शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश), 13 मार्च (भाषा) शाहजहांपुर में हर साल होली के पर्व पर निकलने वाला ‘लाट साहब’ का जुलूस और इसी दिन जुमे की नमाज के साथ-साथ शब-ए-बारात का पर्व होने के मद्देनजर प्रशासन ने दोनों आयोजनों को शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराने के लिए अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं।
अपर जिलाधिकारी रामसेवक द्विवेदी ने रविवार को बताया कि इस बार होली का त्योहार शब-ए-बारात के पर्व वाले दिन पड़ रहा है और उसी रोज जुमे की नमाज भी होनी है। ऐसे में किसी भी तरह की अनहोनी ना हो इसके लिए जोनल तथा स्टैटिक मजिस्ट्रेट को जुलूस के मार्ग में पड़ने वाले हर तिराहे और चौराहे पर तैनात किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि लाट साहब का जुलूस खुफिया तंत्र की निगरानी में रहेगा। जुलूस मार्ग पर पड़ने वाली सभी मस्जिदों को नगर निगम द्वारा मोटी प्लास्टिक से पूरी तरह ढक दिया गया है और जुलूस मार्ग से निकलने वाली सड़कों तथा छोटी गलियों पर बैरिकेडिंग का कार्य भी शुरू कर दिया गया है।
पुलिस अधीक्षक (नगर) संजय कुमार ने बताया कि इस बार जुलूस के लिए दो अपर पुलिस अधीक्षक ,आठ पुलिस क्षेत्राधिकारी, 50 निरीक्षक तथा 225 दरोगा, 300 हेडकांस्टेबल के अलावा 1100 कांस्टेबल, एक कंपनी पीएसी एवं एक कंपनी रैपिड एक्शन फोर्स के साथ साथ दो ड्रोन कैमरे एवं जुलूस की निगरानी के लिए 55 कैमरे लगाए गए हैं।
उन्होंने बताया कि वार्ड स्तर पर बनी कमेटियां एवं थानों में संभ्रांत नागरिकों के साथ पुलिस प्रशासन लगातार बैठकें आयोजित कर सौहार्दपूर्ण वातावरण में होली पर्व मनाने की अपील कर रहा है। अराजक तत्वों की पहचान करके उनके विरुद्ध निरोधात्मक कार्यवाही की जा रही है एवं ऐसे लोगों को रेड कार्ड भी जारी किए जा रहे हैं।
गौरतलब है कि शाहजहांपुर में होली पर्व पर निकलने वाले लाट साहब के जुलूस में एक व्यक्ति को लाट साहब बनाकर भैंसा गाड़ी पर बैठाया जाता है। फूलमती देवी मंदिर में लाट साहब के मत्था टेकने के बाद यह जुलूस शुरू होकर कोतवाली पहुंचता है। परंपरा है कि कोतवाल लाट साहब को सलामी देते हैं और जब लाट साहब कोतवाल से पूरे वर्ष में हुए अपराधों का ब्योरा मांगते हैं तब कोतवाल इनाम के तौर पर उन्हें नकद धनराशि तथा एक शराब की बोतल देते हैं।
यह जुलूस शहर के काफी बड़े इलाके से होकर गुजरता है। इस दौरान हुरियारे लाट साहब के जयकारों के बीच उन्हें जूतों से मारते हैं। इसी तरह छोटे लाट साहब के भी आधा दर्जन से ज्यादा जुलूस विभिन्न मोहल्लों में निकाले जाते हैं जो अपने ही मोहल्ले में घूमकर खत्म हो जाते हैं।
जुलूस के आयोजन मंडल के सदस्य ने बताया कि लाट साहब की तलाश होली से एक महीने पहले शुरू कर दी जाती है। लाट साहब के तौर पर चुने गए व्यक्ति को गुप्त स्थान पर रखा जाता है और उसके खाने-पीने का पूरा ख्याल किया जाता है।
लाट साहब के जुलूस का रिवाज कब से शुरू हुआ इस बारे में स्वामी शुकदेवानंद कॉलेज के इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर विकास खुराना ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि शाहजहांपुर शहर की स्थापना करने वाले नवाब बहादुर खान के वंश के आखिरी शासक नवाब अब्दुल्ला खान पारिवारिक विवाद के चलते फर्रुखाबाद चले गए थे और वर्ष 1729 में 21 वर्ष की उम्र में वह शाहजहांपुर वापस आए थे। नवाब जनता के बीच काफी लोकप्रिय थे। एक बार होली के पर्व पर हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के मानने वाले लोग होली खेलने उनके घर गए। नवाब ने उनके साथ होली खेली। बाद में नवाब को ऊंट पर बैठाकर पूरे शहर का एक चक्कर लगाया गया। तब से यह परंपरा बन गई।
खुराना ने बताया कि शुरू में एक जुलूस बहुत ही तहजीब के साथ निकाला जाता था मगर आजादी के बाद इस जुलूस का नाम लाट साहब का जुलूस रख दिया गया। अंग्रेजी शासन में आमतौर पर गवर्नर को लाट साहब कहा जाता था। उन्होंने बताया कि कालांतर में लाट साहब बने व्यक्ति को जूते मारने का रिवाज शुरू हो गया जिसपर आपत्ति भी दर्ज कराई गई और मामला न्यायालय में पहुंचा, मगर अदालत ने इसे पुरानी परंपरा बताते हुए इस पर रोक लगाने से इंकार कर दिया।
भाषा सं सलीम प्रशांत धीरज
धीरज
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