नयी दिल्ली, 31 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को उन तीन वकीलों को कड़ी फटकार लगाई, जिन्होंने संविधान के भाग तीन के तहत अनुच्छेद 20 और 22 को ‘संविधान का उल्लंघन’ या अधिकारातीत घोषित करने के लिए एक याचिका दायर की थी।
संविधान का अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि से सुरक्षा से संबंधित है, जबकि अनुच्छेद 22 खास मामलों में गिरफ्तारी एवं हिरासत से सुरक्षा से संबंधित है। दोनों अनुच्छेद संविधान के भाग तीन में हैं, जो मौलिक अधिकारों से संबंधित है।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (एओआर) रखने का मकसद यह है कि याचिकाओं की प्रारंभिक जांच हो सके। पीठ ने कहा कि एओआर केवल याचिकाओं पर हस्ताक्षर करने वाला प्राधिकारी नहीं होना चाहिए।
पीठ ने तल्ख लहजे में कहा, ‘कोई आता है, आप अपनी फीस लेते हैं और याचिका दायर कर देते हैं। यह स्वीकार्य नहीं है। आपके लाइसेंस रद्द कर दिए जाने चाहिए। इस प्रकार की याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत कैसे दायर की जा सकती है? एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड और मसौदा तैयार करने वाले वकील कौन हैं, उन्होंने कैसे इस पर हस्ताक्षर कर दिए?’
पीठ में न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति पी के मिश्रा भी शामिल थे।
पीठ ने कहा, ‘कुछ ज़िम्मेदारी तो होनी चाहिए। और आप (बहस करने वाले) वकील हैं, आप कैसे सहमत हुए? बार में आपका क्या दर्जा है? यह बहुत गंभीर स्थिति है। इसने हमारी अंतरात्मा को झकझोर दिया कि ऐसी याचिका दायर की गई।’
पीठ ने तीनों वकीलों को एक हलफनामा दायर कर यह स्पष्ट करने को कहा कि उन्होंने किन परिस्थितियों में ऐसी याचिका दायर की।
यह याचिका तमिलनाडु के एक निवासी ने दायर की थी।
भाषा अविनाश दिलीप
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