scorecardresearch
बुधवार, 4 जून, 2025
होमदेशअदालत ने खिलाड़ी को शस्त्र लाइसेंस देने से मना करने का आदेश रद्द किया

अदालत ने खिलाड़ी को शस्त्र लाइसेंस देने से मना करने का आदेश रद्द किया

Text Size:

प्रयागराज, चार जून (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गौरव गुप्ता नाम के एक खिलाड़ी को शस्त्र लाइसेंस देने से मना करने के जिला मजिस्ट्रेट, देवरिया के आदेश को दरकिनार कर दिया है। गुप्ता ने खेल प्रशिक्षण और प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लेने के उद्देश्य से शस्त्र लाइसेंस के लिए आवेदन किया था।

न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल ने सोमवार को दिए अपने निर्णय में शस्त्र लाइसेंस जारी करने के याचिकाकर्ता के आवेदन पर नए सिरे से विचार करने के लिए इस मामले को जिला मजिस्ट्रेट, देवरिया के पास भेज दिया और याचिकाकर्ता के आवेदन में यदि कोई त्रुटि है, तो उसे दूर करने का एक उचित अवसर देने को कहा।

रिट याचिका दायर करते हुए याचिकाकर्ता ने जिला मजिस्ट्रेट, देवरिया के तीन मई, 2025 के आदेश को चुनौती दी थी।

याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि इस अदालत के 27 फरवरी, 2025 के आदेश के अनुपालन में लाइसेंसिंग अधिकारी ने आवेदन पर विचार कर इसके साथ संलग्न खेल प्रमाण पत्र में कुछ खामियां गिनाते हुए आवेदन खारिज कर दिया।

उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता को यह प्रमाण पत्र एक जूनियर शूटर के तौर पर दिया गया है और चूंकि याचिकाकर्ता की शूटिंग का वर्ग अच्छी तरह से परिभाषित नहीं है और इस संबंध में कोई हलफनामा दाखिल नहीं किया गया, इसलिए शस्त्र नियम, 2016 के मुताबिक, शस्त्र लाइसेंस नहीं दिया गया।

उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता को त्रुटि दूर करने का कोई अवसर नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि चूंकि उसे जुलाई, 2025 में आयोजित होने जा रहे प्री-यूपी स्टेट शूटिंग चैंपियनशिप प्रतियोगिता में हिस्सा लेना है, शस्त्र लाइसेंस नहीं होने से उसे अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।

वहीं, राज्य सरकार के वकील ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता अपने आवेदन के समर्थन में आवश्यक दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध कराने में विफल रहा, याचिकाकर्ता का आवेदन खारिज किया जाना उचित है।

संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने याचिकाकर्ता के आवेदन पर गौर किया जिसमें पाया गया कि जूनियर शूटर के तौर पर विस्तृत सूचना के लिए उक्त नियमों के मुताबिक, कोई कॉलम नहीं बनाया गया है। इसके अलावा, याचिकाकर्ता को त्रुटि सुधारने का कोई अवसर नहीं दिया गया।

अदालत ने कहा, “इस मामले के विशेष तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए तीन मई, 2025 का आदेश कानून की दृष्टि में न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता। इसलिए इस आदेश को दरकिनार किया जाता है।”

भाषा राजेंद्र

अमित

अमित

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments