नई दिल्ली: ऑर्गनाइजर वेबसाइट के एक संपादकीय में प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को यह आकलन करना होगा कि पार्टी में “दागी नेताओं” के आने से उसकी भ्रष्टाचार मुक्त छवि को कोई नुकसान पहुंचा है या नहीं.
उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव के नतीजे ऐतिहासिक हैं, क्योंकि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटी है, लेकिन इसमें एक छिपा संदेश भी है कि सत्तारूढ़ पार्टी को आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है.
उन्होंने लिखा, “भाजपा को यह भी आकलन करना होगा कि पार्टी की छवि, खासकर भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति के एजेंडे पर, पार्टी या गठबंधन में कुछ दागी नेताओं के शामिल होने से कोई नुकसान पहुंचा है या नहीं.”
उन्होंने कहा, “महत्वपूर्ण राज्यों में पारंपरिक वोटों से परे भाजपा विरोधी वोटों को एकजुट करना, जाति-आधारित पहचानों का फिर से उभरना और विदेशी इकाइयों का संभावित हस्तक्षेप रहस्यमय प्रवृत्तियां हैं, जिनका पार्टी रणनीतिकारों को समाधान करना होगा.”
उन्होंने कहा, “विभिन्न जातियों और समुदायों के बीच जमीनी स्तर पर विश्वास बहाली के उपाय अपनाए जाने की आवश्यकता है, ताकि उनके बीच दरार को और चौड़ा करने का दुष्प्रचार सफल न हो सके. भाजपा को इस प्रवृत्ति का मुकाबला करने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं को शिक्षित और उत्साहित करना होगा और विभिन्न सामाजिक समावेश योजनाओं को लागू करते समय उन्हें हितधारक बनाना होगा.”
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा इस बार भाजपा के लिए प्रचार नहीं करने की अटकलों पर प्रतिक्रिया देते हुए केतकर ने कहा कि 1977 को छोड़कर, जब लोकतंत्र की बहाली की आवश्यकता थी, संघ कभी भी किसी राजनीतिक दल के समर्थन में खुलकर सामने नहीं आया.
केतकर ने कहा, “एक मात्र चिंता यह है कि राजनीति ‘राष्ट्र प्रथम’ के दृष्टिकोण पर ही बनी रहे. आरएसएस चुनावों को मतदाताओं को शिक्षित करने और विभिन्न राष्ट्रीय मुद्दों पर जनता की राय को परिष्कृत करने के अवसर के रूप में देखता है और संगठन ने अपने स्वयंसेवकों के माध्यम से हर राज्य में ऐसा किया है.”
‘ईसाइयों और हिंदू मैतेई ने BJP को नहीं दिया वोट’
पांचजन्य साप्ताहिक पत्रिका में दिब्य कमल बोरदोलोई लिखते हैं कि कैसे वोटों के ध्रुवीकरण के बावजूद, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने असम, त्रिपुरा और सिक्किम में अच्छा प्रदर्शन किया. हालांकि, मणिपुर, मेघालय और नागालैंड में यही जादू काम नहीं कर सका.
वह लिखते हैं, “पूर्वोत्तर में मत-मज़हब के आधार पर मतदाताओं के वोटों का ध्रुवीकरण नई चुनौती पेश कर रहे हैं. मुस्लिम-ईसाई ध्रुवीकरण के कारण खासतौर से असम भाजपा व राजग के लिए राह आसान नहीं है. इसके बावजूद मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा के नेतृत्व में राजग ने पिछले प्रदर्शन में सुधार करते हुए 11 सीटें जीती हैं. असम में कांग्रेस ने जिन सीटों पर जीत हासिल की है, वे मुस्लिम बहुल हैं. भाजपा को इस बार 14 में से 9, जबकि एनडीए के घटक असम गण परिषद और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल को एक-एक सीट मिली है. यानि एनडीए के खाते में 14 में से 11 सीटें आई हैं.”
इसी तरह से नागालैंड, मिजोरम, मेघालय जैसे ईसाई बहुल राज्यों में एनडीए के खराब प्रदर्शन के लिए वह ईसाइयों और चर्चों के जोरदार प्रदर्शन को कारण मानते हैं. वह लिखते हैं, “नागालैंड, मिज़ोरम, मेघालय जैसे ईसाई बहुल राज्यों और मणिपुर के कुकी और नगा बहुल पहाड़ी जिलों में बीजेपी और एनडीए के विरुद्ध ईसाइयों और चर्च ने जोरदार प्रचार किया औऱ चुनाव लड़े. बहुसंख्यक हिंदू मतेई समुदाय ने पहले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में बीजेपी का समर्थन किया था, पर इस बार कांग्रेस के पक्ष में चला गया. इस कारण से बीजेपी के कब्जे वाली इनर मणिपुर सीट और एनडीए के घटक नागा पीपुल्स फ्रंट के कब्जे वाली आउटर मणिपुर सीट कांग्रेस के खाते में चली गई.”
उन्होंने कहा, “ईसाइयों और चर्चों ने ईसाई बहुल राज्यों जैसे नागालैंड, मिजोरम, मेघालय और कुकी के साथ-साथ मणिपुर के नागा बहुल पहाड़ी जिलों में भाजपा और एनडीए के खिलाफ प्रचार किया और चुनाव लड़ा.”
बोरदोलोई लिखते हैं, “बहुसंख्यक हिंदू मैतेई समुदाय ने पहले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भाजपा का समर्थन किया था, लेकिन इस बार यह कांग्रेस के पक्ष में चला गया. इसके कारण, भाजपा के कब्जे वाली इनर मणिपुर सीट और एनडीए के घटक नागा पीपुल्स फ्रंट के कब्जे वाली आउटर मणिपुर सीट कांग्रेस के पास चली गई,”
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त्रिशूर में जीत का महत्त्व
ऑर्गेनाइज़र साप्ताहिक पत्रिका में विष्णु अरविंद ने वामपंथ के गढ़ केरल में त्रिशूर संसदीय सीट से सुरेश गोपी की जीत के बाद बीजेपी के लगातार बढ़ते वोट प्रतिशत के बारे में लिखा है.
उन्होंने लिखा, “केरल में एनडीए के वोट शेयर में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है. भाजपा ने न केवल त्रिशूर में जीत हासिल की, बल्कि तिरुवनंतपुरम में दूसरे स्थान पर रही. शशि थरूर के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर केवल 16,077 वोटों से हार गए.”
“एनडीए ने केरल में 2019 के लोकसभा चुनाव में अपना वोट शेयर 15.56 प्रतिशत से बढ़ाकर 2024 में 19.24 प्रतिशत कर लिया है. वहीं, कांग्रेस मोर्चे का वोट शेयर जो 2019 में 47.34 प्रतिशत और 19 सीटें था, इस बार घटकर 45.10 प्रतिशत और 18 सीटें रह गया है.”
11 विधानसभा सीटों पर भाजपा के अधिकतम वोट शेयर की ओर इशारा करते हुए अरविंद ने लिखा: “उल्लेखनीय तथ्य यह है कि भाजपा कम्युनिस्ट पार्टियों के कब्जे वाले 11 विधानसभा क्षेत्रों में पहले स्थान पर रही और दोनों मोर्चों के कब्जे वाले आठ विधानसभा क्षेत्रों में दूसरे स्थान पर रही.”
जगन की ‘सांप्रदायिक’ राजनीति
ऑर्गनाइजर में सीएसआईएस में सीनियर रिसर्च फेलो प्रदक्षिणा बताती हैं कि क्यों जगनमोहन रेड्डी सरकार को लोगों ने सत्ता से बाहर कर दिया और चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) को गद्दी पर बैठा दिया.
उन्होंने लिखा कि हिंदू विरोधी रुख के कारण ही वाईएसआरसीपी सत्ता से बाहर हुई. “महत्वपूर्ण मंदिरों को ढहाना, तमाम मंदिरों को अपवित्र करना, अज्ञात लोगों द्वारा कई स्थानों पर मंदिर के रथों को जलाना, अंतर्वेदी सहित कई स्थानों पर मूर्तियों को तोड़ना, विजयनगरम जिले के प्राचीन रामतीर्थम मंदिर में एक पहाड़ी पर भगवान श्रीराम के सिर को बेरहमी से काटना लोगों को हताश और दुखी कर गया.”
उन्होंने कहा, “विजयनगरम संस्थानम के वंशज अशोक गजपति राजू को सिंहाचलम में प्रसिद्ध श्री वराह नरसिंह स्वामी मंदिर के वंशानुगत ट्रस्टीशिप से सभी पारंपरिक मानदंडों का उल्लंघन करके अचानक हटा दिया गया, जिससे लोग भड़क गए.”
उन्होंने कहा कि अन्य कारणों में कथित तौर पर ईसाई करुणाकर रेड्डी और बाद में वाईएस जगनमोहन रेड्डी परिवार से संबंधित धर्म रेड्डी को तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करना, टीटीडी से ईसाई कर्मचारियों को हटाने में विफलता आदि शामिल हैं.
प्रदक्षिणा ने लिखा कि वाईएसआरसीपी सरकार द्वारा पिछले वर्षों में चंद्रबाबू नायडू और कई टीडीपी पूर्व मंत्रियों की गिरफ्तारी ने इसकी राजनीतिक संभावनाओं को गंभीर रूप से प्रभावित किया. “इसके अलावा, वाईएसआरसीपी सरकार के सीआईडी विभाग ने अपने ही बागी सांसद रघुरामकृष्ण राजू को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें लोकसभा में बड़े पैमाने पर ईसाई धर्मांतरण के बारे में सच बोलने की हिम्मत करने के लिए बुरी तरह पीटा, जो कथित तौर पर 25 प्रतिशत को पार कर गया है, जिससे राज्य की जनसांख्यिकी बदल गई है.”
ओडिशा में बीजेपी की भारी जीत
पांचजन्य में समन्वय नंद लिखते हैं कि ओडिशा में पीएम मोदी की आंधी चली और ओड़िया संस्कृति व महिलाओं को 50,000 रुपये के वाउचर देने के मुद्दे ने इस चुनाव में पूरी तरह काम किया.
वह लिखते हैं, “भारतीय जनता पार्टी ने इस बार के चुनाव में ओडिया संस्कृति को मुद्दा बनाया था. इसके साथ-साथ महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी मंदिर के रत्न भंडार की चाभी खो जाना, मंदरि के चार द्वारों को न खोले जाने से जुड़े मुद्दे भी उठाए गए. भाजपा ने अपने घोषणापत्र में सुभद्रा नाम से योजना बनाकर उसमें महिलाओं को 50 हज़ार रुपये का वाउचर प्रदान करने की बात कही थी. इसके साथ-साथ भाजपा ने धान को प्रति क्विंटल 31 सौ रुपये में खरीदे जाने तथा 48 घंटे के अंदर किसानों के बैंक खातों में पैसा पहुंचाने का वादा किया था.”
कांग्रेस के प्रोपगैंडा के लिए ‘विदेशी ताकतों’ का समर्थन
पांचजन्य वेबसाइट के इस हफ्ते के छपे संपादकीय में हितेश शंकर ने एआई और विदेशी ताकतों के ज़रिए कांग्रेस द्वारा दुष्प्रचार फैलाने के सवाल को उठाया है. वह कहते हैं कि, “राजनीति में आरोप- प्रत्यारोप और भाषाई वार होते हैं। कई बार भाषा का स्तर भी गिरता है, किंतु आपसी लड़ाई में विदेशी शक्तियों से हाथ मिलाने का दुष्कृत्य भी इस लोकसभा चुनाव में देखने में आया। पहले केवल आरोप होते थे, किंतु इस बार एक विदेशी कंपनी ने कांग्रेस का नाम लेकर यह घोषणा की एक अन्य विदेशी कंपनी ने एआई तकनीक का प्रयोग करते हुए कांग्रेस के लिए ‘प्रोपेगेंडा’ या कहिए प्रपंच का पूरा जाल बुना.”
आगे वह लिखते हैं, “18वीं लोकसभा चुनाव के सातवें और अंतिम चरण के मतदान से ठीक पहले एक और विदेशी तकनीकी दिग्गज कंपनी ओपनएआई ने कांग्रेस से जुड़ा बड़ा खुलासा किया है. दावा है कि राजनीतिक मुहिम चलाने में विशेषज्ञ इस्राएली कंपनी STOIC ने ‘आपरेशन जीरो जेनो’ मुहिम के तहत भारत विरोधी एजेंडा चलाया, ताकि लोकसभा चुनावों के दौरान मतदाताओं को प्रभावित कर चुनाव परिणाम बदला जा सके. इसके लिए सरकार के विरुद्ध नकारात्मक, जबकि कांग्रेस की प्रशंसा में कसीदे काढ़ने का काम हुआ.”
ऑपरेशन जीरो जेनो के बारे में उन्होंने कहा, “यह एक बड़ा तकनीकी षड्यंत्र था, जो लोकसभा चुनाव में जनता की राय को प्रभावित करने के लिए रचा गया। सोशल मीडिया पर शुरू से लेकर अंतिम चरण के मतदान तक खास तरह के ‘नैरेटिव’ तैर रहे थे, जिसमें सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को निशाना बनाया जा रहा था. दूसरी तरफ कांग्रेस और सपा के पक्ष में ‘कंटेंट’ परोसा जा रहा था.”
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