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शुक्रवार, 6 जून, 2025
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न्यायालय करेगा पड़ताल: क्या अदालतें रियासती संपत्ति विवादों में कर सकती हैं हस्तक्षेप?

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नयी दिल्ली, दो जून (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को इस बात की पड़ताल करने पर सहमति जताई कि क्या संविधान का अनुच्छेद 363 अदालतों को संविधान-पूर्व अनुबंधों के तहत उल्लिखित पूर्ववर्ती रियासतों की संपत्तियों से जुड़े विवादों की सुनवाई करने से रोकता है।

अनुच्छेद 363 किसी रियासत और भारत सरकार के बीच हुई संधियों, समझौतों, अनुबंधों, सनद आदि से उत्पन्न होने वाले किसी भी विवाद में अदालतों के हस्तक्षेप को रोकता है।

इसलिए, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने जयपुर के शाही परिवार के सदस्यों राजमाता पद्मिनी देवी, उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी और सवाई पद्मनाभ सिंह द्वारा टाउन हॉल (पुरानी विधानसभा) और पुराने शहर में स्थित अन्य संपत्तियों के कब्जे को लेकर दायर याचिका पर नोटिस जारी किया।

उन्होंने राजस्थान उच्च न्यायालय के उस निर्णय को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया था कि तत्कालीन रियासत और भारत संघ के बीच हुए समझौते में उल्लिखित टाउन हॉल (पुरानी विधानसभा) पर कब्जे की मांग करने वाले मुकदमों पर संविधान के अनुच्छेद 363 के तहत दीवानी अदालतों द्वारा विचार नहीं किया जा सकता।

राजपरिवार के सदस्यों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने दलील दी कि सवालों के दायरे में आया समझौता पांच राजकुमारों ने किया था, जबकि भारत सरकार केवल यह सुनिश्चित करने के लिए एक गारंटर थी कि शर्तें पूरी हों।

उन्होंने बताया कि उच्च न्यायालय के समक्ष कार्यवाही में इस पहलू पर बहस नहीं की गई, जिसके परिणामस्वरूप 17 अप्रैल को एक विवादित निर्णय आया।

हालांकि, न्यायमूर्ति मिश्रा ने साल्वे से पूछा कि यदि भारत सरकार पक्षकार नहीं थी, तो भारत संघ के साथ विलय कैसे हुआ।

साल्वे ने स्पष्ट किया कि विलय औपचारिक समझौता होने के बाद हुआ और संविधान के अनुच्छेद एक के लागू होने के साथ ही यह प्रभावी हुआ।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि साल्वे की दलीलों के अनुसार, इसका मतलब यह होगा कि यदि भारत संघ अनुबंध का पक्षकार नहीं है और इसलिए अनुच्छेद 363 लागू नहीं होगा, तो स्थिति अनिवार्य रूप से हर दूसरे शासक को मुकदमा दायर करने और अपनी संपत्ति वापस मांगने के लिए प्रेरित करेगी।

साल्वे ने कहा कि मुकदमा दायर करना और (संपत्ति पर) अधिकार होना दो अलग-अलग बातें हैं।

उन्होंने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं का मामला उन संपत्तियों पर स्वामित्व का दावा करने का नहीं है, जो अनुच्छेद 363 के बावजूद अनुबंध के अनुसार संवैधानिक रूप से राज्य के पास निहित हैं।

साल्वे की दलीलों से असहमत न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, ‘‘कल, आप कहेंगे कि पूरा जयपुर आपका है। इस तरह हर रियासत आगे आएगी और स्वतंत्रता की घोषणा करेगी।’’

पीठ ने मामले की विस्तार से सुनवाई करने पर सहमति जताई और राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया और कहा कि इस मामले में दो और मुकदमे दायर किए जाने की संभावना है।

राजस्थान सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने कहा कि मामले की लंबी अवधि को देखते हुए राज्य सरकार इस मुद्दे को आगे नहीं ले जाएगी और विवादित संपत्तियों पर यथास्थिति बनाए रखेगी।

शर्मा का बयान दर्ज करने के बाद पीठ ने मामले की सुनवाई आठ सप्ताह बाद के लिए टाल दी।

यह मामला जयपुर के पूर्व राजपरिवार और राज्य सरकार के बीच लंबे समय से चले आ रहे संपत्ति विवाद से संबंधित है।

भाषा सुरेश दिलीप

दिलीप

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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