नयी दिल्ली, दो अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने झारखंड उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया है जिसमें एक व्यक्ति को इस शर्त पर अग्रिम जमानत दी गई थी कि वह अपनी पत्नी के साथ दाम्पत्य जीवन जारी रखेगा तथा उसका सम्मान और गरिमा के साथ भरण-पोषण करेगा।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि वह व्यक्ति तत्कालीन भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के तहत दर्ज मामले में आरोपी है।
पीठ ने 29 जुलाई के अपने आदेश में कहा, ‘‘अपीलकर्ता की गिरफ्तारी-पूर्व जमानत के आवेदन पर विचार करते समय, न्यायालय को यह आकलन करना चाहिए था कि क्या अपीलकर्ता द्वारा गिरफ्तारी-पूर्व जमानत के लिए मांगी गई राहत तय मापदंडों के भीतर दी जानी चाहिए… लेकिन इस न्यायालय के कई निर्णयों के मद्देनजर हमारे समक्ष रखी गई शर्त नहीं लगाई जानी चाहिए थी।’’
इसने कहा कि उच्च न्यायालय को गिरफ्तारी-पूर्व जमानत के अनुरोध पर पूरी तरह से उसके गुण-दोष के आधार पर विचार करना चाहिए था, न कि कोई शर्त लगानी चाहिए थी, जो पूर्ववर्ती दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438(2) से संबद्ध नहीं है।
उच्चतम न्यायालय ने यह आदेश उच्च न्यायालय के फरवरी 2025 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर पारित किया, जिसमें इस शर्त पर गिरफ्तारी पूर्व जमानत का अनुरोध स्वीकार किया गया था कि व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ दाम्पत्य जीवन फिर से शुरू करेगा और उसे अपनी पत्नी के रूप में सम्मान देगा।
उच्चतम न्यायालय में सुनवाई के दौरान महिला की ओर से पेश वकील ने कहा कि पुरुष ने महिला के साथ मिलकर उच्च न्यायालय में संयुक्त रूप से कहा था कि वह अपना दाम्पत्य जीवन फिर से शुरू करने को तैयार है।
पीठ ने कहा कि वकील इस मायने में आंशिक रूप से सही थे कि व्यक्ति वास्तव में दाम्पत्य जीवन फिर से शुरू करने के लिए सहमत हो गया था।
न्यायालय ने कहा कि यदि इस आधार पर जमानत रद्द करने के लिए आवेदन किया जाता है कि ऐसी शर्त का पालन नहीं किया गया है, तो बाद में आवेदन करने पर व्यक्ति की ओर से विरोध किया जाएगा और इससे उच्च न्यायालय को और अधिक कठिनाई हो सकती है।
पीठ ने कहा, ‘‘तदनुसार, निर्णय और आदेश रद्द किया जाता है। अपील स्वीकार की जाती है।’’
इसने अग्रिम जमानत याचिका को उच्च न्यायालय की फाइल पर बहाल कर दिया और उसे यथाशीघ्र, इसके गुण-दोष के आधार पर नए सिरे से निर्णय लेने को कहा।
पीठ ने कहा कि जब तक उच्च न्यायालय द्वारा मामले पर अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक शीर्ष अदालत द्वारा व्यक्ति को दिया गया अंतरिम संरक्षण जारी रहेगा।
इससे पहले पारित अपने अंतरिम निर्देश में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि मामले के संबंध में व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, बशर्ते कि जांच अधिकारी द्वारा बुलाए जाने पर वह जांच में शामिल हो।
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देवेंद्र माधव
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