नयी दिल्ली, दो दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को अदालत के समक्ष बाल तस्करी का मुद्दा उठाने पर वाराणसी नगर निगम में संविदा सफाईकर्मी के रूप में कार्यरत पति-पत्नी को बर्खास्त किए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई और उत्तर प्रदेश सरकार को एक घंटे के भीतर दोनों सफाई कर्मचारियों को बहाल करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ को वरिष्ठ अधिवक्ता और न्यायमित्र अपर्णा भट्ट ने बताया कि पिंकी ने यह आरोप लगाते हुए मामला दायर किया है कि उसे और उसके पति को संविदा नियोक्ता ने नौकरी से बर्खास्त कर दिया है।
पीठ ने उत्तर प्रदेश के वकील से कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि उन्हें एक घंटे के भीतर बहाल कर दिया जाए, अन्यथा संबंधित अधिकारी को निलंबित कर दिया जाएगा। हम अद्यतन स्थिति जानना चाहते हैं। सिर्फ इसलिए कि उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया, अधिकारी नाराज हो गए। हम इसे हल्के में नहीं लेंगे।’’
पीठ ने वकील से कहा कि वह संबंधित अधिकारियों को फोन करें और अदालत को उनकी बहाली के बारे में सूचित करें।
पिंकी के एक वर्षीय बच्चे बाहुबली को वाराणसी के नदेसर कैंट से उस समय अगवा कर लिया गया, जब वह उसके बगल में सो रहा था। यह अपहरण एक संगठित अंतरराज्यीय बाल-तस्करी गिरोह के सदस्यों द्वारा किया गया था।
आधी रात बाद अपने बेटे के लापता होने का पता चलने पर, पिंकी ने अगले दिन वाराणसी के छावनी थाने में शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद 30 अप्रैल, 2023 को एक प्राथमिकी दर्ज की गई।
शुरुआत में पुलिस रिपोर्ट में संकेत दिया गया था कि पिंकी द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत एक लापता बच्चे के बारे में थी, लेकिन आगे की जांच से पता चला कि यह मामला बाल तस्करी का था।
इस मामले में कई गिरफ्तारियां की गईं और इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आरोपियों को जमानत दे दी, जिसे पिंकी और अन्य ने शीर्ष अदालत में चुनौती दी।
शीर्ष अदालत उस मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें उसने 15 अप्रैल को देश में अंतरराज्यीय बाल तस्करी गिरोह पर कड़ा रुख अपनाया था और 13 आरोपियों की जमानत रद्द कर दी थी।
शीर्ष अदालत ने देश में बाल तस्करी के मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिए कई निर्देश पारित किए थे और उच्च न्यायालयों से यह सुनिश्चित करने को कहा था कि अधीनस्थ अदालतें छह महीने में सुनवाई पूरी करें।
शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा आरोपियों को जमानत पर रिहा करने के आदेशों को दोषपूर्ण पाया और कहा कि अपराध की गंभीर प्रकृति को देखते हुए आरोपियों को राहत नहीं दी जानी चाहिए थी।
इसने कहा था कि यद्यपि स्वतंत्रता व्यक्ति के जीवन का एक अत्यंत मूल्यवान मूल्य है, फिर भी इसे नियंत्रित और प्रतिबंधित किया गया है और समाज का कोई भी तत्व इस तरह से कार्य नहीं कर सकता जिससे दूसरों का जीवन और उनकी स्वतंत्रता खतरे में पड़े।
शीर्ष अदालत ने अभिभावकों को बाल तस्करी के खतरों के बारे में चेताया था और उन्हें अपने बच्चों के प्रति अत्यधिक सतर्क रहने के लिए कहा था।
भाषा
संतोष नरेश
नरेश
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