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Wednesday, 17 September, 2025
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अपात्रों को जमीन बेचे जाने की जांच में अफसरों की लापरवाही पर उच्च न्यायालय हुआ सख्त

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लखनऊ, 16 सितंबर (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने राजधानी के मकदूमपुर में बहुजन निर्बल वर्ग सहकारी गृह निर्माण समिति द्वारा अपात्र व्यक्तियों को भूखंड बेचे जाने के मामले की जांच में राज्य अधिकारियों की सुस्त कार्रवाई पर मंगलवार को अप्रसन्नता जतायी।

पीठ ने कहा है कि वह 17 सितंबर को मामले की जांच किसी केंद्रीय एजेंसी को सौंपने पर विचार करेगी।

न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की पीठ ने बहुजन निर्बल वर्ग सहकारी गृह निर्माण समिति लिमिटेड द्वारा दायर एक याचिका पर यह आदेश पारित किया।

याचिका में अनुरोध किया गया था कि वर्तमान निर्वाचित पदाधिकारियों को काम करने दिया जाए और सेवानिवृत्त कार्यकारिणी को काम करने से रोका जाए।

अदालत ने सुनवाई के दौरान पाया कि समिति का गठन अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के लाभ के लिए किया गया था। आरोप लगाया गया था कि पूर्व पदाधिकारियों ने नियम विरुद्ध तरीके से समिति के कई सदस्यों को काफी जमीन आवंटित की। इतना ही नहीं, कई ऐसे लोगों को भी जमीन दी गई जो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग से नहीं आते थे।

अपर महाधिवक्ता प्रीतीश कुमार ने मंगलवार को अदालत को बताया कि चूंकि मामला एक करोड़ रुपये से अधिक का था, इसलिए इसकी जांच आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) को सौंपी गई थी।

अदालत को बताया गया कि ईओडब्ल्यू की टीम ने 10 सितंबर को संज्ञान लेने के बाद घटनास्थल का दौरा किया था और 14 सितंबर को संबंधित व्यक्तियों को मामले से संबंधित दस्तावेज हासिल करने के लिए नोटिस जारी किए गए थे।

इस पर अदालत ने असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि ईओडब्ल्यू की कार्रवाई स्पष्ट रूप से जांच अधिकारियों की ढिलाई को दर्शाती है। अदालत ने कहा कि मामले में गबन और धोखाधड़ी के आरोप हैं और ऐसी स्थिति में आवश्यक दस्तावेज पहले से ही रिकॉर्ड में होने के बावजूद घटनास्थल का निरीक्षण करना समझ से परे है।

इस बीच, समिति के पूर्व पदाधिकारी प्रवीण सिंह बाफिला की ओर से भी जवाबी हलफनामा दाखिल किया गया।

पिछली सुनवाई पर अदालत ने टिप्पणी की थी कि सहकारी आवास समितियों में भ्रष्टाचार की बीमारी बहुत गहरी है। यह भी आदेश दिया गया था कि बहुजन निर्बल वर्ग सहकारी गृह निर्माण समिति लिमिटेड द्वारा किए गए भूमि आवंटनों की जांच की जाए और आवश्यकता पड़ने पर वसूली की कार्यवाही शुरू की जाए।

अदालत ने यह भी कहा था कि अगर जरूरी हो तो इस मामले में धन शोधन अधिनियम के तहत भी कार्रवाई की जाए।

भाषा सं. सलीम अमित

अमित

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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