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Monday, 6 May, 2024
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लॉकडाउन: रैन बसेरे में कैद गर्भवती महिलाएं-बच्चे, कोरोना से ज़्यादा भूख से मौत का डर

दिल्ली के हुमायूं के मकबरे के पास तैनात पुलिस वाले ने लॉकडाउन फेल होने की आशंका जताते हुए कहा, 'जो ग़रीब है वो भूखे-प्यासे सड़कों पर मारा मारा फिर रहा है.' 

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नई दिल्ली: दिल्ली के मोतिया ख़ान में एक रैन बसेरे में कैद 25 साल की सकोली बोलीं, ‘आठ महीने से प्रेग्नेंट हूं. दवाई तक नहीं मिल रही है. न दवा है न खाना. सरकार से खाना पहुंचाने की गुज़ारिश है.’

सकोली जैसी आधा दर्जन के करीब महिलाएं प्रेग्नेंट हैं. एक महिला का शुक्रवार को यानी नौंवा महीना पूरा होने वाला है. लेकिन कोरोना महामारी की वजह से किए गए 21 दिन के लॉकडाउन में इनके रैन बसेरे के बाहर ताला लगा दिया गया है और ऐसे सैंकड़ों बड़े, बूढ़ें, महिलाएं और बच्चे बिना खाना, पानी और मेडिकल सुविधा के यहां कैद हैं.

दिल्ली के सदर बाज़ार से तकरीबन आठ किलोमीटर की दूरी पर पुश्ते के पास कई रैन बसेरे हैं. जहां अधेड़ और बुजुर्ग मर्द तकरीबन 5000 की संख्या में हैं. ये आंकड़ा एक पुलिस वाले ने नाम न छापने की शर्त पर दिया. मोतिया ख़ान के कैद लोगों से लेकर पुश्ता के रैन बसेरे वालों ने एक सुर में कहा, ‘कोरोना तो बाद में मारेगा, इससे पहले भूखे मर जाएंगे.’

ताला जड़े दरवाजे के दूसरी तरफ दर्जनों लोगों के साथ जानवरों से बदतर स्थिति में कैद सकोली ने कहा, ‘जो मां का दूध पीते हैं उन्हें सबसे ज़्यादा तकलीफ़ हो रही है. प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए आठ दिन में दवाई आ जाती थी. अब वो भी मुहाल है. पुलिस वालों ने बीमारी से बचाने के लिए ताला लगाने को कहा और हम बिना अनाज यहां कैद हैं.’

17 साल के रवि को नहीं पता की कोरोना जैसा कहर दुनिया पर बरपा है. उसे इतनी समझ ज़रूरी है कुछ बड़ा हुआ है. वो कहता है कि इतनी बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक चल रही है. लोगों को यहां कैद रहने में कोई दिक्कत नहीं. उसने आगे कहा, ‘लेकिन हम खाएंगे नहीं तो मर जाएंगे. अगर सरकार खाना नहीं दे सकती तो हमें बाहर आकर काम तो करने दे.’

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जनता कर्फ्यू के दिन का ज़िक्र करते हुए यहां मौजूद दर्जनों की संख्या में लोग एक सुर में बंद दरवाजे की दूसरी तरफ से कहने लगे कि रविवार से सबकुछ बंद है. इन्हें कोई ख़ास जानकारी भी नहीं है कि ये वायरस क्या बला है. वो पूछते हैं, ‘कोई बताए भूखे बच्चों, बूढ़ों और प्रेग्नेंट महिलाओं को लेकर हम कहां जाएं?’

यहीं कैद प्रिया काले दिल्ली के ट्रैफिक सिग्नलों पर गुब्बारे बेचती हैं. उन्होंने बताया, ‘संडे तक का राशन हमारे पास था. इससे ज़्यादा के पैसे नहीं थे. अब हम भूख बच्चों को भी तीन दिन से पानी पिला रहे हैं. हम यहां 10 साल से रहते हैं. लेकिन पुलिस वाले ने हमें यहां कैद कर दिया है और बाहर निकलने पर मारते हैं.’

भीड़ में मौजूद एक व्यक्ति ने बताया कि यहां 72 परिवार रहते हैं और पिछले चार दिनों से सबको आधा किलो अनाज भी नहीं मिला. तीन दिन से बच्चे भूख से तड़प रहे हैं और पुलिस वाले हों या दिल्ली सरकार, कोई इनकी नहीं सुन रहा है. इन्होंने बताया कि रैन बसेरे को संतोष नाम का एक व्यक्ति चलाता है लेकिन उसका भी कोई पता नहीं कि वो कहां है.

मोतिया खान रैन बसेरे की तरह पुश्ता के रैन बसेरे में सैंकड़ों लोगों एक दूसरे से चिपके थे. ये बाशौक नहीं था, बल्कि इनके पास ना तो कोई विकल्प है और ना ही किसी तरह की कोई जादरुकता फ़ैलाने का काम किया गया है. इन्हीं में से एक विष्णु (45 साल) ने कहा, ‘ढंग से खाना भी नहीं मिलता. कुत्ते से भी बुरा हाल हो गया हमारा.’

उनका पूरा दर्द तब सामने आया जब उन्होंने कहा कि अगर उन जैसे मर भी गए तो कोई उन्हें ले जाने वाला नहीं है. ऐसा ही एक व्यक्ति इन रैन बसेरों से सटे फुटपाथ पर अधमरा लेटा था. दिल्ली सरकार की तरफ़ से यहां खाना बांटने का काम कर रहे एक व्यक्ति ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि पिछले दो दिनों में तीन लोगों की मौत हो गई है और कोई लाश तक ले जाने वाला नहीं है.

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रैन बसेरे में पंगत में खाना खाने के लिए बैठे लोग.

वहां मौजूद भीड़ का दर्द ये भी था कि खाना सिर्फ उन्हें मिलता है जो रैन बसेरे में रहते हैं. लॉकडाउन की वजह से जो इधर उधर से यहां आए हैं उन्हें कोई नहीं पूछता. रैन बसेरे में रहने वाले 47 साल के संजय कुमार ने कहा, ‘शहर में भीड़ कम कर रहे हैं और सबको यहां जमा कर रहे हैं. लेकिन सबको खाना नहीं मिल रहा है.’

रैन बसेरे में रहने वाले चंदन ने बताया कि सुबह-शाम खाना आता है. कभी रोटी के साथ दाल और तो कभी पानी वाली खिचड़ी दे देते हैं. सिख समुदाय के लोगों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘सरदार हमारे लिए खाना लेकर आते हैं.’ इनकी और इस इलाके में पेट्रोलिंग कर रहे पुलिस वालों की मांग और सलाह है कि जल्द गुरुद्वारों का लंगर खुलवा दिया जाना चाहिए.

एक और पुलिस वाले ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ‘भूख इंसान से कुछ भी करवा सकती है. ये सब सस्ते नशे करते हैं और ट्रैफिक सिग्नल पर भीख़ मांगने का काम करते हैं. ये सैंकड़ों की संख्या में हैं और अगर यही हालत रही तो ये कुछ भी कर गुज़रेंगे.’ उन्होंने कहा कि इन्हें अभी के लिए सरकारी स्कूलों में रखवा देना चाहिए और खाने की ठीक व्यवस्था करवानी चाहिए नहीं तो लॉकडाउन पूरी तरह से फ़ेल हो जाएगा.

इन लोगों को खाना बांटने का काम सेफ अप्रोच नाम का एक एनजीओ कर रहा है. इसी से जुड़े 27 साल के भीम ने कहा, ‘खाने के लिए राशन दिल्ली सरकार की तरफ से दिया जा रहा है जिससे हम इन्हें दो टाइम खिचड़ी दे रहे हैं.’ एनजीओ का दावा है कि रोज़ाना 5-6 हज़ार लोगों को खाना बांटा जा रहा है.

खाना बांटने के काम में लगे ज़्यादातर लोगों ने मास्क और ग्लब्स नहीं पहन रखे थे. इन्होंने कहा कि इन्हें पता है कि एक-दूसरे से दूरी बना के रखनी है लेकिन रैन बसेरे वाले नहीं मानते और खाने की चाह में एक दूसरे से चिपक कर बैठ जाते हैं. ऐसे में इन्हें खाना दे रहे लोगों के पास सोशल डिस्टेंसिंग का कोई विकल्प नहीं होता.

इसी एनजीओ के राहुल ने कहा, ‘हमें पता है कि माहमारी फैली है. हमें भी डर लग रहा है, लेकिन क्या करें…हम गरीब लोग हैं.’ उन्होंने कहा कि बहुत से लोगों को मास्क और ग्लब्स मिला है लेकिन कोई नहीं लगाता. राहुल का भी मास्क कहीं खो गया है.

देश की राजधानी के इन इलाकों समेत तमाम रेड लाइट पर भूखे प्यासे लोग बिलखते नज़र आ रहे हैं. हुमायूं के मकबरे के पास एक बैरिकेड पर तैनात पुलिस वाले ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ‘बाकी के लोग तो अपने घरों में बंद हैं, लेकिन जो ग़रीब है वो भूखे-प्यासे सड़कों पर मारा मारा फिर रहा है.’

उनका मानना है कि सरकार की नीयत और प्रयास में भले ही कोई खोट ना हो. लेकिन अगर इन लोगों के लिए उचित व्यवस्था नहीं की गई तो लॉकडाउन का कोई फ़ायदा नहीं होगा और कोरोना महामारी विकराल रूप ले लेगी.

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