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Friday, 18 October, 2024
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देश ने मनाया 25वां करगिल विजय दिवस, प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया

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द्रास/नयी दिल्ली, 26 जुलाई (भाषा) देश ने शुक्रवार को 25वां करगिल विजय दिवस मनाया और देश की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वाले सैनिकों की वीर गाथा को याद किया।

इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान को एक कड़ा संदेश देते हुए कहा कि वह आतंकवाद और छद्म युद्ध का उपयोग करके प्रासंगिक बने रहने की कोशिश कर रहा है लेकिन दुश्मन के नापाक मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा।

करगिल विजय दिवस के अवसर पर विभिन्न राज्यों में तथा लद्दाख के द्रास स्थित करगिल युद्ध स्मारक पर कार्यक्रम आयोजित किए गए।

करगिल विजय दिवस 1999 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की जीत को चिह्नित करने के लिए हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है। भारतीय सेना ने करगिल की महत्वपूर्ण पर्वत चोटियों पर कब्जा करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए भीषण जवाबी कार्रवाई की थी।

प्रधानमंत्री ने इस युद्ध में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले बहादुरों को 25वें करगिल विजय दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित की।

उन्होंने एक ‘श्रद्धांजलि समारोह’ में भाग लिया और ‘गौरव गाथा’ सुनी। मोदी ने ‘अमर संस्मरण’ और ‘स्मरण कुटिया’ का दौरा किया। वह ‘वीर भूमि’ भी गए।

मोदी ने पाकिस्तान को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उसे अतीत में हमेशा हार का सामना करना पड़ा है।

उन्होंने कहा, ‘‘पाकिस्तान ने अतीत से कोई सबक नहीं लिया है और वह प्रासंगिक बने रहने के लिए आतंकवाद और छद्म युद्ध की आड़ में युद्ध जारी रखे हुए है।’’

प्रधानमंत्री का यह बयान जम्मू क्षेत्र में आतंकवादी घटनाएं बढ़ने के बीच आया है।

मोदी ने कहा कि आतंकवादियों के नापाक मंसूबे कभी कामयाब नहीं होंगे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को कहा कि करगिल विजय दिवस देश के सशस्त्र बलों के अदम्य साहस और असाधारण वीरता को श्रद्धांजलि देने का एक अवसर है।

मुर्मू ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘करगिल विजय दिवस हमारे सशस्त्र बलों के अदम्‍य साहस और असाधारण पराक्रम के प्रति कृतज्ञ राष्ट्र द्वारा सम्मान प्रकट करने का अवसर है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘1999 में करगिल की चोटियों पर भारत मां की रक्षा करते हुए सर्वोच्च बलिदान देने वाले प्रत्येक सेनानी को मैं श्रद्धांजलि देती हूं और उनकी पावन स्मृति में नमन करती हूं। मुझे विश्वास है कि सभी देशवासी उनके त्याग और शौर्य से प्रेरणा प्राप्त करेंगे। जय हिंद! जय भारत!’’

माना जाता है कि ताशी नामग्याल नामक चरवाहे ने दो मई 1999 को करगिल में पाकिस्तानी सैनिकों की घुसपैठ की सूचना दी थी। इसके बाद भारतीय सेना ने महत्वपूर्ण चोटियों पर चुपके से कब्जा कर चुके पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए ‘ऑपरेशन विजय’ शुरू किया। बर्फीली चोटियों पर लगभग तीन महीने तक युद्ध चला।

नामग्याल ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि उन्होंने कुछ लोगों को पहाड़ पर पत्थर तोड़ते और बर्फ हटाते देखा था। उन्हें कुछ गड़बड़ होने का संदेह हुआ और उन्होंने भारतीय सेना की चौकी को इसकी सूचना दी।

नामग्याल ने कहा, ‘‘वे लोग काले कपड़े पहने हुए थे और पत्थरों से चौकी बना रहे थे। मेरा काम सूचना देना था लेकिन वे कौन हैं यह पता लगाना सेना का काम था।’’

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘आज करगिल विजय दिवस के 25 साल पूरे हो गए हैं। हम 1999 के युद्ध में वीरता से लड़ने वाले बहादुर जवानों के अदम्य साहस को याद करते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘उनकी अटूट प्रतिबद्धता, शौर्य और देशभक्ति ने यह बताया है कि हमारा देश सुरक्षित और संरक्षित रहेगा। उनकी सेवा और बलिदान हर भारतीय एवं हमारी आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।’’

प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान और सशस्त्र बलों के सभी जवानों ने भी ‘वीर सैनिकों’ के सर्वोच्च बलिदान को याद किया।

एकीकृत रक्षा स्टाफ मुख्यालय ने कहा, ‘‘हमें करगिल के नायकों से प्रेरणा मिलती है और हम साहस, सम्मान तथा बलिदान के साथ अपने देश की रक्षा कर उनकी विरासत का हमेशा सम्मान करते रहेंगे।’’

करगिल युद्ध में 500 से अधिक जवानों ने देश की रक्षा करने के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी युद्ध के दौरान देश की रक्षा करने वाले वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की।

उन्होंने कहा, ‘‘करगिल विजय दिवस पर हमारे बहादुर सैनिकों की वीरता और समर्पण को सलाम। उनके साहस और देशभक्ति की विरासत सभी भारतीयों को प्रेरित करती है।’’

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और पार्टी के कई अन्य वरिष्ठ नेताओं ने शहीदों को नमन किया।

खरगे ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘25वें ‘करगिल विजय दिवस’ के मौके पर हमारे वीर सैनिकों, उनके परिवारों और सभी भारतीयों को बधाई। करगिल युद्ध में हमारी मातृभूमि की रक्षा करते हुए सर्वोच्च बलिदान देने वाले हमारे वीरों की शहादत को हम सिर झुकाकर नमन करते हैं। हमें उनके अदम्य साहस व पराक्रम पर गर्व है। जय हिंद।’’

राहुल गांधी ने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘भारत की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले अमर शहीदों को करगिल विजय दिवस पर मेरा शत-शत नमन। उनके सर्वोच्च बलिदान के लिए देश सदैव ऋणी रहेगा।’’

घुसपैठियों से भारतीय क्षेत्र की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले सैनिकों के परिवारों के लिए करगिल विजय दिवस दर्द और गर्व की अनुभूतियों का पल

है।

करगिल की बर्फीली चोटियों से पाकिस्तानी सेना को खदेड़ते हुए अपनी जान गंवाने वाले एक जांबाज सैनिक का साथी पिछले 25 साल से हर वर्ष उसके घर जाता है ताकि शहीद के माता-पिता अपने इकलौते बेटे को खोने के दुख से उबर सकें।

वीर चक्र से सम्मानित कर्नल सचिन निंबालकर के लिए हर साल शहीद वीर सपूत उदयमान सिंह के घर जाना एक प्रथा की तरह है। वह 1999 में करगिल की बर्फीली पहाड़ियों पर कड़ाके की ठंड में खुद से किए गए वादे को हर साल निभाते हैं।

इस संबंध में एक अधिकारी ने बताया कि कर्नल निंबालकर ने आखिरी बार इस साल चार जुलाई को अपने शहीद साथी जवान उदयमान सिंह के माता-पिता से मुलाकात की थी। संयोग से, करगिल युद्ध के दौरान चार जुलाई की रात को ही 18 ग्रेनेडियर्स की टीम को ‘टाइगर हिल’ की चोटी को फिर से हासिल करने का काम सौंपा गया था।

करगिल की पहाड़ियों से पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए भारतीय जवानों ने हमला किया और रस्सियों व अन्य उपकरणों की मदद से पहाड़ी की चोटी पर पहुंच गए।

‘टाइगर हिल’ की चोटी पर पहुंचने के बाद 18 ग्रेनेडियर्स के दल की दुश्मनों के साथ भीषण मुठभेड़ हुई। इस दौरान ग्रेनेडियर उदयमान सिंह (19) को गोली लग गई और वह पांच जुलाई को वीरगति को प्राप्त हो गए।

युद्ध के बाद जब अन्य लोग भारत की जीत का जश्न मना रहे थे तब कर्नल निंबालकर अपने शहीद साथी उदयमान सिंह की याद में भावुक थे। दोनों ने मिलकर आतंकवादियों के साथ हुई कई मुठभेड़ में उन्हें धूल चटाई थी। निंबालकर और सिंह के बीच विश्वास और सौहार्द का मजबूत रिश्ता था।

वहीं, एक अन्य पूर्व सैनिक, लद्दाख स्काउट्स के मानद लेफ्टिनेंट ताशी शेरिंग देश की रक्षा के लिए बुलाए जाने वाले पहले लोगों में से थे। लद्दाख स्काउट्स इन्फैंट्री रेजिमेंट के छह अन्य लोगों के साथ शेरिंग को गोरखा राइफल्स के मेजर मनोज पांडे की प्लाटून में शामिल होने के लिए कहा गया था।

शेरिंग ने कहा, ‘‘जब तक हम पहुंचे, हर पहाड़ी पर एक आतंकवादी था और हमें सिर उठाने का भी मौका नहीं दे रहा था। हमारे साथ 10 जीआर और छह लद्दाख स्काउट्स के सैनिक थे। जैसे ही हम पहुंचे, उन्होंने हम पर गोलीबारी शुरू कर दी।’’

उन्होंने बताया कि शुरुआती झटका तब लगा जब दो सैनिक हताहत हो गए। शेरिंग ने कहा कि इसके बाद यह निर्णय लिया गया कि दुश्मन को पीछे धकेलने के लिए अगले दिन उसी स्थान पर हमला किया जाएगा।

भाषा शोभना नेत्रपाल

नेत्रपाल

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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