नयी दिल्ली, आठ मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को चुनावों के दौरान जवाबदेही सुनिश्चित करने और काले धन का इस्तेमाल रोकने के मकसद से, प्रमुख राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे में लाने की अपील करने वाली दो जनहित याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई टाल दी।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ को इस मुद्दे पर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), एक गैर सरकारी संगठन और वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करनी थी।
आगामी 13 मई को सेवानिवृत्त हो रहे प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इन याचिकाओं पर अब सुनवाई नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा कि 15 मई को सुनवाई हो सकती है।
शीर्ष अदालत ने 14 फरवरी को केंद्र, निर्वाचन आयोग और छह राजनीतिक दलों से उन्हें सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के दायरे में लाने की मांग वाली जनहित याचिकाओं पर जवाब देने को कहा था।
एडीआर का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि उनकी याचिका पिछले 10 वर्षों से लंबित है।
शीर्ष अदालत ने 7 जुलाई, 2015 को एडीआर की याचिका पर केंद्र, निर्वाचन आयोग और कांग्रेस, भाजपा, भाकपा, राकांपा तथा बसपा सहित छह राजनीतिक दलों को नोटिस जारी किया था। एडीआर ने सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने के लिए उन्हें ‘सार्वजनिक प्राधिकार’ घोषित करने की अपील की थी।
उपाध्याय ने 2019 में राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने के लिए इसी तरह की याचिका दायर की थी ताकि उन्हें जवाबदेह बनाया जा सके और चुनावों में काले धन के इस्तेमाल पर अंकुश लगाया जा सके।
अपनी याचिका में उपाध्याय ने भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता के खतरे से निपटने के लिए केंद्र को कदम उठाने के निर्देश देने की भी अपील की।
एडीआर ने एक अलग याचिका में राजनीतिक दलों को 20,000 रुपये से कम के दान सहित सभी दान की घोषणा करने का निर्देश देने की भी अपील की।
भूषण ने तर्क दिया कि राजनीतिक दल सार्वजनिक प्राधिकार हैं और इसलिए वे आरटीआई अधिनियम के अधीन आते हैं।
केंद्रीय सूचना आयोग ने एक विस्तृत आदेश में पहले कहा था कि राजनीतिक दल सार्वजनिक प्राधिकार हैं और इसलिए उन्हें आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी का खुलासा करना चाहिए।
भाषा वैभव नरेश
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