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दोषसिद्धि के बाद न्यायाधीश को धमकी देने के मामले को अदालत ने संज्ञान में लिया

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नयी दिल्ली, 21 अप्रैल (भाषा) राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक सेवानिवृत्त सरकारी शिक्षक ने एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद गुस्से में आकर, खुली अदालत में न्यायाधीश को अपशब्द कहे तथा परेशान किया।

न्यायिक मजिस्ट्रेट शिवानी मंगल ने दो अप्रैल के आदेश में दर्ज किया कि उन्होंने 63 वर्षीय व्यक्ति को पराक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 (चेक अमान्य होने का मामला) के तहत दोषी ठहराया, जिसके बाद वह व्यक्ति “खुली अदालत में न्यायाधीश पर भड़क उठा कि दोषसिद्धि का फैसला कैसे पारित किया जा सकता है”।

इसमें कहा गया है कि व्यक्ति ने खुली अदालत में न्यायाधीश को असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया और उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया तथा न्यायाधीश की मां के खिलाफ टिप्पणियां की।

आदेश में कहा गया, “अभियुक्त के हाथ में कोई वस्तु थी, और उसने उसे न्यायाधीश पर फेंकने की कोशिश की, और उसने अपने वकील को आदेश दिया कि वह उसके पक्ष में निर्णय लेने के लिए कुछ भी करे।”

आदेश में कहा गया कि दोषी और उसके वकील दोनों ने न्यायाधीश को परेशान किया।

आदेश में बताया गया कि दोषी ने कहा, “तू है क्या चीज……कि तू बाहर मिल देखते हैं कैसे जिंदा घर जाती है?”

न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा, “इसके बाद, उन दोनों ने मुझे नौकरी से इस्तीफा देने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान किया और फिर से उन दोनों ने मुझे आरोपी को बरी करने के लिए परेशान किया, अन्यथा वे मेरे खिलाफ शिकायत दर्ज करेंगे और जबरन मेरा इस्तीफा दिलवाएंगे।”

आदेश में आगे कहा गया, “फिर भी, अधोहस्ताक्षरी (न्यायाधीश) सभी बाधाओं के खिलाफ खड़ी हैं और हमेशा न्याय के पक्ष में आवश्यक कदम उठाती हैं। अधोहस्ताक्षरी इस तरह की धमकी और उत्पीड़न के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग, दिल्ली के समक्ष आरोपी के खिलाफ उचित कदम उठाएंगी।”

न्यायाधीश ने दोषी के वकील अतुल कुमार को कारण बताओ नोटिस जारी कर लिखित में उनके आचरण की व्याख्या करने को कहा तथा यह भी बताने को कहा कि उन्हें आपराधिक अवमानना ​​की कार्रवाई का सामना करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय क्यों नहीं भेजा जाए।

इसके बाद मामले की अगली सुनवाई पांच अप्रैल को हुई।

कुमार पांच अप्रैल को अपराह्न करीब दो बजे अदालत में पेश हुए और कहा कि दोषी एक सेवानिवृत्त सरकारी शिक्षक है, जो अपने तीन आश्रित बेटों के साथ पेंशन पर जीवन यापन कर रहा है।

इसके बाद अदालत ने पराक्रम्य लिखत अधिनियम मामले में उसे एक वर्ष 10 माह कैद की सजा सुनाई और 6.65 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।

दोषी ने अपील दायर करने की याचिका दायर की, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया।

दोषी और उसके वकील के दुर्व्यवहार पर अदालत ने कहा, “इस मामले को दक्षिण-पश्चिम द्वारका के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश को भेजा जाए, ताकि दो अप्रैल के आदेश के अनुसार उचित कार्यवाही करने के लिए इसे दिल्ली उच्च न्यायालय को भेजा जा सके।”

भाषा प्रशांत रंजन

रंजन

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यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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