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Thursday, 2 October, 2025
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न्यायालय गौर करेगा कि क्या न्यायमूर्ति बेदी समिति की रिपोर्ट पर किसी निर्देश की जरूरत है?

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नयी दिल्ली, नौ नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि उसे यह गौर करने की जरूरत है कि क्या न्यायमूर्ति एच. एस. बेदी समिति द्वारा दायर रिपोर्ट पर कोई और निर्देश जारी करने की आवश्यकता है। समिति ने 2002 से 2006 के बीच गुजरात में कथित फर्जी मुठभेड़ों के कई मामलों की जांच की थी।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की पीठ दिवंगत वरिष्ठ पत्रकार बी. जी. वर्गीज और गीतकार जावेद अख्तर द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कथित फर्जी मुठभेड़ों की जांच का अनुरोध किया गया है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि इस मामले में कुछ भी नहीं बचा है क्योंकि रिपोर्ट सौंप दी गई है।

पीठ ने कहा, ‘सिर्फ एक चीज यह है कि क्या रिपोर्ट के संबंध में कोई निर्देश पारित करने की जरूरत है… हम इस मामले को जनवरी, 2023 में सूचीबद्ध करेंगे ताकि यह देखा जा सके कि रिपोर्ट के संबंध में कोई और निर्देश जारी किया जाना है या नहीं।’

मेहता ने कहा कि दोनों याचिकाकर्ता गुजरात के नहीं हैं और यह देखने की जरूरत है कि क्या ऐसे मामले में रिट याचिका दायर की जा सकती है।

पीठ ने कहा कि अब काफी पानी बह चुका है और यह सवाल शुरुआत में उठना चाहिए था।

मेहता ने कहा कि याचिका में याचिकाकर्ताओं ने कथित फर्जी मुठभेड़ों को लेकर एक विशेष राज्य और एक विशेष राजनीतिक दल के कार्यकाल को निशाना बनाया है।

पीठ ने कहा कि वर्गीज अब नहीं रहे और इसलिए मामले को यहीं पर छोड़ दिया जाना चाहिए।

बेदी समिति का गठन 2019 में किया गया था। समिति ने जांचे गए 17 में से तीन मामलों में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की सिफारिश की थी।

उच्चतम न्यायालय में दाखिल अपनी अंतिम रिपोर्ट में न्यायमूर्ति बेदी ने कहा था कि गुजरात पुलिस के अधिकारियों ने प्रथम दृष्टया तीन लोगों- समीर खान, कसम जाफर और हाजी हाजी इस्माइल को फर्जी मुठभेड़ में मार दिया था।

समिति ने इंस्पेक्टर रैंक के तीन अधिकारियों सहित कुल नौ पुलिस अधिकारियों को आरोपित किया है।

अदालत ने उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेदी को गुजरात में 2002 से 2006 के बीच 17 मुठभेड़ों की जांच कर रही निगरानी समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया था। समिति ने पिछले साल फरवरी में एक सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट सर्वोच्च अदालत को सौंपी थी।

भाषा अविनाश माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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