नयी दिल्ली, चार अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने जमानत का अनुरोध करने के दौरान या कठोर कार्रवाई से संरक्षण के लिए व्यक्तियों द्वारा अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि छिपाने की बढ़ती प्रवृत्ति को लेकर नाराजगी जताते हुए कहा है कि यह धोखा दिये जाने के समान है।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने कहा, ‘‘इस न्यायालय से जमानत का अनुरोध करते समय या गिरफ्तारी से छूट का आग्रह करने वाले व्यक्तियों द्वारा विशेष अनुमति याचिकाओं में, अन्य आपराधिक मामलों में अपनी संलिप्तता का खुलासा न करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।’’ इसलिए, पीठ ने हत्या के आरोपी की जमानत याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि इसमें ‘‘तथ्यों को छिपाया गया है।’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘इस अदालत ने पूर्व में उदारता दिखाई है, लेकिन हमें लगता है कि समय आ गया है कि इस तरह की चीजों को आगे जारी नहीं रहने दिया जाए।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालयों या सत्र न्यायालयों के आदेशों के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) के साथ इस अदालत का रुख करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को संक्षेप में अनिवार्य रूप से यह खुलासा करना चाहिए कि क्या उनकी पृष्ठभूमि साफ-सुथरी है या वह किसी आपराधिक मामले में संलिप्त रहा है।
न्यायालय ने यह बात उन व्यक्तियों के संबंध में कही, जिन्हें दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 438/439 (जमानत या अग्रिम जमानत) या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 482/483 के तहत राहत देने से इनकार किया गया है।
न्यायालय ने तीन अप्रैल को अपने आदेश में कहा कि व्यक्ति द्वारा किया गया खुलासा यदि बाद में गलत पाया जाता है तो यह विशेष अनुमति याचिका को खारिज करने का आधार होगा।
पीठ ने कहा कि सरकार द्वारा जमानत या अग्रिम जमानत याचिकाओं पर जवाबी हलफनामा दाखिल करने के बाद ही आरोपियों के आपराधिक इतिहास का खुलासा हो सका।
शीर्ष अदालत ने कहा कि रजिस्ट्री को निर्देश दिया जाता है कि वह इस आदेश को सभी संबंधित पक्षों के संज्ञान में लाए, ताकि 13 अक्टूबर 2023 और 19 अक्टूबर 2023 के आदेशों के अनुसार नियमों में संशोधन होने तक इसका अनुपालन किया जा सके।
हत्या के आरोपी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 3 अक्टूबर 2023 के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। उक्त आदेश में, उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी।
उत्तर प्रदेश सरकार ने शीर्ष अदालत को यह जानकारी दी थी कि आरोपी आठ मामलों में संलिप्त था और चोरी के एक मामले में उसे दोषी करार दिया गया था।
भाषा सुभाष संतोष
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