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Tuesday, 25 June, 2024
होमदेशपंजाब के गवर्नर ने मान को लिखी चिट्ठी, गुरबानी बिल पारित होने वाले विधानसभा सत्र की वैधता पर उठाए सवाल

पंजाब के गवर्नर ने मान को लिखी चिट्ठी, गुरबानी बिल पारित होने वाले विधानसभा सत्र की वैधता पर उठाए सवाल

राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित का पत्र सीएम द्वारा भेजे गए एक पत्र के जवाब में था जिसमें राज्यपाल से स्वर्ण मंदिर से गुरबानी के प्रसारण के संबंध में एक विधेयक पर अपनी सहमति देने के लिए कहा गया था.

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चंडीगढ़: पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित और मुख्यमंत्री भगवंत मान के बीच पत्रों के आदान-प्रदान के एक नए दौर में, राज्यपाल ने पिछले महीने मान सरकार द्वारा बुलाए गए विधानसभा के दो दिवसीय विशेष सत्र की कानूनी वैधता पर सवाल उठाए हैं.

मान द्वारा शनिवार को भेजे गए एक पत्र के जवाब में, जिसमें राज्यपाल से स्वर्ण मंदिर से गुरबानी के प्रसारण के संबंध में विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर अपनी सहमति देने के लिए कहा गया था, पुरोहित ने सोमवार को लिखा कि उन्हें मिली कानूनी सलाह के अनुसार, 19 और 20 जून को बुलाया गया विधानसभा सत्र “कानून और प्रक्रिया का उल्लंघन” था.

राज्यपाल ने लिखा, “राज्यपाल के रूप में मुझे भारत के संविधान द्वारा यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया है कि विधेयक कानून के अनुसार पारित हों. अपने कर्तव्य का ईमानदारी से निर्वहन करने के लिए मैंने कानूनी सलाह प्राप्त की है, जिससे मुझे विश्वास हो गया है कि 19 और 20 जून को विधानसभा सत्र बुलाना, जब ये चार विधेयक पारित किए गए थे, कानून और प्रक्रिया का उल्लंघन था, जिससे उन बिलों की वैधता और वैधानिकता पर संदेह पैदा होता है.”

मान सरकार ने विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान, सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 में एक विवादास्पद संशोधन सहित चार विधेयक पारित किए थे. मान के अनुसार, इस कदम का उद्देश्य स्वर्ण मंदिर से गुरबानी (पवित्र भजन) के प्रसारण पर एक चैनल के एकाधिकार को समाप्त करना था.

अधिनियम में एक प्रावधान जोड़कर संशोधन करने की मांग की गई थी, जिससे कई चैनलों और मीडिया को स्वर्ण मंदिर से गुरबानी तक पहुंचने की अनुमति मिल सके. बाद में विधेयक को हस्ताक्षर के लिए राज्यपाल के पास भेजा गया.

राज्यपाल के सोमवार के पत्र पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, आम आदमी पार्टी (आप) के प्रवक्ता मालविंदर सिंह कांग ने ट्वीट किया कि पंजाब के राज्यपाल ने खुद को “केंद्र का एजेंट” साबित कर दिया है.

इस बीच, एसजीपीसी ने राज्यपाल द्वारा सीएम को भेजे गए जवाब पर संतुष्टि व्यक्त की.

अमृतसर में सोमवार शाम सोशल मीडिया पर जारी एक बयान में एसजीपीसी अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने कहा कि राज्यपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख हैं और उन्होंने सही काम किया है. धामी ने उम्मीद जताई कि राज्यपाल भविष्य में भी कानून के अनुरूप फैसले लेंगे, ताकि लोगों की भावनाओं का प्रतिनिधित्व हो सके.

 

धामी ने कहा कि मुख्यमंत्री भगवंत मान को पंजाब के राज्यपाल द्वारा भेजे गए जवाब से सबक लेना चाहिए और भविष्य में असंवैधानिक और मनमाने फैसलों से बचना चाहिए.


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पंजाब, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ में ऐतिहासिक सिख गुरुद्वारों का प्रबंधन करने वाली शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) ने विधानसभा द्वारा विधेयक पारित किए जाने को खारिज कर दिया है.

पिछले हफ्ते, संस्था ने घोषणा की थी कि वे एसजीपीसी के अपने यूट्यूब चैनल पर स्वर्ण मंदिर से गुरबानी का लाइव रिले शुरू करेंगे और आने वाले महीनों में अपना खुद का टीवी चैनल भी लॉन्च करेंगे.

लेटर वॉर

एसजीपीसी के कदम से प्रेरित होकर, मान ने शनिवार को राज्यपाल को पत्र लिखकर उनसे जल्द से जल्द विधेयक पर हस्ताक्षर करने का आग्रह किया.

मान ने लिखा, “जैसा कि आप जानते हैं, एक राजनीतिक परिवार के स्वामित्व वाले एक विशेष चैनल ने श्री हरमंदिर साहिब से सरब सांझी गुरबानी के प्रसारण पर एकाधिकार कर लिया है और इससे मुनाफा कमा रहा है.”

मुख्यमंत्री बादल परिवार का जिक्र कर रहे थे जो कि स्वर्ण मंदिर से गुरबानी का प्रसारिण करने वाले पीटीसी चैनल के मालिक हैं. एसजीपीसी और पीटीसी के बीच कॉन्ट्रैक्ट 23 जुलाई को खत्म हो रहा है.

मान के पत्र में कहा गया, “पवित्र गुरुओं की शिक्षाओं का प्रचार करने और श्री हरमंदिर साहिब से सरब सांझी गुरबानी के प्रसारण को सभी के लिए स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराने के लिए, सिख गुरुद्वारा अधिनियम 1925 में धारा 125-ए जोड़ने के लिए सिख गुरुद्वारा (संशोधन) विधेयक 2023 को विधानसभा में पेश किया गया. विधानसभा ने इस विधेयक पर विचार किया और इसे भारी बहुमत से पारित किया.”

उन्होंने लिखा, “यह विधेयक 26 जून 2023 को आपके पास हस्ताक्षर के लिए भेजा गया था. हालांकि, खेद है कि विधेयक पर आज तक हस्ताक्षर नहीं किए गए हैं. यह पंजाब के लोगों की लोकतांत्रिक इच्छा का गला घोंटने जैसा है. मैं आपके ध्यान में यह भी लाना चाहूंगा कि हमारी जानकारी के अनुसार, उक्त चैनल के साथ एसजीपीसी का समझौता 23 जुलाई, 2023 को समाप्त हो रहा है. यदि आप तुरंत विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करते हैं, तो इससे ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है जहां लाखों लोग दुनिया भर के श्रद्धालु श्री हरमंदिर साहिब से पवित्र गुरबानी का सीधा प्रसारण देखने से वंचित हो जाएंगे. इससे उनकी धार्मिक भावनाएं गंभीर रूप से आहत होंगी.”

मान ने आगे कहा, “इसलिए मैं आपसे जल्द से जल्द बिल पर हस्ताक्षर करने का आग्रह करता हूं, ताकि श्री हरमंदिर साहिब से सरब सांझी गुरबानी का प्रसारण विभिन्न चैनलों और मीडिया के माध्यम से सभी के लिए स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराया जा सके.”

सोमवार को अपने जवाब में, राज्यपाल ने पलटवार करते हुए कहा कि सीएम, खुद की बातों से ही, “एक राजनीतिक परिवार के कुछ कार्यों से चिंतित” प्रतीत होते हैं.

राज्यपाल ने पत्र में लिखा, “आपने यह भी बताया है कि बिल पर तुरंत हस्ताक्षर करने में मेरी ओर से किसी भी देरी के संभावित परिणाम के बारे में आप क्या समझते हैं. आपने यह भी सोचा है कि मेरे द्वारा लिया गया समय पंजाब के लोगों की लोकतांत्रिक इच्छा को दबाने जैसा है. जो कि आपकी निजी धारणा का प्रतीत होती है, उसमें मैं आपसे कुछ भी कहना नहीं चाहता.”

पुरोहित ने लिखा, “प्राप्त कानूनी सलाह की पृष्ठभूमि में, मैं सक्रिय रूप से इस बात पर विचार कर रहा हूं कि क्या भारत के अटॉर्नी जनरल से कानूनी राय ली जाए या संविधान के अनुसार इन विधेयकों को भारत के राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित किया जाए.”

राज्यपाल ने कहा, “मुख्यमंत्री के रूप में आप इस बात की सराहना करेंगे कि पंजाब के लोग यह सुनिश्चित करने के लिए समान रूप से चिंतित हैं कि अंततः उन्हें प्रभावित करने वाले कानून उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद पारित किए जाएं. आप निश्चिंत रहें कि मैं 19 और 20 जून के विधानसभा सत्र की वैधता की जांच के बाद कानून के अनुसार कार्रवाई करूंगा.”

अन्य पारित विधेयक

सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 में संशोधन करने वाले विधेयक के अलावा, विधानसभा ने विशेष सत्र के दौरान, पंजाब विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, 2023 भी पारित किया, जिसने राज्यपाल को राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के पद से हटा दिया और चांसलर की शक्तियां सीएम को सौंप दीं.

राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच लंबे समय से विवाद का विषय रही हैं और राज्यपाल ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में उचित प्रक्रिया का पालन नहीं कर रही है.

उस दिन पारित एक और विधेयक पंजाब पुलिस (संशोधन) विधेयक, 2023 था, जो राज्य सरकार को पुलिस महानिदेशक (पुलिस बल के प्रमुख) का चयन करने के लिए अपनी प्रक्रिया का पालन करने का अधिकार देता है. वर्तमान में, पंजाब सहित देश भर की प्रत्येक राज्य सरकार, डीजीपी की नियुक्ति में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सिफारिशों से बंधी हुई है.

विधानसभा ने पंजाब शैक्षिक न्यायाधिकरण के कामकाज को सुव्यवस्थित करने के लिए पंजाब संबद्ध कॉलेज (सेवा की सुरक्षा) अधिनियम, 1974 में एक संशोधन भी पारित किया, जो संबद्ध कॉलेजों में सेवा विवादों को हल करने के लिए अधिनियम के तहत बनाई गई एक संस्था है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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