हिंदी भाषा और हिंदी से संबंधित गतिविधियों को लोकप्रिय बनाना और बढ़ावा देना है. इसका पहला सम्मेलन 1975 में नागपुर में आयोजित किया गया था.

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 15 फरवरी को 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन किया, जिसका विषय ‘‘हिंदी—कृत्रिम बुद्धिमत्ता का पारंपरिक ज्ञान’’ था.

कई सरकारी अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि सम्मेलन शुरू होने से ऐन चार दिन पूर्व 11 फरवरी को वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले व्यय विभाग (डीओई) ने भारतीय प्रतिनिधियों की सूची में अधिकारियों की संख्या 165 से घटाकर 51 कर दी थी.

यह, तब हुआ जबकि सभी अधिकारियों ने विदेश मंत्रालय से आवश्यक स्वीकृतियां हासिल करने के बाद अपने एयर टिकट बुक करा लिए थे और उनके संबंधित मंत्रालयों ने भी उन्हें यात्रा के लिए अधिकृत करते हुए ज़रूरी स्वीकृतियां दे दीं थीं.

अधिकारियों के मुताबिक, सरकार ने पिछले साल नवंबर से सम्मेलन में भाग लेने के लिए अधिकारियों के नाम तय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. विदेश मंत्रालय ने सम्मेलन के लिए अधिकारियों को नामित करने के लिए केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों, विभागों और सार्वजनिक उपक्रमों को लिखा था. स्वीकृति आदेश जारी होने के बाद ही अधिकारियों ने अपने टिकट बुक कराए थे. अधिकारियों ने कहा कि आवास और अन्य रसद की व्यवस्था के लिए फिजी में भारतीय उच्चायोग के साथ स्वीकृति आदेश भी साझा किया गया था.

दिप्रिंट ने सोमवार को ईमेल के जरिए विदेश मंत्रालय प्रवक्ता अरिंदम बागची से संपर्क किया और इस मामले में प्रतिक्रिया चाही, लेकिन इस खबर के प्रकाशित किए जाने तक उनका जवाब नहीं मिला था.

अंतिम समय में लिए गए फैसले के कारणों के बारे में जानने के लिए दिप्रिंट ने ईमेल और फोन कॉल पर वित्त सचिव टी.वी. सोमनाथन से भी संपर्क साधा, लेकिन अभी तक उन्होंने भी जवाब नहीं दिया है, लेकिन प्रतिक्रिया मिलने के बाद इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.


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‘गहरा झटका लगा’

सरकारी अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि जिन 114 अधिकारियों को अंततः सम्मेलन के प्रतिनिधियों की सूची से हटा दिया गया था, उन्होंने अन्य सभी सदस्यों की तरह स्वीकृति और मंजूरी प्रक्रिया का पालन किया था.

फिजी में नाडी एयरपोर्ट का एक नज़ारा | ट्विटर/@NadiAirport

दो वजहों से उनकी मुश्किल और ज्यादा बढ़ी, एक तो सूची से उनका हटाए जाने की जानकारी एकदम आखिरी क्षणों में दी गई और दूसरा तथ्य यह है कि फिजी पहुंचने में लगभग डेढ़ दिन का समय लगता है.

विदेश मंत्रालय ने सूची से अधिकारियों के नाम हटाने संबंधी वित्त मंत्रालय के फैसले के बारे में जानकारी अधिकारियों को आधिकारिक तौर पर 13 फरवरी को भेजे गए एक ईमेल के जरिये दी. एक दिन पहले भी सम्मेलन में जाने वालों को फोन किया गया था.

हालांकि, करीब एक दर्जन अधिकारी लगभग 30 घंटे की यात्रा करके फिजी में उतर चुके थे और उन्हें एयरपोर्ट पर ही दिल्ली के लिए वापसी टिकट बुक कराने को कहा गया. वही, अन्य तमाम अधिकारी अपनी यात्रा की तैयारी कर रहे थे जब उन्हें अपने टिकट रद्द कराने को कहा गया.

केंद्रीय मंत्रालय में एक निदेशक स्तर के अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘‘वे (जो यात्रा पर रवाना हो गए थे) विदेश मंत्रालय के मेल को नहीं देख पाए और फिजी में उतरते ही उन्हें गहरा झटका लगा. एयरपोर्ट के हेल्प डेस्क की तरफ से अधिकारियों को बताया गया कि उन्हें तुरंत दिल्ली लौटना होगा क्योंकि उनके नाम स्वीकृत अधिकारियों की सूची में नहीं हैं.’’

भारतीय प्रतिनिधिमंडल से हटाए गए एक अधिकारी ने कहा, ‘‘करीब 30 घंटे की यात्रा कर फिजी पहुंचे अधिकारियों ने भारतीय उच्चायोग से कहा कि जब तक वापसी की टिकट बुक होती है तब तक रुकने का कुछ इंतजाम करा दिया जाए लेकिन उन्हें अपने स्तर पर ही प्रबंध करने को कह दिया गया. अधिकारियों ने किसी तरह वापसी का टिकट बुक कराया और वापस दिल्ली रवाना हो गए.’’

दिप्रिंट ने फिजी में भारतीय उच्चायुक्त पी.एस. कार्तिकेयन से भी सोमवार को ईमेल और फोन कॉल के जरिये संपर्क साधा लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित होने के समय तक उनकी भी प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.


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‘पहले लिया जा सकता था फैसला’

इधर, देश में उन अधिकारियों में भी काफी बेचैनी रही जिन्हें यात्रा पर निकलने के ऐन पहले सूचना मिली थी कि उनके नाम हटा दिए गए हैं.

ऐसे कई अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि वे पूर्व में स्वीकृत 114 नामों को हटाने के वित्त मंत्रालय के फैसले पर सवाल नहीं उठा रहे, लेकिन इस तरह आखिरी क्षणों में फैसला लेने का औचित्य समझ से परे है.

प्रतिनिधिमंडल से बाहर किए गए एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘अगर सरकार को लग रहा था कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल बहुत बड़ा हो गया है, तो संख्या कम करना उसका अधिकार है. लेकिन यह कदम सम्मेलन से महज़ चार दिन पहले क्यों उठाया गया? यह पहले किया भी जा सकता था, मंत्रालयों को राजनीतिक मंजूरी और यात्रा के लिए चयनित लोगों को स्वीकृति पत्र जारी होने से पहले.’’

नाम न छापने की शर्त पर इस अधिकारी ने कहा, ‘‘यदि फैसला पहले लिया गया होता तो टिकट रद्द कराने में सरकार को पैसे नहीं गंवाने पड़ते. साथ ही इससे अधिकारियों को होने वाली अनावश्यक परेशानियों से भी बचा जा सकता था, जिन्हें अंतिम समय में टिकट रद्द करवाना पड़ा.’’

वित्त मंत्रालय के अंतिम मिनट के फैसले ने उन अधिकारियों के बीच भी हड़बड़ी मचा दी जो फिजी रवाना नहीं हुए थे. उनको अपना टिकट रद्द कराने की जल्दी थी. 12 फरवरी की रात को अपना टिकट रद्द करने वाले एक अधिकारी ने कहा कि आखिरी समय में कैंसिलेशन पर काफी कम रिफंड ही मिलता है.

अधिकारियों ने कहा कि फिजी की एक राउंड ट्रिप का खर्च 1.15 लाख रुपये से लेकर 2 लाख रुपये के बीच होता है, यह इस पर निर्भर करता है कि टिकट कितने दिन पहले बुक किया गया है.

फिजी में विश्व हिंदी सम्मेलन का साइनेज | ट्विटर/@EduMinOfIndia

एक केंद्रीय मंत्रालय के एक अन्य अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें 12 फरवरी, रविवार को रात करीब 8:30 बजे विदेश मंत्रालय से फोन आया. उस समय वह एयरपोर्ट जाने के लिए कैब बुक कर रहे थे.

अधिकारी ने बताया, ‘‘मेरी उड़ान 13 फरवरी की सुबह थी और जब मैं एयरपोर्ट जाने के लिए कैब बुक कराने की तैयारी कर रहा था, तभी हिंदी सम्मेलन की ज़िम्मेदारी संभालने वाले विदेश मंत्रालय के कुछ अधिकारियों का फोन आया जिन्होंने मुझे बताया कि मेरा नाम स्वीकृत नहीं किया गया है. पहले तो मुझे लगा कि यह किसी तरह का मजाक है क्योंकि मुझे इस संबंध में कोई मेल नहीं मिला था.’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने पुष्टि के लिए उसी नंबर पर दोबारा कॉल किया. फोन उठाने वाले अधिकारी ने बताया कि कई नामों को हटा दिया गया है और इसके बारे में सूचित करने वाला एक मेल जल्द ही भेजा जाएगा. चूंकि बहुत से अधिकारी जल्द ही उड़ान भरने वाले थे, इसलिए वे अलग-अलग अधिकारियों को फोन करके बता रहे थे. फोन रखने के बाद मैंने तुरंत अपने पीएस (निजी सचिव) को फोन किया और टिकट रद्द कराने को कहा.’’


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‘अनधिकृत’ यात्रा को लेकर चिंता

विदेश मंत्रालय का वह मेल दिप्रिंट ने देखा है, जिसके साथ उन लोगों के नामों की सूची संलग्न की थी जिन्हें आखिरी क्षणों में प्रतिनिधिमंडल से बाहर कर दिया गया था और साथ ही डीओई की तरफ से हटा दिया गया था.

मेल में कहा गया है, ‘‘जिन अधिकारियों के नामों को मंजूरी नहीं दी गई है, उन्हें सलाह दी जाती है कि फिजी यात्रा न करें क्योंकि इसे अनधिकृत यात्रा माना जाएगा.’’

हालांकि, अभी तक इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है कि अनजाने में फिजी में उतरे अधिकारियों के टिकट का खर्च कौन उठाएगा, क्योंकि उनकी यात्रा को वित्त मंत्रालय ने ‘अनधिकृत’ माना है.

एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘ऐसे ‘अधिकारियों में यह चिंता भी है कि क्या उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की जाएगी.’’

नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने आखिरी समय में कटौती की वजह से मची अफरातफरी के बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘‘अगर वित्त मंत्रालय ने पहले ही फैसला कर लिया होता तो इस सबसे बचा जा सकता था.’’

अधिकारी ने बताया कि यह पहली बार नहीं था कि हिंदी सम्मेलन में इतना बड़ा सरकारी प्रतिनिधिमंडल भेजा जा रहा हो.

अधिकारी ने बताया, ‘‘मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल में करीब 300 लोग शामिल थे. यही नहीं पहले भी बड़े प्रतिनिधिमंडल गए थे. सरकार को स्पष्ट तौर पर विश्व हिंदी सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले अधिकारियों की संख्या की एक सीमा तय कर देनी चाहिए.’’

उन्होंने कहा कि अधिकारियों के सम्मेलन में हिस्सा लेने के अपेक्षित ‘नतीजे’ भी बहुत स्पष्ट नहीं हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘आखिर विश्व हिंदी सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले अधिकारी क्या सीखते हैं और जब वापस लौटते हैं तो हिंदी को बढ़ावा देने के लिए इसे कैसे लागू करते हैं? सरकार को यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि ऐसे सम्मेलनों का नतीजा क्या निकलेगा.’’

(अनुवाद : रावी द्विवेदी | संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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