नयी दिल्ली, 22 अप्रैल (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक अजीबोगरीब मामले में एक व्यक्ति को जमानत दे दी जिसने हत्या के आरोप में लगभग सात साल जेल में बिताए, जबकि मृतक की पहचान एक रहस्य बनी हुई है।
न्यायमूर्ति गिरीश कठपालिया ने 21 अप्रैल को कहा, ‘‘इस मामले की जांच से इस अदालत की अंतरात्मा को झटका लगा है।’’
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘अभी तक मृतक की पहचान नहीं हो पाई है। जहां तक ‘अंतिम बार देखे जाने’ की परिकल्पना का सवाल है, उसको अंतिम बार सोनी उर्फ छोटी के साथ देखा गया था, जो जीवित पाया गया।’’
हत्या के मामले में आरोपी मंजीत करकेट्टा ने इस आधार पर जमानत मांगी कि हालांकि वह 2018 से जेल में बंद है, लेकिन किसी को नहीं पता कि किसकी हत्या हुई।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यह बेहद दुखद है कि एक इंसान ने वर्ष 2018 में इतने वीभत्स तरीके से जान गंवा दी और उसके शरीर को टुकड़ों में काट दिया गया, लेकिन आज तक मृतक की पहचान भी नहीं हो पाई है।’’
यह घटना 2018 में हुई थी और मृतक की पहचान सोनी उर्फ छोटी के रूप में हुई थी।
सत्रह मई, 2018 को आरोपी की गिरफ्तारी के बाद सोनी को कथित तौर पर जीवित पाया गया था और मृत व्यक्ति की पहचान आज तक नहीं हो पाई है।
अभियोजक ने जमानत याचिका का विरोध किया और कहा कि ‘‘अंतिम बार देखे जाने’’ के साक्ष्य आरोपी को हत्या से जोड़ते हैं।
इसके विपरीत, व्यक्ति के वकील ने कहा कि उसकी उपस्थिति मोबाइल फोन टावरों से ली गई थी, जो एक बड़े क्षेत्र को कवर करते हैं और यह नहीं कहा जा सकता कि वह हत्या के समय सटीक अपराध स्थल पर मौजूद था।
अदालत ने कहा कि केवल इसलिए आरोपी को स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता कि मृतक की पहचान सुनिश्चित नहीं हो पाई है।
इसने कहा, ‘‘अतः, आवेदन स्वीकार किया जाता है और निर्देश दिया जाता है कि आरोपी/आवेदक को तत्काल जमानत पर रिहा किया जाए, बशर्ते वह 10,000 रुपये का निजी मुचलके और इतनी ही राशि की जमानत राशि प्रस्तुत करे।’’
भाषा नेत्रपाल खारी
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