मुंबई, 30 जुलाई (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने गर्भपात कराने की इच्छुक लड़कियों के नाम और पहचान उजागर करने के लिए डॉक्टरों को बाध्य करने पर पुलिस के प्रति नाराजगी जताई, जबकि उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया है कि इस पर जोर देने की जरूरत नहीं है।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ ने 28 जुलाई को कहा कि पुलिस का ऐसी लड़कियों के नाम और पहचान उजागर करने पर जोर देना नाबालिग पीड़ितों और डॉक्टरों के उत्पीड़न के अलावा कुछ नहीं है।
नियमों के अनुसार, जब 18 साल से कम आयु की कोई लड़की गर्भपात के लिए डॉक्टर के पास जाती है, तो डॉक्टर को पुलिस को सूचित करना होता है।
मुंबई के एक महिला रोग विशेषज्ञ ने याचिका दायर कर यह निर्देश देने का अनुरोध किया था कि उसे पुलिस को गर्भपात कराने की इच्छुक एक नाबालिग का नाम और पहचान बताने के लिए मजबूर न किया जाए।
याचिका के मुताबिक, लड़की ने अपने एक परिचित लड़के के साथ सहमति से यौन संबंध बनाए थे और अब वह 13 सप्ताह की गर्भवती है।
लड़की और उसके माता-पिता उसका गर्भपात कराना चाहते हैं, लेकिन उसके भविष्य को देखते हुए उसकी पहचान उजागर करने को तैयार नहीं हैं।
याचिकाकर्ता की वकील मीनाज काकलिया ने उच्चतम न्यायालय के वर्ष 2022 के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि किसी भी आपराधिक कार्यवाही में डॉक्टरों को नाबालिग की पहचान और अन्य व्यक्तिगत विवरण का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है।
उच्च न्यायालय ने महिला रोग विशेषज्ञ को लड़की का नाम और पहचान बताए बिना उसका गर्भपात करने की अनुमति दे दी।
उच्च न्यायालय ने कहा कि वह इस बात से ‘काफी आश्चर्यचकित’ है कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बावजूद कि नाबालिग लड़की की पहचान उजागर करने पर जोर नहीं दिया जाना चाहिए, संबंधित डॉक्टरों को अनुमति के लिए इस अदालत का रुख करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, क्योंकि पुलिस उन पर नाबालिग पीड़ितों के नाम और पहचान उजागर करने का दबाव डाल रही है।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘यह डॉक्टरों और नाबालिग पीड़ितों का उत्पीड़न है।’
उसने निर्देश दिया कि शीर्ष अदालत के आदेश से महाराष्ट्र के सभी पुलिस थानों को अवगत कराया जाए और आदेश की एक प्रति राज्य के पुलिस महानिदेशक को भी आवश्यक कदम उठाने के लिए भेजी जाए।
भाषा आशीष पारुल
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