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Tuesday, 12 August, 2025
होमदेशपति के त्यागने पर भी शक्ति की प्रतीक बनी रहती है ‘आदर्श भारतीय पत्नी’:मप्र उच्च न्यायालय

पति के त्यागने पर भी शक्ति की प्रतीक बनी रहती है ‘आदर्श भारतीय पत्नी’:मप्र उच्च न्यायालय

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इंदौर, आठ अगस्त (भाषा) मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने तलाक के लिए एक व्यक्ति की याचिका खारिज करते हुए उसकी पत्नी की तारीफ की जो अपने पति द्वारा करीब दो दशक पहले छोड़ दिए जाने के बाद भी ससुराल वालों के साथ रहकर पूरी शिद्दत से उनकी देखभाल कर रही है।

अदालत ने कहा कि ‘एक आदर्श भारतीय पत्नी’ ऐसी स्थिति में भी अपने ‘धर्म’ पर दृढ़ रहती है।

उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति विवेक रुसिया और न्यायमूर्ति बिनोद कुमार द्विवेदी ने पांच अगस्त को पारित आदेश में कहा कि इस मामले में पत्नी का आचरण ‘शक्ति’ के रूप में एक महिला के हिंदू आदर्श को व्यक्त करता है और यह भी बताता है कि वह कमजोर नहीं, बल्कि अपने धैर्य और शालीनता को लेकर ‘विनम्र और शक्तिशाली’ है।

तलाक की याचिका दायर करने वाला व्यक्ति राज्य पुलिस के विशेष सशस्त्र बल (एसएएफ) के आरक्षक के रूप में भोपाल में तैनात है और 2006 से अपनी पत्नी से अलग रह रहा है।

इस व्यक्ति ने अपनी पत्नी पर क्रूरता का आरोप लगाते हुए तलाक के लिए शुरुआत में एक स्थानीय अदालत में याचिका दायर की थी और कहा था कि उसकी पत्नी ने वैवाहिक संबंधों में कोई रुचि नहीं दिखाई और उस पर अवैध संबंध रखने और शराब पीने का झूठा आरोप लगाया।

हालांकि, पत्नी ने इस आरोप का खंडन किया और कहा कि उसका पति झूठे आधार पर तलाक मांग रहा है।

महिला ने कहा कि वह शादी के बाद से अपने ससुराल वालों के साथ रह रही है और अपने वैवाहिक दायित्वों को पूरा करने के लिए हमेशा तैयार रही है।

महिला ने यह आरोप भी लगाया कि उसके पति का अपनी एक महिला सहकर्मी के साथ विवाहेतर संबंध है।

स्थानीय अदालत ने पति की तलाक की याचिका खारिज कर दी थी। इस फैसले के खिलाफ पति ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी।

हालांकि, उच्च न्यायालय ने पति की अपील के आधार को ‘बेहद सतही और खोखला’ पाया और निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी।

उच्च न्यायालय ने कहा कि महिला अपने पति की अनुपस्थिति के बावजूद ससुराल वालों के प्रति समर्पित रही है।

युगल पीठ ने कहा कि महिला अपने ससुराल के लोगों की उसी सद्भाव से देखभाल और सेवा कर रही है, जैसे वह अपने पति की मौजूदगी में करती, नतीजतन महिला की नैतिक स्थिति और मजबूत हो रही है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि महिला अपनी पीड़ा का इस्तेमाल सहानुभूति पाने के लिए नहीं करती, बल्कि इस पीड़ा को अपने मन के भीतर की ओर मोड़ देती है जो ‘शक्ति’ के रूप में एक महिला के हिंदू आदर्श को व्यक्त करता है और बताता है कि वह कमजोर नहीं, बल्कि अपने धैर्य और शालीनता को लेकर विनम्र और शक्तिशाली है।

अदालत ने कहा कि यहां तक कि जब उसे अकेला छोड़ दिया जाता है, तब भी वह मंगलसूत्र, सिंदूर और अपने सुहाग की अन्य निशानियों को नहीं त्यागती क्योंकि उसके लिए विवाह कोई अनुबंध नहीं, बल्कि एक संस्कार है-एक अमिट पवित्र संस्कार।

युगल पीठ ने कहा,’हिंदू मान्यताओं के अनुसार विवाह एक पवित्र, शाश्वत और अटूट बंधन है। एक आदर्श भारतीय पत्नी अपने पति द्वारा त्याग दिए जाने पर भी शक्ति, गरिमा और सदाचार की प्रतीक बनी रहती है। उसका आचरण धर्म, सांस्कृतिक मूल्यों और वैवाहिक बंधन की पवित्रता में निहित होता है….परित्याग की पीड़ा के बावजूद वह एक पत्नी के रूप में अपने धर्म पर दृढ़ रहती है।’

महिला के पति ने तलाक की गुहार लगाते हुए उच्च न्यायालय में दलील पेश की कि उसकी पत्नी अपने वैवाहिक दायित्व को पूरा करने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन अदालत ने इसे खारिज करते हुए कहा कि यह बात इस ‘तथ्य’ से झूठी साबित होती है कि दम्पति का एक बेटा है जो अब बालिग हो चुका है।

महिला ने यह आरोप भी लगाया कि उसके पति का अपनी एक महिला सहकर्मी के साथ विवाहेतर संबंध है। इस आरोप को पति ने ‘पत्नी की क्रूरता’ बताया था, लेकिन उच्च न्यायालय इस नतीजे पर पहुंचा कि महिला की स्थिति को देखते हुए इसे क्रूरता नहीं माना जा सकता।

युगल पीठ ने कहा,’गहरी निराशा के कारण महिला आशंका जता रही है कि उसका पति उसे अपने साथ इसलिए नहीं रख रहा क्योंकि उसका किसी दूसरी महिला के संग प्रेम संबंध है।’’

अदालत ने रेखांकित किया कि महिला ने अपने पति पर यह आरोप सार्वजनिक रूप से नहीं, बल्कि पति की दायर तलाक याचिका के जवाब में लगाया था।

भाषा हर्ष

संतोष

संतोष

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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