नई दिल्ली: प्रेम की नदी चिनाब के कई नाम हैं—बेचैन नदी, जंगली नदी. यह हीर-रांझा और सोहनी-महिवाल जैसी दुखांत प्रेम कहानियों की पृष्ठभूमि भी है और भारत-पाकिस्तान के बीच भू-राजनीतिक तनाव का केंद्र भी. लेकिन चिनाब की असली कहानी जियोलॉजिकल सर्वे और स्टडी में मिलती है—यह एक ऐसी नदी है जिसे रोका नहीं जा सकता.
और इस साल यह जम्मू तक पहुंची और तबाही मचा गई.
सिंधु बेसिन की सभी नदियां इस मानसून दोनों तरफ गरजीं. जहां पूर्वी सिंधु नदियां—ब्यास, रावी और सतलुज—हिमाचल और पंजाब में विनाश लेकर आईं, वहीं चिनाब बेसिन और इसकी सहायक तवी में आई बाढ़ स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों के लिए बढ़ती चिंता बन रही है.
हिमालयी नदी होने के नाते चिनाब दुनिया में सबसे अधिक गाद (सिल्ट) निकालने वाली नदियों में से एक है, जिससे इस पर बने किसी भी निर्माण को खतरा बना रहता है. भारत ने चिनाब पर जो कुछ ही बांध बनाए हैं, उन्हें हर साल फ्लश करना पड़ता है ताकि गाद से नुकसान न हो. झेलम और सतलुज की तुलना में, जो शहरों से गुजरते हुए कुछ शांत हो जाती हैं, चिनाब हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में बर्फीली पहाड़ियों, बंजर ढलानों और ग्लेशियरों के बीच से गुजरती हुई बेहद तेज़ और शक्तिशाली रहती है.
साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (SANDRP) की सह-समन्वयक परिणीता दांडेकर ने कहा, “चिनाब अकेली हिमालयी नदी है जिसे अब भी बचाया जा सकता है—बाकी सभी को इंसानों ने खत्म कर डाला है.” उन्होंने कहा, “हिमाचल के जिन हिस्सों में ब्यास और रावी छोटी धाराओं में बदल गई हैं, वहीं चिनाब अब भी पूरे अस्तित्व के साथ बहती दिखती है.”

चिनाब अब सिंधु घाटी की सबसे अधिक बांध-बनी नदी बनने की ओर बढ़ रही है. ग्लेशियर के पिघले पानी से पोषित चिनाब का भारतीय हिस्सा ब्यास की पूरी लंबाई जितना है. भारतीय सरकारी सर्वे के अनुसार इसकी 15,000 मेगावॉट से अधिक की जलविद्युत क्षमता अब भी उपयोग नहीं की गई है. लेकिन पहलगाम आतंकी हमले और अप्रैल 2025 में सिंधु जल संधि निलंबित होने के बाद भारत ने चिनाब पर तेजी से हाइड्रो-इलेक्ट्रिक परियोजनाओं को मंजूरी दी.
जम्मू के जलवायु कार्यकर्ता अनमोल ओहरी ने कहा, “अब तक हम चिनाब के उस हिस्से का भी उपयोग नहीं कर रहे थे जो संधि के तहत हमारा अधिकार था. IWT रुकने के बाद जो परियोजनाएं आ रही हैं, वे नई नहीं हैं—काफी समय से इंतजार था.”
लेकिन ये परियोजनाएं, तवी जैसी सहायक नदियों पर अतिक्रमण, लगातार बढ़ती गाद, और अब ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOFs) के नए खतरे, चिनाब के लिए विनाश का संकेत हैं. तवी में आई अत्यधिक बाढ़, और कश्मीर में चिनाब की सहायक धाराओं पर भूस्खलन व फ्लैश फ्लड, बड़ी समस्या के लक्षण हैं. लाखों वर्षों में बनी भौगोलिक समस्याएँ अब तेज़ी से सामने आ रही हैं, और नदी के किनारे रहने वालों के लिए चिनाब हर दिन अपना रंग बदलती दिख रही है.
जिस नदी का सांस्कृतिक महत्व इतना बड़ा है, उसके लिए यह चेतावनी तुरंत ध्यान देने योग्य है.
ओहरी ने कहा, “लोकगीत ‘पार छन्ना दे’ आज भी सरहद के दोनों ओर गाया जाता है, और यह अकेला तथ्य चिनाब की ऐतिहासिक अहमियत बताने के लिए काफी है.”
उन्होंने कहा, “राजा, देश, सीमाएं बदलती रहीं, लेकिन नदी वही रही. हमें सुनिश्चित करना होगा कि वह बहती रहे.”
चिनाब की गाद समस्या
भारत में चिनाब बेसिन का हवाई दृश्य हरे-नीले रंग की सांप जैसी घुमावदार धारा दिखाता है, जो पहले पहाड़ की चढ़ाई की ओर जाती है, फिर उतरती है और बीच में कई छोटी नदियों से मिलती है. यह सातवें क्रम का कैचमेंट है, यानी एक परिपक्व नदी तंत्र जिसमें कई प्रमुख सहायक नदियां शामिल हैं. इसका आरंभ हिमाचल प्रदेश की लाहौल घाटी में चंद्रा और भागा नदियों के संगम से होता है, जहां इनका मिलकर चंद्रभागा बनता है. जिसका अर्थ है चंद्राकार नदी. चंद्रभागा हर धर्म में—सिर्फ हिंदू धर्म में नहीं—कई लोककथाओं और मिथकों का स्रोत है. ऋग्वेद में इस नदी को असीक्नी कहा गया है, जबकि पहाड़ियों में चंद्रा और भागा के मिलन का ढांचा बौद्ध ‘मंडला’ के रूप में पवित्र माना जाता है.
हिमाचल के चंबा से गुजरने के बाद यह नदी पदर घाटी से होते हुए जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करती है और डोडा, किश्तवाड़, जम्मू और अखनूर जिलों से होकर पाकिस्तान में प्रवेश करती है. अखनूर में भारत छोड़ने से पहले नदी के किनारे एक हिंदू मंदिर, एक सूफी दरगाह और एक सिख गुरुद्वारा स्थित है.
दिप्रिंट को मिले GIS चित्रों में दिखता है कि अखनूर क्षेत्र के पास चिनाब का पानी गाद से भूरा हो जाता है, जो इसके वेदों में दिए गए नाम ‘असीक्नी’ यानी गहरे रंग वाली नदी, के अनुरूप है.

जम्मू विश्वविद्यालय के रिमोट सेंसिंग विभाग के प्रमुख ए.एस. जसरोतिया, जिन्होंने GIS प्लेटफॉर्म बनाया, के अनुसार यह धुंधला रंग मानसूनी बहाव के कारण हो सकता है.
उन्होंने कहा, “ज्यादातर सैटेलाइट तस्वीरें छह महीने से एक साल पुरानी हैं और मानसून में नदी के भारी कटाव को अच्छी तरह जाना जाता है.”
चिनाब नदी हिमालय की अन्य नदियों, यहां तक कि गंगा से भी अधिक गाद लेकर बहती है.
और यह गाद की समस्या सिर्फ मौसम से जुड़ी नहीं है. 1990 के दशक से हुए जियोलॉजिकल स्टडी (भूवैज्ञानिक अध्ययनों) ने दिखाया है कि चिनाब में मिट्टी कटाव अन्य हिमालयी नदियों से अधिक है, जिससे बड़े निर्माण कार्य जोखिम भरे हो जाते हैं.
2016 के एक स्टडी में अनुमान लगाया गया कि सलाल बांध के पास चिनाब हर साल 4.8 करोड़ मीट्रिक टन गाद लेकर आती है. तुलना के लिए, एक स्टडी के अनुसार सतलुज की गाद सिर्फ 0.4 मिलियन मीट्रिक टन सालाना है. इसका कारण हिमालय के भू-विज्ञान और सिंधु जल संधि के इतिहास से जुड़ा है.
हिमालयी नदियों में भारी कटाव और तलछट की प्रवृत्ति लंबे समय से जानी जाती है, जिसका कारण स्वयं हिमालय की प्रकृति है. लगभग 50 मिलियन वर्ष पुराने ये पर्वत भूगर्भीय रूप से ‘युवा’ माने जाते हैं और बहुत सक्रिय हैं. वे अब भी ऊंचे हो रहे हैं, जिससे धरातल अस्थिर और नाजुक है और गाद व कटाव तेजी से बढ़ता है.

चिनाब में अधिक गाद का एक और कारण इसके ऊपरी क्षेत्रों में जंगलों और पेड़ों की भारी कमी है. हिमालयन फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (HFRI) की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार चिनाब बेसिन के ऊपरी हिस्सों में बहुत कम वनस्पति है.
रिपोर्ट में कहा गया, “चिनाब बेसिन ऊंचे भूभागों, लहरदार पहाड़ियों, घाटियों, पत्थरों, टीले और चट्टानी ढांचों से बना है. ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जंगल बहुत कम हैं, जिसके कारण बारिश का पानी तेज बहाव के रूप में नदी में अधिक गाद लाता है.”
पिछली सदी में सिंधु जल संधि ने चिनाब की दिशा और सेहत दोनों को आकार दिया है. संधि के तहत चिनाब पाकिस्तान को आवंटित है, लेकिन भारत इसके पानी का उपयोग ‘गैर-खपत’ कार्यों—जैसे छोटे रन-ऑफ-दि-रिवर प्रोजेक्ट—के लिए कर सकता है.
सलाल (रेासी), बगलिहार (रामबन) और दुल हस्ती (किश्तवाड़) जैसे ये बांध भी गाद से बुरी तरह प्रभावित होते हैं.
690 मेगावॉट का सलाल बांध तो हर साल जमा गाद को हटाने के लिए बंद करना पड़ता है. स्टडी में पाया गया कि बनने के कुछ ही वर्षों में गाद ने इसके टर्बाइन और उपकरणों को नुकसान पहुंचाया.
अंतरराष्ट्रीय सिंचाई एवं निकासी आयोग के महासचिव अश्विन पांड्या ने कहा, “इनमें से कोई भी बांध भंडारण के लिए नहीं है. ये सिर्फ जलविद्युत उत्पादन के लिए हैं. IWT के कारण हम चिनाब में कभी बड़े स्टोरेज नहीं बना सके.”
IWT की यह शर्त, जो बड़े जलाशय बनाने से रोकती है, अनजाने में नदी के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक रही है.
बहुत अधिक गाद नदी के तल को ऊंचा कर देती है, जिससे बाढ़ के समय पानी मुख्य धारा छोड़कर इधर-उधर फैल जाता है. यही कारण चिनाब को और भी बाढ़-प्रवण बना देता है, यहां तक कि ऊपरी क्षेत्रों में भी.

इस साल के मानसून में धराली ही अकेली हिमालयी त्रासदी नहीं थी. 30 जुलाई को हिमाचल में मियार नाला—चिनाब की सहायक धारा—में आई फ्लैश फ्लड ने इतनी अधिक गाद और तलछट लाई कि पूरी घाटी तबाह हो गई. दांडेकर के अनुसार ऐसी घटनाएं चिनाब बेसिन में लगभग सामान्य हो चुकी हैं और इसकी नाजुकता को दिखाती हैं.
उन्होंने कहा, “इसके बावजूद हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में चिनाब पर 44 से अधिक बांध परियोजनाएं या तो योजना में हैं या निर्माणाधीन हैं. यह न सिर्फ पर्यावरण के लिए खतरनाक है, बल्कि इस नाजुक भूभाग में बहुत खराब निवेश निर्णय भी है.”
ग्लेशियर पिघलने की समस्या
चिनाब नदी के सामने आने वाली चुनौतियां सिर्फ गाद जमा होने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इसकी शुरुआत उसके स्रोत यानी ग्लेशियरों से होती है. वैज्ञानिक दशकों से चेतावनी दे रहे हैं कि ये ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ रहे हैं, और इसके दो बड़े प्रभाव हैं—एक तो नदी के आकार में बदलाव और दूसरा ग्लेशियल लेक आउटब्रस्ट फ्लड (GLOF) घटनाओं में वृद्धि.
हिमाचल के लाहौल और स्पीति जिले के बर्फ से ढके पहाड़ों में, जहां से चिनाब की शुरुआत होती है, वहां एक ticking time-bomb यानी टाइम बम है—समुद्र तपू ग्लेशियल झील.
यह झील चंद्रा नदी को पानी देती है और इसे वैज्ञानिक वर्षों से देख और खाका बना रहे हैं, क्योंकि 1965 से इसका आकार 905 प्रतिशत बढ़ गया है. इसके स्थान और पास में जमा गाद को देखते हुए विशेषज्ञ लगभग निश्चित हैं कि यह फट सकती है और नीचे के गांवों में विनाशकारी बाढ़ ला सकती है. यह एक और सिक्किम जैसी आपदा बनने वाली है. और स्थिति को और खराब बनाने के लिए, झील से 45 किमी दूर छत्रु गांव में एक जलविद्युत परियोजना बनाई जा रही है.
समुद्र तपू सबसे बड़ी ग्लेशियल झील है, लेकिन बर शिंगरी, घेपन गथ जैसी अन्य झीलें भी आकार में बढ़ रही हैं, और छोटे ग्लेशियर झीलों की संख्या भी बढ़ी है जो ग्लेशियरों के पिघलने से बनी हैं.
“चिनाब बेसिन की ग्लेशियल झीलें मूलतः ticking time bombs हैं. चंद्रा और भागा दोनों नदियां ग्लेशियरों के पास से निकलती हैं, और समय के साथ झीलों का आकार बढ़ा है,” दांडेकर ने कहा.

सिर्फ चंद्रा बेसिन में ही, 2019 के स्टडी के अनुसार, 200 से अधिक ग्लेशियर हैं और ये 2100 तक अपने आकार के आधे रह जाने की संभावना रखते हैं.
“यह बहुत ही तर्कसंगत है कि जब ग्लेशियर पिघलते हैं—चाहे जलवायु परिवर्तन की वजह से हो या किसी अन्य कारण से—तो पानी को कहीं जमा होना पड़ता है. इसी तरह ये झीलें बनती हैं,” पांड्या ने समझाया. “लेकिन ये स्थायी संरचनाएं नहीं हैं और किसी न किसी समय ये अस्थायी जलाशय टूट जाते हैं और पानी की बाढ़ छोड़ देते हैं.”
दांडेकर का संगठन SANDRP ने वैज्ञानिकों और क्षेत्रीय सर्वे से जानकारी जुटाकर चिनाब बेसिन में इन चुनौतियों को बताया है. उनके निष्कर्ष स्पष्ट हैं: ऐसे क्षेत्रों में बड़े निर्माण परियोजनाओं की योजना बनाना बेहद सतर्कता और विस्तारपूर्ण योजना मांगता है, जहां भूकंपीय सक्रियता है और नियमित, गंभीर जलवायु आपदाएं आती रहती हैं, साथ ही स्थानीय लोगों से उचित लोकतांत्रिक प्रक्रिया और मंजूरी लेना भी जरूरी है.
चिनाब का महत्व
लोककथाओं में, पांचों हिमालयी नदियों को एक विशेष गुण से जोड़ा गया है: वीरता, सम्मान, आस्था. चिनाब के लिए यह गुण है प्रेम. प्रसिद्ध पंजाबी प्रेम कहानी सोहनी माहीवाल की शुरुआत और अंत चिनाब नदी से होता है.
“चिनाब इश्क़ियां,” दांडेकर ने कहा. “चिनाब हमेशा प्रेम की नदी रही है. यह सिर्फ हीर रांझा और सोहनी माहीवाल को ही नहीं जोड़ती, बल्कि यह सीमा पार धर्मों को भी जोड़ती है.”
जो लोग नदी के पास रहते हैं, उनके लिए यह सांस्कृतिक और व्यावहारिक रूप से बहुत अहमियत है. इसके पानी जम्मू के मैदानों के बड़े हिस्से में सिंचाई में मदद करते हैं, पुराने और महत्वपूर्ण, स्वतंत्रता से पहले बने नालों जैसे रणबीर नहर के माध्यम से, जिसे भारत अब इंडस वाटर ट्रिटी के निलंबन के बाद बढ़ाने की योजना बना रहा है. इसके अलावा, जिन सहायक नदियों से चिनाब को पानी मिलता है, वे जम्मू जैसे शहरों के लिए जीवनरेखा हैं, और इन पर अतिक्रमण चिनाब की कुल सेहत के लिए खतरा है.
“देखो, एक नदी उसके जलग्रहण क्षेत्र से बनती है. आप सिर्फ मुख्य धारा को नहीं देख सकते, आपको सभी नालों और सहायक नदियों को देखना होगा जो इसे पानी देती हैं, ताकि नदी की सेहत समझ में आए,” दांडेकर ने कहा. “तो अगर चिनाब बेसिन की किसी भी नदी में अतिक्रमण, GLOF, सिकुड़ते ग्लेशियर या गाद जमा हो रही है, तो इसका असर अंततः चिनाब पर पड़ेगा.”
तावी रिवरफ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट ऐसे ही एक उदाहरण है, जो चिनाब की सहायक नदी पर है. यह 530 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट 2006 से विलंबित है और इसने पर्यावरणीय और पूंजीगत दोनों नुकसान उठाए हैं. तावी की बाढ़भूमि पर वॉकवे, पार्क, जॉगिंग ट्रैक और प्लाज़ा बनाने की योजनाओं के साथ, इस परियोजना ने पर्यावरणविदों का गुस्सा बुलाया है, जो इस तरह के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण के खिलाफ चेतावनी दे रहे हैं.
अब, स्थानीय निवासी भी इन चीज़ों को समझने लगे हैं. 23 वर्षीय छात्रा अर्थी कुमारी, जो जम्मू में पूरे जीवन तावी के पास रही हैं, ने याद किया कि पहले तावी का पानी इतना साफ था कि उससे पीया जा सकता था. अब, निर्माण कचरे के नियमित निपटान और नदी के बिस्तर पर निर्माण के कारण, उसकी झील जैसी भूरी रंगत अब उनके घर के आंगन से आम दृश्य है.
उन्होंने बताया कि रिवरफ्रंट परियोजना धीरे-धीरे नदी की धारा को भी छोटा कर रही है. उनके बुजुर्गों ने उन्हें बताया कि यही बाढ़ बढ़ने का कारण है.
“जब बारिश होती है और बहुत सारा पानी होता है, तो हमें बाढ़ के पानी को कहीं जाने के लिए जगह देनी होती है,” कुमारी ने कहा. “अगर हम इसका बिस्तर सिकोड़ते रहेंगे, तो यह निश्चित रूप से हमारे घरों और किनारों में प्रवेश करेगा. इसे गुस्साई नदी कैसे कह सकते हैं, यह नदी की गलती नहीं है.”
यह Angry Rivers सीरीज की दूसरी रिपोर्ट है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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