(फाइल फोटो के साथ)
(हर्षवर्धन प्रकाश)
इंदौर, नौ अप्रैल (भाषा) मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल अलीराजपुर जिले के कट्ठीवाड़ा क्षेत्र का दुर्लभ नूरजहां आम इन दिनों अपनी बेनूरी पर आंसू बहा रहा है।
अधिकारियों ने बताया कि अपने भारी-भरकम फलों के चलते मुंहमांगे दामों पर बिकने वाला नूरजहां आम इंदौर से करीब 250 किलोमीटर दूर कट्ठीवाड़ा क्षेत्र में ही पाया जाता है।
उन्होंने बताया कि कट्ठीवाड़ा में नूरजहां आम का रकबा साल-दर-साल सिकुड़ता जा रहा है और आलम यह है कि क्षेत्र में इसके महज आठ फलदार पेड़ बचे हैं।
अलीराजपुर के कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) के प्रमुख डॉ. आर के यादव ने रविवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “कट्ठीवाड़ा क्षेत्र के निजी बागों में नूरजहां आम के केवल आठ फलदार पेड़ बचे हैं। यह हमारे लिए निश्चित तौर पर चिंता का विषय है।”
उन्होंने कहा कि कुछ दशक पहले नूरजहां आम का अधिकतम वजन 4.5 किलोग्राम तक हुआ करता था, जो अब घटकर 3.5 किलोग्राम के आस-पास रह गया है।
यादव ने कहा, “हम नूरजहां आम को आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाना चाहते हैं। हमने कलम के जरिये इसके दो पेड़ लगाए हैं, जिन पर तीन-चार साल में फल आने की उम्मीद है। इसके बाद, हम और कलम तैयार कर पेड़ों का रकबा बढ़ाएंगे।”
उन्होंने बताया कि नूरजहां का फल आकार में बहुत बड़ा होता है, लेकिन आमों की अन्य किस्मों की तुलना में इसका स्वाद उतना अच्छा नहीं है।
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक ने कहा, “हम अनुसंधान के जरिये नूरजहां की किस्म में सुधार कर इसका स्वाद भी बढ़ाना चाहते हैं।”
उन्होंने कहा कि चूंकि, नूरजहां आम में काफी गूदा होता है, इसलिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में इसके इस्तेमाल की अच्छी संभावनाएं हैं।
यादव ने बताया कि कट्ठीवाड़ा क्षेत्र की नम जलवायु और मुरम वाली मिट्टी नूरजहां आम की बागवानी के लिए बेहद मुफीद है और इस इलाके में पैदा होने वाले अन्य प्रजातियों के आमों का वजन भी देश के दूसरे हिस्सों में पैदा होने वाले आमों के मुकाबले ज्यादा रहता है।
उन्होंने कहा, “आमों के मौसम में कट्ठीवाड़ा क्षेत्र की मंडी में हर रोज अलग-अलग किस्म के 80 से 100 टन आम बिकने आते हैं।”
बहरहाल, कट्ठीवाड़ा ‘नूरजहां’ की बागवानी के लिए खासतौर पर पहचाना जाता है और इसके पेड़ आम उत्पादकों के लिए सोने की खान साबित होते आए हैं।
कट्ठीवाड़ा के अग्रणी आम उत्पादक शिवराज सिंह जाधव ने कहा, “पिछले साल मेरे बाग में नूरजहां के सबसे भारी फल का वजन 3.8 किलोग्राम था और इस एक फल को मैंने 2,000 रुपये में बेचा था।”
कट्ठीवाड़ा में बरसों से आमों की बागवानी कर रहे इशाक मंसूरी बताते हैं कि नूरजहां आम की प्रजाति मौसमी उतार-चढ़ाव के प्रति बेहद संवेदनशील होती है। उन्होंने कहा, “इस बार बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने हमारे बाग में नूरजहां की बौरों को तबाह कर दिया है।”
मंसूरी ने बताया कि नूरजहां के पेड़ों पर जनवरी से बौर आने शुरू होते हैं और इसके फल जून तक पककर तैयार हो जाते हैं।
भाषा
हर्ष पारुल
पारुल
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